कल्पना कीजिए, एक ऐसा युवराज जो अपनी सुबह सब्जी मंडी से शुरू करता है। जिसके पास 400 कमरों का महल है, लेकिन जो अपनी पहचान गली-गली घूमकर खुद बनाता है। जिस चेहरे को आप राजनीति की राजगद्दी पर देखना चाहें, वही चेहरा सब्जी विक्रेताओं के बीच बैठा स्टार्टअप आइडिया समझा रहा होता है। यह कहानी है ग्वालियर के शाही खानदान के वारिस और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महानार्यमन सिंधिया की—एक ऐसे शख्स की जिसने विरासत के ताज को सादगी की टोपी से बदल दिया।
महानार्यमन की शिक्षा भारत और विदेश की प्रतिष्ठित संस्थाओं से हुई है। दून स्कूल, देहरादून में स्कूल प्रीफेक्ट रहते हुए उन्होंने नेतृत्व की पहली सीढ़ी चढ़ी। इसके बाद येल यूनिवर्सिटी, अमेरिका से राजनीति विज्ञान में स्नातक किया और फिर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मध्य-पूर्व और वैश्विक राजनीति की गहरी समझ हासिल की। उनकी शिक्षा सिर्फ डिग्रियों तक सीमित नहीं रही—भूटान के राजा जिग्मे वांगचुक के साथ की गई इंटर्नशिप ने उन्हें सेवा और मानवीय संवेदना का वह पाठ पढ़ाया, जिसे वे आज अपने हर काम में आत्मसात किए हुए हैं।
जयविलास पैलेस की 400 कमरों वाली चमक-धमक के बीच भी महानार्यमन की ज़िंदगी में सादगी का एक गहरा रंग बसा है। वह ‘माईमंडी’ नामक एक स्टार्टअप चला रहे हैं, जिसका उद्देश्य है—किसानों और सब्जी विक्रेताओं को सीधा बाजार से जोड़ना। वे खुद भी मंडियों में जाकर विक्रेताओं से बात करते हैं, उनकी समस्याएं सुनते हैं और समाधान सुझाते हैं। उनकी कार्यशैली में शाही ठाठ नहीं, बल्कि ज़मीनी संघर्ष और इनोवेशन की झलक मिलती है। वो साफ कहते हैं, “कर्म ही असली विरासत है, सिर्फ खून नहीं।”
महानार्यमन सिंधिया की जिंदगी में कला और संस्कृति का भी उतना ही महत्व है। वे ‘प्रवास’ नाम की एक सांस्कृतिक पहल चला रहे हैं, जहां संगीत, भोजन और कला को एक मंच पर लाकर स्थानीय प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश की जाती है। उन्हें खाना बनाने का भी शौक है—बचपन में शेफ बनने का सपना देखा था, और आज भी बिरयानी से लेकर जापानी डिश तक खुद बनाते हैं। उनके द्वारा आयोजित माधवराव सिंधिया मेमोरियल मैराथन, जिसमें हजारों लोग दौड़ लगाते हैं, एकता और स्वास्थ्य के संदेश का प्रतीक बन चुकी है।