Tuesday, December 16, 2025

धान की बालियाँ और तंत्र की खुजली | अन्नदाता की ‘ऐसी-तैसी’ का सरकारी महोत्सव by Journalist Vijay

हमारे देश का किसान बड़ा ही भाग्यशाली है। उसे हर साल एक नया ‘साहस’ दिखाने का मौका मिलता है। जब धान पककर तैयार होती है, तब किसान की आंखों में चमक नहीं, बल्कि ‘बारदाने’ का खौफ नाचने लगता है। व्यवस्था का चरित्र देखिए—सरकार के पास चाँद पर जाने का डेटा है, पर धान की तौलाई के दौरान हर साल बारदाना की किल्लत रहती है इसका कोई डाटा नहीं रहता। यह सिस्टम नहीं है, यह एक ऐसा जादुई गलियारा है जहाँ घुसते ही ईमानदारी की ‘कनेक्टिविटी’ कट जाती है।

प्रशासन के लिए यह एक ‘सरकारी महोत्सव’ है। हर साल वही टेंडर, वही बारदाने की कमी का रोना और वही जांच की फाइलें। किसान की मजबूरी इस महोत्सव की ‘मुख्य अतिथि’ होती है। सरकार कहती है—”हम चाहते हैं किसानों को कष्ट न हो।” यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई कसाई बकरे से कहे—”मैं तो तुम्हें मखमल पर सुलाना चाहता हूँ, पर यह कम्बख्त छूरी बीच में बाधा बन रही है।”

आजकल के ‘विपक्ष’ को देखकर तो करुणा आती है। इनका विरोध सिर्फ फोटो खिंचवाने और फेसबुक पर विलाप करने तक सीमित है। विपक्ष और भ्रष्ट अधिकारी दरअसल एक ही बिस्तर के दो सिरहाने हैं। शोर बहुत मचाते हैं, पर कभी किसी भ्रष्ट कर्मचारी को कोर्ट के कटघरे तक नहीं ले जाते। ले जाएं भी क्यों? अपना ही जेब काटे, तो पुलिस के पास थोड़े ही जाते हैं! न्याय सोशल मीडिया के कैमरों में नहीं, अदालत के फैसलों में मिलता है, पर विपक्ष अपना तेल केवल अगली रैली के लिए बचाकर रखता है।

अब समय आ गया है कि इस ‘सिस्टमैटिक भ्रष्टाचार’ का अंत ‘सिस्टमैटिक कानूनी प्रहार’ से हो। यदि किसान धान खरीदी केंद्रों पर लड़ सकता है, तो उसे कोर्ट के गलियारों में भी लड़ना होगा। जिस दिन एक सोसाइटी का किसान एकजुट होकर नजदीकी थाने में भ्रष्ट कर्मचारी के खिलाफ FIR दर्ज कराएगा, उस दिन सिस्टम की खुजली अपने आप शांत हो जाएगी।

चप्पे-चप्पे पर सत्ताधारी दल के छोटे-बड़े ‘मसीहा’ उगे हुए हैं। ये वैसे तो विलुप्त प्रजाति के हैं, पर चुनाव आते ही ‘किसान पुत्र’ बनकर खेतों में फोटो खिंचवाते पाए जाएंगे। आरोप है कि अगर नेता जी की सड़ी हुई धान भी हो, तो सरकारी गोदाम उसे ‘इत्र’ समझकर स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन साधारण किसान की फसल में उन्हें हिमालय जितनी कमियां नजर आती हैं।

मैं इन नेताओं से पूछना चाहता हूँ—”हुजूर, अगर आप ही किसान का दर्द बन जाएंगे, तो क्या हम दवा लेने मंगल ग्रह पर जाएंगे?”

सच तो यह है कि कोई पार्टी बुरी नहीं होती। गंगा तो पवित्र है, बस उसमें नहाने वाले पापी अपना मैल छोड़ देते हैं। जब तक किसान स्वयं न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाएगा, तब तक ये भ्रष्ट सदस्य सिस्टम की जड़ों को खोखला करते रहेंगे।

#JournalistVijay

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