13 मई 2008 की शाम… गुलाबी नगरी जयपुर की वो शाम जब हवा में जश्न नहीं, चीखें गूंज रही थीं… सड़कों पर रंग नहीं, खून बह रहा था। एक के बाद एक आठ धमाके… और फिर चारों ओर अफरा-तफरी, सन्नाटा और मातम। 70 से ज्यादा मासूमों की जान चली गई और 180 से अधिक लोग घायल हुए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तब से अधूरा था — इंसाफ कब मिलेगा?
17 साल बाद, आज वो सवाल जवाब में बदल गया। जयपुर बम ब्लास्ट मामले में आखिरकार कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। वो भी ऐसे दौर में जब देश में न्याय की उम्मीदें अक्सर सवालों से टकरा जाती हैं। लेकिन इस बार कानून की किताब खुली भी, और सही पन्ना भी पलटा।
जयपुर की विशेष कोर्ट ने 2008 में चांदपोल बाजार स्थित रामचंद्र मंदिर के पास मिले नवें जिंदा बम से जुड़े केस में चार आतंकियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। शाहबाज हुसैन, सरवर आजमी, मोहम्मद सैफ और सैफुर्रहमान – इन चारों को कोर्ट ने IPC, UAPA और विस्फोटक अधिनियम की अलग-अलग धाराओं के तहत दोषी पाया। विशेष न्यायाधीश रमेश कुमार जोशी की अदालत ने साफ कहा, “सजा हुई है, मतलब गुनाह भी हुआ है।” इस फैसले ने न सिर्फ पीड़ित परिवारों को राहत दी, बल्कि भारतीय न्याय व्यवस्था की आत्मा को भी फिर से जीवित कर दिया।
कोर्ट ने चारों दोषियों को IPC की धारा 120B (आपराधिक षड्यंत्र), 121A (राजद्रोह), 307 (हत्या की कोशिश), 153A (धार्मिक विद्वेष फैलाना), UAPA की धारा 13 और 18, तथा विस्फोटक अधिनियम की धाराएं 4, 5 और 6 के तहत दोषी ठहराया। अभियोजन पक्ष के वकील सागर तिवाड़ी ने कोर्ट में दलील दी कि यह एक गंभीरतम अपराध है और दोषियों को शेष जीवन तक जेल में ही रहना चाहिए। वहीं बचाव पक्ष के वकील मिन्हाजुल हक ने कहा कि चारों आरोपी पहले ही 15 साल जेल में बिता चुके हैं और अन्य मामलों में हाईकोर्ट से बरी हो चुके हैं, इसलिए सजा में नरमी बरती जाए।
फैसला सुनाते वक्त कोर्ट की टिप्पणी ने न्याय के मूलभाव को उजागर किया – “सबसे बड़ा न्यायालय, हमारा मन होता है… क्या गलत है, क्या सही, यह हमारा मन जानता है।” अदालत ने यह भी दोहराया कि जब सजा दी जाती है, तो उसका सीधा अर्थ है कि अपराध साबित हुआ है। यह टिप्पणी न सिर्फ कानूनी दस्तावेज का हिस्सा बनी, बल्कि एक गूंज बनकर उन सभी लोगों तक पहुँची जो पिछले 17 सालों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे थे।
13 मई 2008 को जयपुर के माणक चौक, त्रिपोलिया, चांदपोल, जोहरी बाजार सहित कई इलाकों में सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे। ये धमाके इतनी बर्बरता से हुए कि पूरा शहर थर्रा उठा। गली-गली से चीखें आईं, अस्पताल शवों से भर गए और पूरे देश का दिल दहल गया। लेकिन एक बम — जो चांदपोल बाजार के एक गेस्ट हाउस के पास मिला — 15 मिनट पहले डिफ्यूज कर दिया गया। अगर वो भी फटता, तो जयपुर एक और बड़ी त्रासदी से नहीं बच पाता।






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