उत्तर प्रदेश के संभल जिले से सामने आई एक अनोखी और भावनात्मक याचिका ने देशभर का ध्यान आकर्षित किया है। मामला एक 16 महीने के मासूम बच्चे से जुड़ा है, जिसकी ओर से दायर याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। याचिका में कहा गया कि बच्चे की मां, अपने पहले पति की मृत्यु के बाद एक नए रिश्ते में आई और अब लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही है। इसी रिश्ते से इस बच्चे का जन्म हुआ। इस आधार पर मां और उसके साथी ने कोर्ट से साथ रहने का अधिकार मांगा था, और यह भी कहा कि उन्हें सुरक्षा दी जाए क्योंकि उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं।
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि यदि दो वयस्क आपसी सहमति से एक साथ रहना चाहते हैं, तो यह उनका संवैधानिक अधिकार है, चाहे वे शादीशुदा हों या नहीं। हाई कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस शेखर सर्राफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित शामिल थे, ने यह फैसला बच्चे की ओर से आई याचिका पर सुनाया। इस याचिका में कहा गया कि मेरी मां अब संबंधित व्यक्ति के साथ रहती हैं और मैं उन्हीं दोनों का बेटा हूं। ऐसे में मेरे भले के लिए जरूरी है कि दोनों को साथ रहने की अनुमति और सुरक्षा दी जाए।
इस मामले में महिला और पुरुष अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन वे 2018 से साथ रह रहे हैं। महिला ने कोर्ट में बताया कि उसके पहले पति की मृत्यु के बाद वह अकेली हो गई थी, जिसके बाद वह एक नए रिश्ते में आई। लेकिन ससुराल पक्ष की ओर से लगातार धमकियां मिल रही हैं और मारपीट की कोशिश भी की जा रही है। पुलिस को कई बार सूचित करने के बाद भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई, जिससे महिला को न्याय की उम्मीद हाई कोर्ट से ही रही।
कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए संभल जिले के एसपी को आदेश दिया कि एफआईआर दर्ज की जाए और महिला, उसके साथी और उनके बच्चे को सुरक्षा प्रदान की जाए। अदालत ने कहा कि पुलिस को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी व्यक्ति उनकी निजी जिंदगी में हस्तक्षेप न करे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के अनुसार, दो वयस्कों का एक साथ रहना, चाहे वे शादीशुदा हों या नहीं, एक मान्यता प्राप्त अधिकार है और इसमें किसी तरह की बाधा नहीं डाली जानी चाहिए।
इस निर्णय ने न केवल इस दंपत्ति को राहत दी है, बल्कि यह फैसला भविष्य में आने वाले कई मामलों के लिए एक मिसाल बन सकता है। यह स्पष्ट संदेश देता है कि भारत का संविधान हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का हक देता है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक पृष्ठभूमि से क्यों न हो। एक छोटे बच्चे की तरफ से आई इस याचिका ने यह भी सिखाया कि कभी-कभी मासूम आवाजें भी बड़े बदलाव की वजह बन सकती हैं।






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