पहाड़ों में बरसात आई नहीं, और तबाही की खबरें छा गईं। लेकिन इस बार तबाही सिर्फ सड़कों या घरों की नहीं हुई… दिलों की भी हुई है। जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले से आई ये कहानी जितनी भावुक है, उतनी ही सरकारी लापरवाही की पोल खोलती है। भारी बारिश और भूस्खलन के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पूरी तरह बंद हो गया है, जिससे न सिर्फ यातायात ठप हो गया बल्कि हजारों लोगों की ज़िंदगी रुक सी गई है। इन्हीं में से एक है एक नवविवाहित जोड़ा, जो अपनी शादी के बाद पहली बार अपने परिवार के साथ यात्रा पर निकला था—लेकिन सफर बना एक असहनीय संघर्ष। जश्न की उम्मीद लिए निकली ये जोड़ी अब पहाड़ों में कीचड़, पत्थरों और सरकारी बेपरवाही के बीच पसीना बहा रही है।
“शादी की हमने कल्पना की थी खुशियों की, लेकिन मिला संघर्ष का लंबा सफर,” कहते हैं नवविवाहित दंपति, जिनकी आवाज़ में दर्द, गुस्सा और निराशा साफ झलकती है। वे कहते हैं—”हमने नहीं सोचा था कि हमारी शादी के अगले दिन हमें पैदल, मलबे के बीच से गुज़रना पड़ेगा। ये रास्ता सालों से ऐसा ही है, और सरकार ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया।” उनके साथ कई बुज़ुर्ग, बच्चे और महिलाएं भी हैं, जिन्हें न तो कोई वैकल्पिक रास्ता मिला, न कोई आपातकालीन व्यवस्था। स्थानीय लोगों के मुताबिक, हर साल मानसून में यही हालात होते हैं, लेकिन प्रशासन हर बार ‘प्राकृतिक आपदा’ कहकर हाथ झाड़ लेता है। सवाल ये है—क्या हर साल लोगों की जान खतरे में डालकर भी सरकारें सिर्फ बयान देती रहेंगी?







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