Thursday, January 30, 2025

अंग्रेजों के दौर में महाकुम्भ में दाढ़ी-बाल कटवाने पर लगता था टैक्स

1924 में प्रयाग में आयोजित अर्धकुंभ मेला, जिसमें तत्कालीन इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू ने भाग लिया था, एक ऐतिहासिक घटना बन गया। इस दौरान उन्होंने मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह किया। यह संघर्ष तब हुआ जब ब्रिटिश सरकार ने संगम में स्नान पर रोक लगा दी थी। नेहरू की आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में इस घटना का जिक्र है। इस वीडियो में हम आपको बताएंगे कि कैसे यह संघर्ष कुंभ मेले के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ बना।

आज हम बात करेंगे 1924 के अर्धकुंभ मेले की, एक ऐसी ऐतिहासिक घटना के बारे में, जब भारतीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी जवाहर लाल नेहरू ने अपने जीवन का पहला सत्याग्रह किया था। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत संघर्ष नहीं थी, बल्कि यह भारतीय समाज की उस समय की मानसिकता और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों की एकजुटता को दर्शाती है। तो आइए, जानते हैं इस संघर्ष के बारे में, जिसे हम आज तक याद रखते हैं।

1924 की बात है, जब इलाहाबाद में अर्धकुंभ मेला लगा था। इस मेला में लाखों लोग एकत्रित होते थे, और संगम में स्नान करना एक महत्वपूर्ण धार्मिक कृत्य माना जाता था। इस समय के इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे। वह अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में इस घटना का विस्तार से उल्लेख करते हैं। नेहरू बताते हैं कि कैसे ब्रिटिश सरकार ने संगम में स्नान पर रोक लगा दी थी, यह कहते हुए कि वहां फिसलन है और यह लोगों की सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बन सकता है।

लेकिन इस आदेश के खिलाफ मदन मोहन मालवीय ने खुलकर विरोध किया और यह बयान दिया कि धार्मिक दृष्टिकोण से स्नान तो संगम में ही होना चाहिए। यह कदम न केवल धार्मिक आस्थाओं से जुड़ा था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रतीक बन चुका था। नेहरू ने इस विरोध को समर्थन देने का फैसला किया और मालवीय जी के साथ संगम पहुंच गए।

जब नेहरू पहुंचे, तो देखा कि मालवीय जी अपने सत्याग्रह में अकेले नहीं थे, बल्कि उनके साथ 200 से ज्यादा लोग खड़े थे। यह दृश्य एक आंदोलन का रूप ले चुका था, और नेहरू भी उसमें शामिल हो गए। दोनों पक्षों के बीच पुलिस खड़ी थी, और यह पूरी स्थिति काफी तनावपूर्ण थी। पुलिस ने उनके हाथ से सीढ़ी छीन ली, और इसके बाद उन्होंने रेत पर धरना दिया।

मालवीय जी, जो खुद को रोकने की कोशिश कर रहे थे, अचानक बिना कुछ कहे गंगा में कूद पड़े। यह दृश्य नेहरू के लिए अत्यधिक प्रेरणादायक था, और वह भी गंगा में डुबकी लगाने के लिए कूद पड़े। इस संघर्ष के बाद, पूरी भीड़ ने गंगा में स्नान किया, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। यह घटना भारतीय संघर्ष और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक प्रतीक बन गई।

कुंभ मेला एक ऐसा आयोजन था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने भी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया था। 1801 में जब इलाहाबाद पर अंग्रेजों का अधिकार हुआ, तो कुंभ मेला भी उनके लिए राजस्व का एक स्रोत बन गया। कुंभ के दौरान तीर्थ यात्रियों से टैक्स वसूलना शुरू हुआ, जो की एक अभूतपूर्व कदम था।

1906 में एक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि किस तरह से कुंभ मेले में होने वाले व्यापार और अन्य गतिविधियों से ब्रिटिश सरकार ने लाखों रुपये की कमाई की। मेला क्षेत्र में न केवल व्यापार का प्रबंधन किया जाता था, बल्कि धार्मिक कार्यों में भी सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता गया था।

इतिहासकार डॉ. हेरंब चतुर्वेदी अपनी किताब ‘कुंभ: ऐतिहासिक वांग्मय’ में लिखते हैं कि अंग्रेजों से पहले भी मुगलों ने कुंभ से कमाई की थी। अकबर ने कुंभ की व्यवस्था की निगरानी के लिए दो अफसर नियुक्त किए थे, जिनका काम था मेला क्षेत्र की सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखना।

अंग्रेजों के शासन में कुंभ के आयोजन को लेकर कई विवाद और संघर्ष हुए। साधुओं को जल और अन्य सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ा था, और कई बार तो अंग्रेजों से छुपकर साधुओं ने रातों-रात कुएं भी खुद दिए थे।

- Advertisement -
For You

आपका विचार ?

Live

How is my site?

This poll is for your feedback that matter to us

  • 75% 3 Vote
  • 25% 1 Vote
  • 0%
  • 0%
4 Votes . Left
Via WP Poll & Voting Contest Maker
Latest news
Live Scores