सोचिए, अगर एक मुस्लिम लड़की गैर-मुस्लिम युवक से प्यार कर बैठे तो…? क्या ये सिर्फ एक गुनाह है या फिर किसी मजहब की दीवार लांघने की कोशिश? इस्लामिक दुनिया में अक्सर इसका जवाब मिलता है—’हराम’। लेकिन इसी दुनिया में एक देश है, जहां मोहब्बत पर मजहब की मुहर नहीं लगती। जहां एक मुस्लिम लड़की अपने दिल की सुन सकती है—बिना किसी डर, धमकी या कानून की बंदिश के। ये देश न सऊदी अरब है, न ईरान और न ही पाकिस्तान… ये देश है अफ्रीका के उत्तरी छोर पर बसा ट्यूनिशिया। एक ऐसा मुल्क जिसने महिलाओं की आज़ादी के लिए वो फैसला लिया, जो बाकी इस्लामिक देश आज तक लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
ट्यूनिशिया—जहां रेत से इतिहास निकला है, और मोहब्बत को संविधान की पनाह मिली है। ये देश सिर्फ अपने समंदर और संस्कृति के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि अपने आधुनिक सोच और प्रगतिशील कानूनों के लिए भी मिसाल बन चुका है। 1973 से पहले यहां भी वही परंपरागत सोच हावी थी—मुस्लिम लड़की अगर किसी गैर-मुस्लिम लड़के से निकाह करना चाहे, तो पहले उसे इस्लाम कुबूल करना पड़ता था। यानी दिल से पहले मजहब को तवज्जो दी जाती थी। लेकिन 2017 में सब कुछ बदल गया—जब ट्यूनिशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति बेजी केड एसेब्सी ने इस नियम को खत्म कर दिया और कहा, “मोहब्बत पर कानून की पाबंदी अब नहीं चलेगी।”
इस ऐतिहासिक फैसले ने ट्यूनिशियाई समाज में खलबली मचा दी। एक तरफ उदारवादी सोच के लोगों ने इसका स्वागत किया, तो दूसरी तरफ कट्टरपंथी मौलवियों और धार्मिक संगठनों ने सरकार को जमकर कोसा। उनका कहना था कि ये कदम ट्यूनिशिया को अरब देशों से दूर ले जाएगा, जहां इस्लामिक शरीया कानून को सर्वोपरि माना जाता है। लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। वो अपने फैसले पर डटी रही और कहा कि ट्यूनिशियाई महिलाएं किसी की जागीर नहीं हैं, उन्हें अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने का पूरा अधिकार है। इस विरोध के बावजूद, समाज में धीरे-धीरे बदलाव आया और आज ट्यूनिशिया की लड़कियां बिना मजहबी दवाब के अपने जीवन साथी को चुन रही हैं।
ट्यूनिशिया की सबसे बड़ी ताकत है उसका संविधान, जो महिलाओं को केवल अधिकार ही नहीं देता, बल्कि उन्हें संरक्षण भी देता है। यदि कोई मुस्लिम महिला किसी गैर-मुस्लिम से शादी करना चाहती है, तो पुलिस और प्रशासन न सिर्फ इस शादी को मान्यता देते हैं, बल्कि किसी भी तरह की धमकी या हिंसा से उन्हें सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। यही वजह है कि ट्यूनिशिया को आज अरब दुनिया का सबसे प्रगतिशील इस्लामिक देश कहा जाता है, जहां महिलाओं के हक़ सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सड़कों और अदालतों तक फैले हुए हैं।