Friday, December 5, 2025

‘फ़र्ज़ी सीमांकन’ मध्यप्रदेश में किसानों को मार रहा यह अदृश्य ज़हर

मध्य प्रदेश, विशेष रूप से विंध्य क्षेत्र (रीवा, सतना, सीधी, मऊगंज, त्योंथर), में ज़मीन की धोखाधड़ी ने महामारी का रूप ले लिया है। राजस्व विभाग के कर्मचारी, खासकर पटवारी, दलालों के साथ मिलकर फ़र्ज़ी सीमांकन (गलत नापतौल) कर रहे हैं, जिससे किसानों की पुश्तैनी ज़मीन रातों-रात कागज़ों पर छीन ली जा रही है। यह समस्या सिर्फ़ ज़मीन के एक टुकड़े तक सीमित नहीं है; यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सामाजिक सद्भाव और न्याय प्रणाली में लोगों के विश्वास को नष्ट कर रही है। सबसे बड़ी बात, इसमें बहुत से बुजुर्ग, विकलांग, और बीमारों को अलग-अलग तरह से कष्ट सहन पड़ता है। पुलिस द्वारा इन मामलों को ‘सिविल विवाद’ कहकर टाल देना और प्रशासनिक अधिकारियों की ढिलाई ने इस संकट को और गहरा दिया है। इस विस्तृत रिपोर्ट में, हम फ़र्ज़ी सीमांकन की कार्यप्रणाली, इसके भयावह सामाजिक-आर्थिक परिणामों और प्रशासनिक व कानूनी उदासीनता के खिलाफ किसानों के संघर्ष का विश्लेषण करेंगे।

Writer: Journalist Vijay


फ़र्ज़ी सीमांकन की जड़ें और प्रक्रिया

किसानों के लिए उनकी ज़मीन केवल संपत्ति नहीं, बल्कि उनकी पहचान, रोज़ी-रोटी और सामाजिक सुरक्षा का आधार है। मध्य प्रदेश में किसान अपनी ज़मीन को अपनी सबसे बड़ी पूँजी मानते हैं, लेकिन आज इसी पूँजी पर पटवारियों और दलालों का ‘डाका’ पड़ रहा है।

फर्जी सीमांकन एक संगठित भ्रष्टाचार है जो सरकारी प्रक्रिया की खामियों का लाभ उठाता है।

सीमांकन की कानूनी और आदर्श प्रक्रिया

राजस्व संहिता के तहत, सीमांकन एक गंभीर कानूनी प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य ज़मीन की सीमाओं को सटीकता से निर्धारित करना है। इसकी आदर्श प्रक्रिया निम्नलिखित है:

  1. नोटिस जारी करना: सीमांकन से प्रभावित होने वाले सभी ज़मीन मालिकों को कम से कम 7 से 15 दिन पहले लिखित नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें तारीख, समय और स्थान का उल्लेख हो।
  2. मौके पर उपस्थिति: पटवारी, तहसीलदार या नायब तहसीलदार की निगरानी में, सभी पक्षकारों को मौके पर बुलाया जाता है।
  3. दस्तावेज़ीकरण और माप: नक्शा, खसरा और अन्य राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर जीपीएस या चेन के माध्यम से सटीक नापतौल की जाती है।
  4. सहमति और हस्ताक्षर: नाप के बाद, सभी उपस्थित पक्षकारों से दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर या अंगूठे का निशान लिया जाता है, यह प्रमाणित करने के लिए कि वे नापतौल से संतुष्ट हैं।

फ़र्ज़ी सीमांकन: धोखाधड़ी की कार्यप्रणाली

फ़र्ज़ी सीमांकन में पटवारी जानबूझकर इस आदर्श प्रक्रिया का उल्लंघन करते हैं, जिससे एक निर्दोष किसान की ज़मीन पर दूसरे का कब्ज़ा हो जाता है। धोखाधड़ी के मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं:

  • चुपचाप नाप: सबसे आम तरीका है पीड़ित किसान को सूचना ही न देना। पटवारी दबंग या रिश्वत देने वाले पक्ष के साथ मिलकर गुपचुप तरीके से सीमांकन कर देते हैं। जब पीड़ित किसान अपने खेत पर पहुँचता है, तो पाता है कि उसकी सीमाएँ बदल दी गई हैं।
  • जाली हस्ताक्षर का प्रयोग: किसानों को बुलाए बिना ही, उनके नाम से जाली दस्तखत कर दिए जाते हैं। कई मामलों में तो मृतक व्यक्ति के हस्ताक्षर भी रिकॉर्ड में दिखा दिए जाते हैं, जिससे यह साबित हो सके कि सभी पक्षकार मौके पर मौजूद थे और सहमत थे।
  • विवादित ज़मीनों में नियम तोड़ना: ऐसे मामलों में, जहाँ स्पष्ट रूप से पता होता है कि एक पक्ष दबंग है या विवाद की पूरी संभावना है, वहाँ पुलिस की उपस्थिति अनिवार्य होती है। लेकिन पटवारी पुलिस को बुलाने से मना कर देते हैं या जानबूझकर अनुपस्थित रखते हैं। पटवारियों का अक्सर यह रवैया होता है कि वह अपनी मर्ज़ी से काम करेंगे और नियम को नज़रअंदाज़ कर देंगे।
  • दलालों का सक्रिय हस्तक्षेप: ग्रामीण क्षेत्रों में दलालों का एक संगठित नेटवर्क पटवारियों और कभी-कभी उच्च अधिकारियों के साथ मिलकर काम करता है। ये दलाल गरीब, अशिक्षित और कम पहुँच वाले किसानों को निशाना बनाते हैं, रिश्वत की राशि तय करते हैं, और फ़र्ज़ी सीमांकन करवाकर ज़मीन हथियाने में मदद करते हैं।
  • डिजिटल रिकॉर्ड्स से छेड़छाड़: अब नक्शे और खसरा ऑनलाइन उपलब्ध हैं, लेकिन पटवारी या संबंधित कर्मचारी डिजिटल रिकॉर्ड में भी गलत एंट्री कर देते हैं, जिससे ऑनलाइन डेटा भी भ्रष्ट हो जाता है।

किसानों पर विनाशकारी सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

फ़र्ज़ी सीमांकन केवल ज़मीन के कागज़ों में बदलाव नहीं है; यह एक पूरे किसान परिवार के अस्तित्व, सामाजिक प्रतिष्ठा और मानसिक स्वास्थ्य पर सीधा हमला है।

आर्थिक और कृषिगत हानि

  • फसल की बर्बादी: सीमांकन गलत होते ही खेत विवादित हो जाता है। पीड़ित किसान उसमें फसल नहीं उगा पाता, क्योंकि दूसरा पक्ष उसे जबरन रोक देता है। यह स्थिति किसान की रोजी-रोटी पर सीधा प्रहार है।
  • पूँजी का नुकसान: किसान अपनी ज़मीन को बेच नहीं सकता, उस पर लोन नहीं ले सकता और न ही उसे गिरवी रख सकता है। उसकी सबसे बड़ी पूँजी कानूनी रूप से ‘लॉक’ हो जाती है।
  • न्याय पर खर्च: किसानों को न्याय पाने के लिए तहसील, वकीलों, कोर्ट-कचहरी और बार-बार दस्तावेज़ बनवाने में अपनी जमा-पूँजी खर्च करनी पड़ती है, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चरमरा जाती है।

सामाजिक और शारीरिक संघर्ष

  • गाँवों में हिंसा: ज़मीन का विवाद गाँव वालों के बीच अक्सर झगड़े और मारपीट का कारण बनता है। कई बार यह संघर्ष इतना बढ़ जाता है कि लोग स्थायी रूप से दिव्यांग हो जाते हैं, और दुखद रूप से, मौतें भी होती हैं।
  • बुजुर्गों का उत्पीड़न और उपेक्षा: त्योंथर जैसे ग्रामीण इलाकों में युवा रोज़गार के लिए शहरों में रहते हैं, इसलिए उनके बुजुर्ग माता-पिता को ही कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। सर्दी, गर्मी, बारिश या लू, हर मौसम में बेचारे बुजुर्ग किसानों को तहसील के चक्कर काटने पड़ते हैं। उन्हें गाँव से तहसील तक पहुँचने में अत्यधिक कठिनाई होती है, लेकिन उनकी पीड़ा सुनने वाला कोई नहीं होता।
  • पारिवारिक और पशुधन की उपेक्षा: अदालती चक्करों के कारण किसान अपने परिवार के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो पाते। घर में पाले गए पशुओं (गाय, भैंस) की देखभाल भी प्रभावित होती है, क्योंकि किसान का अधिकतर समय दफ्तरों में बीतता है।

गहरा मानसिक तनाव

न्याय की धीमी गति, लगातार तारीख पर तारीख’ का सिलसिला और सरकारी दफ्तरों की संवेदनहीनता किसान को गहरे मानसिक तनाव में धकेल देती है। किसान को दिन-रात यह चिंता सताती है कि उसकी पुश्तैनी ज़मीन उसके हाथ से निकल जाएगी, जिससे उसके परिवार का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। यह तनाव कई बार उन्हें आत्महत्या जैसे भयानक कदम उठाने पर भी मजबूर कर देता है।


पुलिस और प्रशासनिक तंत्र की विफलता

इस संकट का सबसे बड़ा पहलू यह है कि जब किसान धोखाधड़ी की शिकायत लेकर कानूनी दरवाज़े पर जाता है, तो वहाँ भी उसे निराशा ही मिलती है।

पुलिस का ‘सिविल विवाद’ वाला रवैया

कानून सरल नहीं, पर स्पष्ट है: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएँ जैसे जालसाज़ी (Forgery), धोखाधड़ी (Cheating), और आपराधिक साज़िश (Criminal Conspiracy) फ़र्ज़ी सीमांकन के मामलों में सीधे लागू होती हैं। यह एक संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) है, जिसका मतलब है कि पुलिस को तत्काल FIR दर्ज करनी चाहिए।

  • एफआईआर दर्ज करने से इनकार: जमीनी हकीकत यह है कि पुलिस अक्सर मामले को ज़मीन-जायदाद का कारोबारी विवाद’ या सिविल/टाइटल’ मामला बताकर एफआईआर दर्ज करने से मना कर देती है।
  • साक्ष्य मिटने का खतरा: एफआईआर दर्ज न होने का सीधा नुकसान पीड़ित किसान को होता है, क्योंकि समय पर जाँच शुरू न होने के कारण आपराधिक साक्ष्य मिट जाते हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अनदेखी: सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि अगर शिकायत में अपराध का तगड़ा संकेत है, तो पुलिस को ‘ठंडी-सी जाँच’ करने के बजाय तुरंत एफआईआर दर्ज करनी चाहिए।
  • पुलिस की मिलीभगत: किसानों की शिकायतें हैं कि कुछ थानाप्रभारी या पुलिसकर्मी सामने वाले पक्ष से रिश्वत लेकर मामले को हल कर देते हैं या दबाव में आकर एफआईआर दर्ज नहीं करते। लोकायुक्त की कार्रवाईयों में भी पटवारियों के साथ अन्य अधिकारियों को रिश्वत लेते पकड़ा गया है, जो इस गठजोड़ की ओर संकेत करता है।

राजस्व अधिकारियों की ढिलाई

राजस्व विभाग की प्रक्रिया भी पीड़ित किसान को राहत देने में अक्सर विफल रहती है।

  • अनसुनी शिकायतें: किसान तहसीलदार, एसडीएम और कलेक्टर को लिखित शिकायतें देते हैं, लेकिन उनकी शिकायत को अक्सर अनसुना कर दिया जाता है।
  • पीड़ित को बार-बार बुलाना: पीड़ित किसान को बार-बार दफ्तर बुलाया जाता है, उसके दस्तखत लिए जाते हैं, और उसे नई तारीख पकड़ा दी जाती है। कई बार पीड़ित अकेला जाता है, जबकि दूसरा पक्ष कभी सुनवाई पर नहीं पहुँचता, फिर भी मामला जानबूझकर लंबा खींचा जाता है।
  • दोषी पटवारी पर कार्रवाई न होना: जब किसी पटवारी द्वारा किया गया फ़र्ज़ी सीमांकन उच्च अधिकारी द्वारा निरस्त हो जाता है, तो पटवारी के ख़िलाफ़ कोई सख़्त विभागीय या आपराधिक कार्रवाई नहीं होती। ऐसा न होने से भ्रष्ट पटवारियों के बीच कोई डर पैदा नहीं होता।

कानूनी प्रावधान और किसानों के लिए समाधान

कानून में फ़र्ज़ी सीमांकन से लड़ने के लिए पर्याप्त हथियार मौजूद हैं, लेकिन किसानों को उनका सही इस्तेमाल करने की ज़रूरत है।

उपलब्ध कानूनी रास्ते

  1. आपराधिक कार्यवाही (CrPC):
    • एसपी/एसडीएम को आवेदन: यदि थाने में एफआईआर दर्ज न हो, तो पीड़ित एसपी (पुलिस अधीक्षक) या एसडीएम (उप-मंडल अधिकारी) को लिखित आवेदन भेज सकता है (रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा)।
    • मजिस्ट्रेट से निर्देश (धारा 156(3) CrPC): पुलिस के मना करने पर, पीड़ित सीधे मजिस्ट्रेट के पास आवेदन कर सकता है। मजिस्ट्रेट पुलिस को जाँच करने और एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दे सकता है।
    • निजी शिकायत (धारा 200 CrPC): पीड़ित सीधे मजिस्ट्रेट के सामने अपनी शिकायत और गवाहों के बयान दर्ज करा सकता है।
  2. भ्रष्टाचार विरोधी कार्यवाही:
    • लोकायुक्त/विजिलेंस: अगर पटवारी रिश्वत मांगता है, तो पीड़ित सीधे लोकायुक्त या विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (SPE) में शिकायत दर्ज करा सकता है, जो ट्रैप ऑपरेशन चलाकर रिश्वतखोर अधिकारी को रंगे हाथों पकड़ सकते हैं।
  3. राजस्व न्यायालय और सिविल वाद:
    • राजस्व अपील: किसान तहसीलदार के आदेश के खिलाफ एसडीएम, कलेक्टर और राजस्व मंडल तक अपील कर सकता है।
    • सिविल कोर्ट में वाद: धोखाधड़ी और टाइटल से जुड़े गंभीर विवादों के लिए सिविल कोर्ट में वाद दायर करना भी एक प्रभावी रास्ता है, जहाँ वकील आपकी बात को सही तरीके से रखकर न्याय में तेज़ी ला सकते हैं।
  4. पारदर्शिता के औज़ार:
    • आरटीआई: सीमांकन की कॉपी, नोटिस, उपस्थिति रजिस्टर, और जीडी एंट्रीज़ की जानकारी सूचना का अधिकार (RTI) के माध्यम से माँगकर दस्तावेज़ी साक्ष्य जुटाए जा सकते हैं।

किसानों के लिए व्यावहारिक सुझाव (फार्मर-लिस्ट)

  • कागज़ात को सुरक्षित रखें: अपने पुराने खसरा, खतौनी, बंटवारे के कागज़ और नक्शे की प्रमाणित प्रतियां हमेशा एक सुरक्षित स्थान पर रखें।
  • सामूहिक दबाव: अकेला किसान प्रशासन पर कम दबाव बना पाता है। इसलिए, पीड़ित किसानों को सामूहिक समूह बनाकर इस मुद्दे पर राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव बनाना चाहिए।
  • रिकॉर्डिंग और साक्ष्य: मौके पर होने वाली किसी भी घटना, पटवारी के रवैये या धमकाने वाली आवाज़ को ऑडियो/वीडियो में रिकॉर्ड करें। पड़ोसी और अन्य गवाहों के बयान शुरू में ही लिखित रूप में (हस्ताक्षर के साथ) ले लें।
  • कानूनी सलाह: उच्च अधिकारियों को सही ढंग से बात न बता पाने के कारण मामले लंबे खिंच जाते हैं। इसलिए, ज़रूरत पड़ने पर एक योग्य वकील की मदद लेना ज़रूरी है।

प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता और भविष्य की राह

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व वाली सरकार किसानों के लिए किसान सम्मान निधि और बीमा जैसी योजनाएं चला रही है, लेकिन किसान कहते हैं कि “अगर ज़मीन ही सुरक्षित नहीं है तो इन पैसों का क्या फ़ायदा?” फ़र्ज़ी सीमांकन के ज़हर को खत्म करने के लिए कठोर, त्वरित और बुनियादी सुधारों की आवश्यकता है।

TKN Prime News की नीतिगत सिफारिशें

  1. दोषियों पर त्वरित और कठोर कार्रवाई:
    • जहां भी फ़र्ज़ी सीमांकन साबित हो जाए, संबंधित पटवारी को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त किया जाए।
    • भ्रष्ट अधिकारियों की छंटनी: भ्रष्ट कलेक्टर, एसपी, तहसीलदार और पटवारियों की पहचान कर उन्हें सेवा से हटाना चाहिए। इससे न केवल न्याय व्यवस्था में सुधार होगा, बल्कि लाखों योग्य युवाओं को सरकारी नौकरी देने का रास्ता भी खुलेगा।
    • सख्त जवाबदेही: पटवारी द्वारा किए गए सीमांकन के निरस्त होने पर उसके ख़िलाफ़ डबल वेतन वृद्धि रोकने या विभागीय जाँच की प्रक्रिया को अनिवार्य किया जाए।
  2. प्रक्रिया में पारदर्शिता:
    • पुलिस की अनिवार्य उपस्थिति: सभी विवादित ज़मीनों के सीमांकन के समय पुलिस बल की उपस्थिति को अनिवार्य बनाया जाए, जिसका खर्च दबंग पक्ष या दोनों पक्षों से लिया जा सकता है।
    • डिजिटल पारदर्शिता: सीमांकन के जीपीएस कॉर्डिनेट और मौके की तस्वीरें तुरंत राजस्व रिकॉर्ड में अपलोड की जानी चाहिए, जिससे कागज़ी हेरफेर की संभावना कम हो।
  3. कर्मचारी सशक्तिकरण:
    • वेतन वृद्धि: हालाँकि यह एक आंदोलनकारी मांग है, लेकिन पटवारियों के वेतनमान और सुविधाओं में पर्याप्त वृद्धि की जाए, ताकि रिश्वत का लालच कम हो सके। (जैसा कि किसान सुझाव देते हैं, एक सम्मानजनक वेतनमान)।
    • नियमित ऑडिट और निगरानी: पटवारियों के काम का नियमित ऑडिट किया जाए। लोकायुक्त को ट्रैप ऑपरेशन और निगरानी का दायरा बढ़ाना चाहिए।

सम्मान निधि से अधिक ज़रूरी है ज़मीन का सम्मान

फ़र्ज़ी सीमांकन केवल एक किसान की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज, सामाजिक सद्भाव और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जुड़ा मुद्दा है। आज सरकार किसानों को जो भी मदद दे रही है, वह अधूरी खुशी’ है, क्योंकि ज़मीन की सुरक्षा के बिना किसान का दिल खुश नहीं रह सकता।

यह फ़र्ज़ी सीमांकन ज़मीन पर डाका है, यह किसान की मेहनत और भविष्य पर हमला है। जब तक राजस्व तंत्र में ईमानदारी नहीं आती, गाँव का किसान हमेशा न्याय की तलाश में भटकता रहेगा।

TKN Prime News सरकार से अपील करता है कि वह इस समस्या को जड़ से ख़त्म करे। जब यह होगा, तभी किसान सच में सुरक्षित, आत्मनिर्भर और गर्वित महसूस करेगा।

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