क्या आप जानते हैं कि आज भी धरती पर भगवान परशुराम का शक्तिशाली फरसा मौजूद है? क्या है इसकी सच्चाई, जो सैंकड़ों सालों से हमसे छिपी हुई है? आने वाली परशुराम जयंती 30 अप्रैल 2025 को हम आपको लेकर जाएंगे उस रहस्यमयी जगह, जहां परशुराम जी का फरसा गड़ा हुआ है, और जहां के लोग आज भी इसकी अजेय शक्ति के गवाह हैं। इस रहस्य को जानने के बाद आप भी हैरान रह जाएंगे कि यह फरसा आखिर इतने सालों तक सुरक्षित कैसे बचा हुआ है।
परशुराम जयंती हर साल अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है, जो इस साल 30 अप्रैल 2025 को होगी। भगवान परशुराम, जिन्हें भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है, के साथ हमेशा उनके फरसे की चर्चा होती है। यह फरसा भगवान शिव से उन्हें प्राप्त हुआ था, जब उन्होंने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने इस फरसे से न सिर्फ युद्ध कला सीखी, बल्कि कई शक्तिशाली युद्ध भी लड़े थे। यह फरसा आज भी एक रहस्य बना हुआ है, और इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं।
झारखंड के गुमला जिले में एक स्थान है, टांगीनाथ धाम, जहां परशुराम जी का फरसा गड़ा हुआ बताया जाता है। यह स्थान रांची से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर में दावा किया जाता है कि यह फरसा स्वयं परशुराम जी ने यहां गाड़ा था। क्या आपने कभी सुना है कि यह फरसा खुले आसमान के नीचे रखा हुआ है, लेकिन कभी भी उसमें जंग नहीं लगा? इसके ऊपर होने वाले कई प्रयासों के बावजूद इसे उखाड़ने का कोई भी प्रयास सफल नहीं हुआ। यह एक रहस्य है, जिसे सुलझाने के लिए हमें और गहराई से जानने की जरूरत है।
सवाल यह उठता है कि आखिर यह फरसा इतना शक्तिशाली क्यों है, और कैसे यह इतने सालों से सुरक्षित है? कहा जाता है कि यह फरसा भगवान शिव से प्राप्त एक दिव्य अस्त्र था, जिसे ‘परशु’ कहा जाता है। परशुराम जी ने इस फरसे से 36 बार हयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का वध किया था, और यह उसे अधर्म को नष्ट करने के लिए किया गया था। इस फरसे की शक्ति इतनी अधिक थी कि यह आज भी किसी रहस्य से कम नहीं लगता। यह स्थान और इसका फरसा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण धरोहर है।
कई कहानियाँ और लोक कथाएँ इस फरसे के बारे में प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, जब श्रीराम ने शिव जी का धनुष तोड़ा था, तब परशुराम जी बहुत क्रोधित हुए थे। परशुराम जी ने अपनी गलती का एहसास करते हुए अपने कृत्य का प्रायश्चित करने के लिए घने जंगलों में एक पहाड़ पर तपस्या की। कहते हैं कि यहीं पर उन्होंने अपना फरसा गाड़ दिया और तपस्या करने लगे। यह स्थान आज भी टांगीनाथ धाम के रूप में जाना जाता है, जहां परशुराम जी का फरसा मौजूद है। क्या यह सच है, और क्या इस रहस्य से पर्दा उठाने का समय आ चुका है?