क्या आपने कभी सोचा है कि महज़ 165 रुपये की मिठास किसी को जेल की दहलीज़ तक पहुंचा सकती है? जबलपुर में घटित यह घटना सिर्फ एक मामूली चोरी नहीं, बल्कि सिस्टम की संवेदनशीलता, कानून के दायरे और समाज की नैतिकता पर कई सवाल खड़े करती है। सीहोरा थाना क्षेत्र में एक युवक गुटखा खरीदने गया था, लेकिन रसगुल्लों की मिठास देख उसकी नीयत बदल गई। और यही पल था, जब एक छोटी-सी भूल बड़ी कानूनी उलझन बन गई। यह मामला जितना हास्यास्पद लगता है, उतना ही गहराई से सोचने को भी मजबूर करता है।
जबलपुर के सीहोरा क्षेत्र की एक बेकरी में शीला विश्वकर्मा नामक महिला की दुकान पर आशुतोष ठाकुर और संचित शर्मा पहुंचे। मकसद था 40 रुपये का गुटखा लेना। लेकिन तभी उनकी नज़र दुकान में रखे रसगुल्लों पर जा टिकी। दुकानदार आयुष झपकी ले रहे थे, और बस मौके का फायदा उठाकर दोनों ने चुपचाप 125 रुपये के रसगुल्ले जेब में डाल लिए। फिर दुकानदार को जगाया और गुटखा मांगा। भुगतान के लिए ऑनलाइन ट्रांजैक्शन का बहाना बनाया और बिना पैसे दिए वहां से चलते बने। कुछ देर बाद जब आयुष को शक हुआ, तो उन्होंने CCTV फुटेज देखा—और सारा माजरा साफ़ हो गया।
आयुष ने बिना समय गंवाए पुलिस स्टेशन पहुंचकर मामला दर्ज करवाया। FIR में बताया गया कि कुल 165 रुपये की चोरी हुई है—जिसमें 125 रुपये के रसगुल्ले और 40 रुपये का गुटखा शामिल था। CCTV फुटेज सबूत के तौर पर पेश किया गया। मामला चर्चा का विषय तब बना, जब यह जानने पर कि यह अपराध “असंज्ञेय” की श्रेणी में आता है, स्थानीय पुलिस थाने के TI पर अफसरों ने जवाबदेही तय की। एएसपी सूर्यकांत शर्मा ने जानकारी दी कि TI से इस पूरे मामले पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) के अनुसार 5,000 रुपये से कम की चोरी असंज्ञेय अपराध मानी जाती है, यानी ऐसे मामलों में पुलिस बिना कोर्ट की अनुमति के सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इस स्थिति में सिर्फ एनसीआर दर्ज कर पीड़ित को मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करवाने की सलाह दी जाती है। मगर जब मामला मीडिया और अधिकारियों तक पहुंचा, तो कार्रवाई के नाम पर हलचल मच गई। सवाल यह उठता है कि क्या इतने मामूली मामलों पर पुलिस का वक्त और संसाधन खर्च करना समझदारी है?





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