एक आम-सी शाम, एक सामान्य-सी ट्रेन यात्रा, लेकिन जैसे ही ट्रेन उज्जैन पार करती है, अचानक घटनाक्रम तेजी से बदल जाता है। घने जंगल के बीच, ट्रेन की एक बोगी से धुआं उठने लगता है—और फिर आग की लपटें दिखाई देती हैं। ट्रेन संख्या 20846, बीकानेर से बिलासपुर जा रही एक्सप्रेस में उस वक्त सैकड़ों यात्री सवार थे। शिवपुरा फ्लैग स्टेशन पार करते ही इंजन के ठीक पीछे लगी पावर कार (जनरेटर कोच) में आग लग गई। यह वह क्षण था जहां अगर चूक होती, तो यह एक बड़ी त्रासदी बन सकती थी। लेकिन इस कहानी का नायक बना ट्रेन का पायलट, जिसने न सिर्फ सूझबूझ से काम लिया, बल्कि पूरे ऑपरेशन को खुद संभालते हुए सैकड़ों लोगों की जान बचा ली।
जैसे ही पायलट को पीछे की बोगी में आग की जानकारी मिली, उसने तुरंत ट्रेन को रोका और किसी भी संभावित विस्फोट या जानमाल के नुकसान से बचने के लिए पावर कार को इंजन समेत ट्रेन से अलग कर दिया। यह कदम सुनने में साधारण लगता है, लेकिन उस जंगल के सन्नाटे और आग की लपटों के बीच यह एक बहादुरी और निर्णय क्षमता का उदाहरण था। वह पावर कार को लेकर अकेले इंजन के साथ तराना स्टेशन पहुंचा, जहां पहले से ही फायर ब्रिगेड को सूचना दी जा चुकी थी। करीब एक घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया गया, और इस बीच मुख्य ट्रेन को सुरक्षित जंगल में खड़ा रखा गया।
पायलट ने जैसे ही आग पर काबू पाया, उसने उसी इंजन से दोबारा जंगल की ओर रुख किया और मुख्य ट्रेन को लेकर पुनः रवाना हो गया। यह पूरी प्रक्रिया करीब डेढ़ घंटे में संपन्न हुई, लेकिन इसमें कहीं भी हड़बड़ाहट नहीं थी—बल्कि एक योजनाबद्ध कार्रवाई दिखी। यात्रियों ने गहरी राहत की सांस ली, और इस बहादुरी को देखकर कई यात्रियों की आंखें नम भी हो गईं। इस घटना में कोई यात्री या रेलवे स्टाफ हताहत नहीं हुआ, जो रेलवे और पायलट दोनों के लिए एक उपलब्धि है।
हालांकि यह हादसा टल गया, पर इसके असर दूर तक पड़े। इस आग की वजह से उज्जैन-मक्सी सेक्शन की चार अन्य ट्रेनें—उज्जैन-भोपाल पैसेंजर, अहमदाबाद-गोरखपुर एक्सप्रेस, लक्ष्मीबाई नगर-योगनगरी ऋषिकेश एक्सप्रेस और इंदौर-बिलासपुर एक्सप्रेस—करीब एक घंटा 40 मिनट की देरी से चलीं। रेलवे ने पूरे मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। अधिकारी अब विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर मुख्यालय भेजेंगे। यह घटना रेलवे के लिए भी एक सबक है कि तकनीकी सुरक्षा और इमरजेंसी रिस्पॉन्स सिस्टम को और मजबूत किया जाए।