क्या आप जानते हैं कि 3 मई 2025 को धरती पर ऐसा अद्भुत संयोग बन रहा है, जो अगली कई पीढ़ियों तक शायद ही फिर दिखाई दे? एक ऐसा दिन… जब मात्र एक डुबकी से जीवनभर के पाप धुल सकते हैं, जब मात्र एक दान से अनंत पुण्य संचित हो सकता है, और जब एक सच्ची भक्ति से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं गंगा सप्तमी 2025 की — वो पावन तिथि जब स्वर्ग के द्वार स्वयं धरती पर खुलते हैं। आइए, इस रहस्यमयी अवसर के हर पहलू को गहराई से जानते हैं…।
गंगा सप्तमी 2025 इस बार खास बन गई है, क्योंकि 3 मई को तीन अत्यंत दुर्लभ योग बन रहे हैं — त्रिपुष्कर योग, रवियोग और शिववास योग। यही नहीं, पुनर्वसु और पुष्य नक्षत्रों की विशेष कृपा भी इस दिन को और अधिक पवित्र बना रही है। पद्म पुराण के अनुसार, गंगा सप्तमी के दिन गंगा माता का पूजन और स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। इस अद्वितीय संयोग में गंगा स्नान करने से रिद्धि-सिद्धि, यश-सम्मान और जीवन में अपार सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
3 मई की सुबह 07:51 मिनट से सप्तमी तिथि प्रारंभ होगी और अगले दिन 04 मई की सुबह 07:18 मिनट तक रहेगी। मान्यता है कि इस विशेष काल में गंगा में स्नान करने मात्र से 10 प्रकार के शारीरिक, मानसिक और वाचिक पाप नष्ट हो जाते हैं। जो भक्त किसी कारणवश गंगा नदी तक नहीं पहुँच सकते, वे अपने स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर घर पर ही स्नान कर सकते हैं और वही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों तक शुद्धि का अनूठा साधन है।
गंगा सप्तमी के दिन दान का विशेष महत्व है। पानी से भरी मटकी, अन्न, वस्त्र और धन का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इस दिन किसी जरूरतमंद या ब्राह्मण को श्रद्धा पूर्वक अन्न, धन अथवा वस्त्र दान करने से साधक को ऐसे पुण्य की प्राप्ति होती है, जो कई जन्मों तक साथ रहता है। साथ ही गंगाजल से घर को शुद्ध करना अत्यंत शुभ फलदायी है, जिससे घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होकर सुख-समृद्धि का वास होता है।
गंगा सप्तमी केवल एक स्नान पर्व नहीं, बल्कि गंगा माता के पुनः प्रकट होने का दिन भी है। पुराणों के अनुसार, महर्षि जह्नु ने अपनी तपस्या में बाधा डालने के कारण गंगा को पी लिया था। बाद में, अपने दाएं कान से गंगा को पृथ्वी पर छोड़ दिया, इसीलिए गंगा का एक नाम “जाह्नवी” भी पड़ा। गंगा सप्तमी के दिन गंगा के इस दिव्य प्राकट्य को स्मरण कर पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
श्रीमद्भागवत महापुराण में गंगा के महत्व को बड़े आदर और श्रद्धा से वर्णित किया गया है। शुकदेव जी ने राजा परीक्षित से कहा था कि जब राजा सगर के पुत्रों की राख गंगाजल में मिलाई गई, तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। कल्पना कीजिए, अगर केवल राख का गंगाजल से मिलना इतना पुण्यदायी है, तो इस पावन दिन स्वयं गंगा स्नान और दान से कितना अनुपम पुण्य प्राप्त होगा!
गंगा सप्तमी पर स्नान के बाद मां गंगा का विधिवत पूजन करना चाहिए। स्नान करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें और गंगा का ध्यान करें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें, देवी-देवताओं पर गंगाजल अर्पित करें, पुष्प अर्पित करें, और मां गंगा की आरती करें। एक कटोरी में गंगाजल भरकर उसके समक्ष गाय के घी का दीपक जलाएं और श्रद्धा पूर्वक पूजन संपन्न करें।
गंगा जल को केवल पवित्र जल नहीं, बल्कि एक दिव्य औषधि माना गया है जो नकारात्मक ऊर्जा का नाश करती है और वातावरण को शुद्ध करती है। गंगा सप्तमी के दिन गंगाजल से घर के कोने-कोने को शुद्ध करना चाहिए और भगवान शिव का अभिषेक करना अनिवार्य माना गया है। क्योंकि मां गंगा स्वयं भगवान शिव की जटाओं से प्रवाहित होती हैं, इसलिए इस दिन का शिव पूजन साधक को विशेष कृपा दिलाता है और जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।





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