9 मई को रिलीज़ होने जा रही थी एक बहुप्रतीक्षित फिल्म—‘अबीर गुलाल’। इस फिल्म से पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान लंबे समय बाद बॉलीवुड में वापसी कर रहे थे। लेकिन फिल्म रिलीज़ से ठीक दो हफ्ते पहले कुछ ऐसा हुआ जिसने न सिर्फ इसकी रिलीज़ पर पानी फेर दिया, बल्कि इससे जुड़ी हर सामग्री इंटरनेट से भी गायब होने लगी। देश में उबाल तब आया जब 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोषों की जान चली गई। इस नृशंस वारदात ने लोगों की भावनाओं को झकझोर दिया और अचानक ही ‘अबीर गुलाल’ एक फिल्म नहीं, एक राजनीतिक-आत्मिक बहस का केंद्र बन गई।
हमले के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी कलाकारों के खिलाफ आक्रोश फूट पड़ा। हजारों की संख्या में लोगों ने ‘अबीर गुलाल’ के बहिष्कार की मांग की। इसका असर इतना तेज़ था कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फिल्म की भारत में रिलीज़ पर रोक लगा दी। यहां तक कि जिन मल्टीप्लेक्सों ने पहले फिल्म दिखाने की अनुमति दी थी, उन्होंने भी हाथ खींच लिया। FWICE यानी वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज़ फेडरेशन ने भी पाकिस्तानी कलाकारों के पूर्ण बहिष्कार की घोषणा दोहराई और इंडस्ट्री को साफ संदेश दिया—अब कोई समझौता नहीं।
इस विवाद का अगला अध्याय शुरू हुआ यूट्यूब पर, जहां फिल्म के दो गाने ‘खुदाया इश्क’ और ‘रंगरसिया’ को अचानक हटा दिया गया। प्रोडक्शन हाउस ‘ए रिचर लेंस एंटरटेनमेंट’ के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल से ये गाने ग़ायब हो गए, जबकि उनके म्यूजिक राइट्स सारेगामा के पास थे। सोशल मीडिया पर हो रहे तीखे विरोध और बहिष्कार के डर से यह कदम उठाया गया, लेकिन न तो फिल्म के निर्माताओं और न ही फवाद-वाणी जैसे सितारों ने इस पर अब तक कोई प्रतिक्रिया दी है। बताया जा रहा है कि एक और गाना ‘तैन तैन’ रिलीज़ होना था, लेकिन वह भी अब ठंडे बस्ते में चला गया है।
फिल्म के सितारों ने पहलगाम हमले की निंदा जरूर की। फवाद खान ने सोशल मीडिया पर दुःख जताते हुए लिखा, “हम पीड़ितों और उनके परिवारों के लिए प्रार्थना करते हैं।” वाणी कपूर ने भी इस त्रासदी को ‘विनाशकारी’ बताया। लेकिन जनता ने इन बयानों को ‘औपचारिक’ माना और सवाल उठाए कि क्या संवेदनाएं कला के व्यापारिक हितों से ऊपर नहीं होनी चाहिए? वहीं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने फिल्म के खिलाफ खुली चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान आतंकवाद को शह देता है और उसके कलाकारों को भारत में मंच देना गलत है।
अबीर गुलाल को लेकर बने विवाद ने एक बार फिर उस बहस को जन्म दिया है—क्या कला और कलाकारों को राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों से अलग किया जा सकता है? क्या पाकिस्तानी कलाकारों का भारत में काम करना उचित है, जब हमारे जवान सीमा पर जान गंवा रहे हैं? अबीर गुलाल अब केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद, भावना और बौद्धिक बहस का केंद्र बन चुकी है। यह फिल्म शायद भारत में न रिलीज हो, लेकिन इसने जो सवाल उठाए हैं, वे आने वाले समय में और भी गूंजेंगे।






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