महाकुंभ में इन दिनों दो साधुओं का नाम काफी चर्चा में है। एक हैं ‘अनाज वाले बाबा’, जो अपने सिर पर फसलों को उगा रहे हैं और पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं, वहीं दूसरे हैं ‘चाबी वाले बाबा’, जो समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ लड़ते हुए एक अद्भुत यात्रा पर निकले हैं। इस वीडियो में हम इन दोनों बाबा की अनोखी कहानियों और उनके संदेशों पर बात करेंगे।
आज हम आपको महाकुंभ से जुड़ी दो अनोखी कहानियाँ सुनाएंगे। एक तरफ जहां ‘अनाज वाले बाबा’ अपने सिर पर फसलों को उगाकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता का संदेश दे रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ‘चाबी वाले बाबा’ समाज में फैली बुराइयों से लड़ते हुए अपने अद्भुत तरीके से लोगों को जीवन के सही रास्ते पर चलने का संदेश दे रहे हैं। तो आइए, जानते हैं इन दोनों साधुओं के बारे में।
महाकुंभ में आने वाले हर साधु का एक अलग रूप और रंग होता है। कुछ साधु भगवान की भक्ति में इस कदर लीन होते हैं कि वे अपने शरीर के साथ अनोखे प्रयोग करते हैं। ऐसी ही एक अनोखी शख्सियत हैं ‘अनाज वाले बाबा’, जिनका असली नाम अमरजीत है और ये उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के मारकुंडी गांव के रहने वाले हैं। बाबा अमरजीत ने 28 साल पहले सन्यास लिया और हठयोगी बन गए। उनका कहना है कि वे पर्यावरण को लेकर बेहद चिंतित हैं, इसीलिए उन्होंने सिर पर फसलें उगानी शुरू कीं। उनका मानना है कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, और इसलिए वे हरियाली का संदेश दे रहे हैं। बाबा के सिर पर चना, गेहूं और बाजरा जैसे फसलें उग चुकी हैं, जो अब एक फीट तक पहुंच चुकी हैं। बाबा का कहना है कि यह सब एक संत ही कर सकता है और उनके लिए यह हठयोग है। उन्होंने कहा कि मौनी अमावस्या के दिन यह फसल पूरी तरह तैयार हो जाएगी और वे इसे अपने भक्तों को प्रसाद के रूप में देंगे।
वहीं महाकुंभ में एक और साधु हैं, जिनका नाम ‘चाबी वाले बाबा’ है। ये बाबा अपनी चाबी के माध्यम से लोगों को समाज में फैली बुराइयों से लड़ने और सही मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं। बाबा का नाम है हरिश्चंद्र विश्वकर्मा, जिन्हें लोग कबीरा बाबा के नाम से भी जानते हैं। 50 वर्षीय हरिश्चंद्र जी 16 साल की उम्र में समाज में फैली नफरत और बुराइयों से लड़ने का संकल्प लेकर घर से निकल पड़े थे। वे कबीरपंथी विचारधारा के अनुयायी हैं और उनका मानना है कि अध्यात्म कोई बाहरी चीज नहीं है, बल्कि वह इंसान के अंदर बसा हुआ है। बाबा ने अपनी यात्रा में हजारों किलोमीटर की दूरी तय की है और वह एक अद्भुत चाबी के साथ यात्रा करते हैं। इस चाबी पर लिखा है, “हे मानव, सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलो…मैं आ गया हूं।” उनका कहना है कि वह इस चाबी के माध्यम से लोगों को जीवन का सही मार्ग बताना चाहते हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि आजकल लोग इस पर ध्यान नहीं देते।
दोनों बाबा अपने-अपने तरीके से समाज में जागरूकता फैला रहे हैं और लोगों को सही मार्ग पर चलने का संदेश दे रहे हैं। एक बाबा जहां पर्यावरण की रक्षा के लिए हठयोग कर रहे हैं, वहीं दूसरा बाबा समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं। इन दोनों साधुओं की अनोखी जीवन शैली और उनके संदेश महाकुंभ में एक नई ऊर्जा और प्रेरणा का कारण बन चुके हैं।