पुणे: महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग ने रविवार को जानकारी दी कि गुलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) से जुड़ी पहली मौत पुणे में दर्ज की गई है। अब तक 101 लोग इस दुर्लभ बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, सोलापुर में संदिग्ध मौत की जानकारी मिली है, लेकिन विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिलहाल 16 मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं। संक्रमितों में 19 लोग नौ साल से कम उम्र के हैं, जबकि 50-80 वर्ष आयु वर्ग के 23 मामले दर्ज किए गए हैं। परीक्षणों में कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया पाया गया है, जिसे इस बीमारी के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है।
स्वास्थ्य विभाग ने GBS के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए व्यापक कदम उठाए हैं। पुणे के प्रभावित इलाकों से पानी के सैंपल लिए जा रहे हैं। खड़कवासला बांध के पास एक कुएं में ई.कोली बैक्टीरिया का उच्च स्तर पाया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इस कुएं का उपयोग हो रहा था या नहीं। नागरिकों को सलाह दी गई है कि वे पीने के पानी को उबालें और खाने से पहले भोजन को अच्छी तरह गर्म करें। रविवार तक 25,578 घरों का सर्वेक्षण किया गया है ताकि संभावित नए मरीजों का पता लगाया जा सके।
पुणे नगर आयुक्त डॉ. राजेंद्र भोसले ने बताया कि नगर निगम क्षेत्र में 64 मरीजों का इलाज चल रहा है, जिनमें से 13 वेंटिलेटर पर हैं। उन्होंने कहा, “GBS के इलाज का पूरा खर्च सरकार वहन करेगी। गरीब मरीजों के लिए विशेष योजना बनाई गई है।” राज्य के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने घोषणा की कि पुणे और आसपास के क्षेत्रों में मरीजों को ससून अस्पताल, कमला नेहरू अस्पताल और वाईसीएम अस्पताल में मुफ्त इलाज मिलेगा।
चिकित्सकों के अनुसार, गुलियन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से नसों पर हमला करती है। इसके लक्षणों में मांसपेशियों की कमजोरी, झुनझुनी, चलने में कठिनाई और गंभीर मामलों में सांस लेने में परेशानी शामिल है। अधिकांश मरीज छह महीने में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ को पूरी तरह स्वस्थ होने में एक वर्ष या उससे अधिक का समय लग सकता है। GBS का इलाज बेहद महंगा है। इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन का एक कोर्स 2.5 लाख रुपये तक का खर्च ला सकता है।
शहर के तीन बड़े अस्पतालों ने इस बीमारी के बढ़ते मामलों को लेकर स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों को अलर्ट किया है। 10 जनवरी तक 26 मरीज भर्ती हुए थे, जो 19 जनवरी तक बढ़कर 73 हो गए। राज्य सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए फ्री ट्रीटमेंट की योजना लागू की है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यह कदम गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए राहतकारी साबित होगा।





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