क्या आपने कभी सोचा है कि नवरात्रि के पावन दिनों में मां दुर्गा केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि आपके घर भी पधार सकती हैं? यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि सच्चाई है – और इसका माध्यम है कन्या पूजन। एक ऐसा अलौकिक अनुष्ठान, जिसमें देवियों का साक्षात रूप मानी गईं छोटी-छोटी कन्याएं हमारे घरों में पूजित होती हैं। जैसे ही उनकी नन्ही मुस्कान घर में गूंजती है, मानो साक्षात मां दुर्गा की कृपा बरसने लगती है। यह न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि समाज में नारी शक्ति और सृजन के प्रति सम्मान का सशक्त प्रतीक भी है।
कन्या पूजन को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है – कहीं इसे कुमारी पूजा कहा जाता है, तो कहीं कंजक पूजन। लेकिन इसका सार एक ही है – देवी के नौ स्वरूपों का सम्मान। उत्तर भारत में यह परंपरा नवरात्रि के आठवें या नौवें दिन होती है, जबकि बंगाल में महाअष्टमी को इसे विशेष भव्यता से मनाया जाता है। दो से दस वर्ष की कन्याओं को मां दुर्गा के नव स्वरूपों का प्रतिनिधि माना जाता है – जैसे दो वर्ष की को ‘कुमारी’, तीन की को ‘त्रिमूर्ति’, आठ वर्ष की को ‘शाम्भवी’ और नौ वर्ष की कन्या को ‘दुर्गा’ के रूप में पूजा जाता है। यह वर्गीकरण केवल धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक सत्य का प्रकटीकरण है।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, कुमारी पूजन से न केवल मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति का द्वार खोलता है। दुर्गा सप्तशती में स्पष्ट उल्लेख है कि कन्या पूजन के बिना दुर्गा पूजा अधूरी मानी जाती है। माना जाता है कि इस पूजन से दरिद्रता दूर होती है, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और परिवार में धन, आयु, विद्या एवं समृद्धि का वास होता है। यही कारण है कि देशभर में लाखों श्रद्धालु इस परंपरा को पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक निभाते हैं।
कन्या पूजन की विधि जितनी पवित्र है, उतनी ही सजीव और सौम्यता से भरी हुई भी होती है। पूजन से एक दिन पूर्व कन्याओं को ससम्मान आमंत्रित किया जाता है। महाअष्टमी या नवमी के दिन उनका स्वागत फूलों की वर्षा से किया जाता है, फिर उन्हें पवित्र जल से स्नान कराकर सुंदर लाल वस्त्र और चुनरी पहनाई जाती है। श्रृंगार कर माथे पर तिलक, पैरों पर सिंदूर, और पूजा के दौरान मंत्रोच्चार के साथ पंचोपचार विधि अपनाई जाती है – “ॐ कौमार्यै नमः” मंत्र के साथ देवी स्वरूप कन्याओं के चरणों में पुष्प अर्पित किए जाते हैं और उन्हें स्वादिष्ट भोग कराया जाता है। तिलक और पाद प्रक्षालन के बाद दक्षिणा और उपहार देकर उन्हें सम्मानपूर्वक विदा किया जाता है।