Thursday, April 10, 2025

MP News : भोपाल के 126 कब्रिस्तानों पर अवैध कब्जा, बस्तियों के रूप में हो रहा अतिक्रमण

भोपाल, जिसे झीलों का शहर कहा जाता है, अब धीरे-धीरे ‘कब्रिस्तान विहीन’ शहर बनता जा रहा है। वक्फ बोर्ड के दस्तावेजों में दर्ज 150 से अधिक कब्रिस्तानों में से, आज की तारीख में केवल 15 से 24 ही बचे हैं, जिनका अस्तित्व अभी भी किसी तरह कायम है। बाकी 126 कब्रिस्तानों पर आज बस्तियों की दीवारें खड़ी हैं, कॉलोनियों के गेट लगे हैं, और दुकानों की तिजोरियों में अब वहां की ज़मीन की कीमत गिनी जा रही है। सवाल है – ये संपत्ति अल्लाह के नाम पर वक्फ की गई थी, तो फिर इंसानों ने इस पर कब्जा कैसे कर लिया?

हाजी मोहम्मद इमरान, जमीअत उलमा ए हिंद (म.प्र. यूनिट) के सचिव बताते हैं कि 1990 तक भोपाल में छोटे-बड़े करीब 210 कब्रिस्तान मौजूद थे। आज उनमें से केवल 15 ही बचे हैं। कई कब्रिस्तानों पर पूरी कॉलोनियां बन चुकी हैं, जैसे कबाड़खाने का मुलकन बी और गंज शहीदा कब्रिस्तान – जहां अब अस्पताल और बस्तियां बस चुकी हैं। छोला का फूटा मकबरा सिर्फ एक आखिरी गवाही बनकर बचा है। वहीं सेमरा कलां, कोलार के गेहूं खेड़ा और बूढ़ा खेड़ा जैसे कब्रिस्तान भी अतिक्रमण की गिरफ्त में हैं।

यह सिर्फ ज़मीन पर कब्जा नहीं, यह उस विरासत पर हमला है जो भावनाओं से जुड़ी है। ऐसे परिवार, जो अपने पूर्वजों के पास अपने प्रियजनों को दफनाना चाहते थे – आज उनके लिए वो जमीन ही नहीं बची। कई कब्रिस्तानों ने अब नई कब्रों के लिए जगह देना बंद कर दिया है, तो कुछ के रास्ते तक गायब कर दिए गए हैं।

वक्फ का अर्थ है – अल्लाह की राह में समाज की भलाई के लिए कोई जमीन या संपत्ति देना। यह एक नीयत का सवाल होता है, जिसमें वक्फ करने वाले को तब तक पुण्य मिलता है, जब तक वह संपत्ति समाज के काम आती रहे। लेकिन आज स्थिति यह है कि वक्फ संपत्तियां ही सबसे ज्यादा अतिक्रमण का शिकार हो रही हैं।

हाजी इमरान का आरोप है कि यह सब कुछ वक्फ बोर्ड की जानकारी में होते हुए भी हो रहा है। वक्फ बोर्ड ने कभी समाज को सही जागरूकता नहीं दी। न ही उन संपत्तियों की रक्षा की जिन पर गरीब मुसलमानों के कल्याण की उम्मीद टिकी थी। वह कहते हैं – “नया कानून लाने की जरूरत नहीं, अगर ईमानदारी से काम होता तो आज यह दिन नहीं आता।”

अब सवाल उठता है – जब सब कुछ वक्फ बोर्ड की जानकारी में है, तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? भोपाल जैसे संवेदनशील शहर में, जहां सामाजिक समरसता की मिसाल दी जाती है, वहीं कब्रिस्तान जैसी पवित्र जगहें राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता की शिकार बन चुकी हैं।

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