दमोह (मध्यप्रदेश): सोचिए, आपके घर का कोई सदस्य गंभीर हृदय रोग से जूझ रहा हो। आप उसे बेहतर इलाज की उम्मीद में अस्पताल ले जाएं और सामने एक “लंदन रिटर्न डॉक्टर” मिले — स्मार्ट, आत्मविश्वासी, नाम भी विदेशी ‘एनकेम जॉन’। आप आंख मूंदकर भरोसा कर लें, और फिर… कुछ ही दिनों में वह इंसान, जिसके ठीक होने की उम्मीद लेकर आप आए थे, वापस कभी घर न लौटे। यह कोई फिल्म की कहानी नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के दमोह जिले का वो खौफनाक सच है, जो हर नागरिक को झकझोरने के लिए काफी है।
पर्दाफाश हुआ है एक ऐसे फर्जी डॉक्टर का, जिसने Mission Hospital में “लंदन के हार्ट स्पेशलिस्ट” के नाम पर नौकरी पाई, और फिर सात मासूम मरीजों के सीने चीरे — और उनकी जानें ले लीं। फरवरी 2025 में हुई ये सभी सर्जरीज़ अब सुर्खियों में हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस डॉक्टर का असली नाम ‘नरेंद्र यादव’ है, जो ना तो किसी मेडिकल कॉलेज से पढ़ा है, ना ही उसके पास किसी तरह की सर्जन की वैध डिग्री है। इसके बावजूद Mission Hospital जैसे संस्थान में उसे हृदय रोग विशेषज्ञ के तौर पर नियुक्त कर लिया गया और प्रशासनिक लापरवाही की वजह से यह काला सच महीनों तक दबा रहा।
इस गंभीर मामले का खुलासा तब हुआ, जब बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दीपक तिवारी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) में इस पूरे प्रकरण की शिकायत की। उन्होंने अपनी शिकायत में दावा किया कि यह अस्पताल प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत आने वाले मरीजों का इलाज करता है। इसका मतलब ये है कि सात जानों के साथ-साथ जनता के टैक्स की राशि का भी गलत इस्तेमाल हुआ है। मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने इस मुद्दे को सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किया और मामले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। कानूनगो ने लिखा — “एक फर्जी डॉक्टर ने मिशनरी अस्पताल में हार्ट के मरीजों की जान ली, अब जांच जरूरी है कि कैसे उसे नियुक्ति मिली और इतने बड़े स्तर की लापरवाही हुई।”
अब सवाल उठ रहे हैं स्वास्थ्य विभाग की भूमिका पर। जिले के सीएमएचओ डॉ. मुकेश जैन ने जवाब में बस इतना कहा — “मामला जांच में है, अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है।” लेकिन जनता पूछ रही है — जब एक निजी अस्पताल में लगातार 7 मौतें हुईं, तो क्या स्वास्थ्य विभाग पूरी तरह आंख मूंदे बैठा था? क्या जिला प्रशासन को केवल एक शिकायत के बाद ही नींद खुली? और सबसे अहम, जब सरकारी योजनाओं का पैसा भी इसमें खर्च हुआ, तो इस धोखाधड़ी के लिए ज़िम्मेदार कौन?