25 अप्रैल की सुबह बाज़ार में उम्मीदों की रौशनी थी, लेकिन दोपहर तक डर और अफरातफरी ने उसकी जगह ले ली। सेंसेक्स ने 1000 अंकों की छलांग नीचे लगाई, और निवेशकों की आंखों में सिर्फ़ एक सवाल तैरता रहा – “आख़िर हुआ क्या?” 10 लाख करोड़ रुपये एक ही दिन में स्वाहा हो गए! लेकिन इसकी शुरुआत सिर्फ एक आंकड़े से नहीं, बल्कि एक उबाल लेती सीमा पार की साज़िश से हुई। कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले में 28 निर्दोष भारतीयों की हत्या ने भारत को झकझोर दिया। जवाबी कार्रवाई में जब भारत ने सिंधु जल संधि तोड़ने का फैसला लिया, तो असर सिर्फ़ बॉर्डर पर नहीं, बाज़ार में भी दिखा।
पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई में भारत से सभी व्यापारिक संबंध तोड़ने का एलान कर दिया। इसका सीधा असर दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ा। जहां कराची स्टॉक एक्सचेंज 2000 अंक गिर गया, वहीं भारतीय निवेशक भी डर की गिरफ्त में आ गए। अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की नज़र अब सिर्फ़ घाटे पर थी। ये सिर्फ़ दो देशों की तनातनी नहीं थी, बल्कि एक पूरी आर्थिक प्रणाली का डगमगाना था। डर, अनिश्चितता और अविश्वास ने बाज़ार की रीढ़ तोड़ दी।
मार्च तिमाही के नतीजे जैसे-जैसे सामने आ रहे हैं, वैसे-वैसे कंपनियों की परफॉर्मेंस निवेशकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है। इसके चलते विदेशी निवेशक अपने पैसे निकालने लगे हैं। उन्हें भारत की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति अस्थिर लगने लगी है। बाज़ार में पूंजी की निकासी शुरू होते ही गिरावट का दौर तेज़ हो गया। विदेशी पूंजी की इस वापसी ने शेयर बाज़ार के ग्लोबल सपनों पर पानी फेर दिया।
23 अप्रैल तक बाज़ार में सात दिनों की तेज़ी देखने को मिली थी। लेकिन ये तेज़ी भी कुछ निवेशकों के लिए मुनाफावसूली का अवसर बन गई। ऊंचे स्तरों पर बैठे बड़े निवेशकों ने अपने शेयर बेचना शुरू कर दिया। ये एक मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया थी – “अब और नहीं बढ़ेगा, अब बेच दो।” और इसी भीड़-मानसिकता ने बाज़ार को एक और झटका दे दिया। यह गिरावट केवल आर्थिक नहीं, मनोवैज्ञानिक भी थी।







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