कल्पना कीजिए… आप किसी गांव में रहते हैं, आपके बच्चे को बुखार है, और सामने बैठा ‘डॉक्टर’ इलाज कर रहा है। उसके पास सर्टिफिकेट है, टेबल पर स्टेथोस्कोप रखा है, पर आपको नहीं पता—वो डॉक्टर नहीं है, एक धोखेबाज़ है! मध्य प्रदेश में एक ऐसा रैकेट सामने आया है, जिसने चिकित्सा जैसे पवित्र पेशे को मजाक बना दिया है। दमोह के मिशन अस्पताल में फर्जी डॉक्टर के भंडाफोड़ के बाद अब सागर ज़िले में बाल आयोग की टीम ने एक और बड़ा खुलासा किया है—एक ऐसा संस्थान, जो बेरोजगार युवाओं को “डॉक्टर” बनाने का सपना दिखाकर जाली सर्टिफिकेट बांट रहा था, और इस पूरे खेल में करोड़ों की उगाही की जा रही थी।
सागर के कालीचरण चौराहे स्थित एलआईसी बिल्डिंग में ‘राधा रमण इंस्टीट्यूट’ नाम से चल रहे इस कथित संस्थान की सच्चाई तब सामने आई जब बाल आयोग को शिकायत मिली कि यहां कौशल विकास की आड़ में नकली डॉक्टर तैयार किए जा रहे हैं। आयोग ने ज़िला प्रशासन के साथ संयुक्त दबिश दी और जो खुलासा हुआ, वो चौकाने वाला था। संस्था में रुपए गिनने की मशीनें, शराब की बोतलें, और फर्जी सर्टिफिकेट्स के ढेर मिले। संस्था 10वीं और 12वीं पास युवाओं को कॉल सेंटर से कॉल कर झांसे में लेती थी। उन्हें बताया जाता था कि थोड़ी फीस देकर वो क्लीनिक खोल सकते हैं और डॉक्टर बन सकते हैं—बस 32 से 45 हज़ार रुपये देने होंगे।
इस संस्थान ने बीते 8–10 सालों में सैकड़ों युवाओं को फर्जी सर्टिफिकेट दिए। इनमें से कई गांवों में जाकर इलाज भी कर रहे हैं। ज़रा सोचिए, उन मरीजों का क्या हुआ होगा जो इनसे इलाज करवा रहे थे? जिनके पास न तो मेडिकल डिग्री थी, न अनुभव, बस एक धोखे का दस्तावेज़ था। राधा रमण इंस्टीट्यूट को एक समय पीएम कौशल विकास योजना से जोड़ा गया था, लेकिन दो साल बाद वह योजना बंद हो गई। इसके बाद इस संस्थान ने अपना असली रूप दिखाया और फर्जीवाड़े की भूमिगत फैक्ट्री बन गया। जांच में ये भी पाया गया कि इसकी किसी भी यूनिवर्सिटी से मान्यता नहीं थी।
जब टीम ने दबिश दी, तो वहां 12 लड़कियां कॉल सेंटर में काम करती मिलीं, जो बेरोजगार युवाओं को कॉल करके इस फर्जी योजना में फंसाती थीं। पूरा सिस्टम स्क्रिप्टेड था। युवाओं को पहले मोटी कमाई का लालच दिया जाता, फिर कहा जाता कि सिर्फ 10 दिन की ट्रेनिंग के बाद डॉक्टर बनने का मौका मिलेगा। इस रैकेट का सरगना सुनील नेमा बताया गया है, जो मोती नगर थाना क्षेत्र का निवासी है। छापेमारी के बाद वह फरार है। बाल आयोग ने कलेक्टर को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या इतनी बड़ी धोखाधड़ी इतने वर्षों तक बिना किसी राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के संभव थी?





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