होली, हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक, हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस उत्सव से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, इस साल होलिका दहन की तिथि को लेकर संशय बना हुआ है—13 मार्च या 14 मार्च? पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 13 मार्च 2025 को सुबह 10:36 बजे शुरू होगी और 14 मार्च को दोपहर 12:15 बजे समाप्त होगी। शास्त्रीय मतानुसार, जब पूर्णिमा का मान तीन प्रहर से कम होता है, तब पहले दिन ही होलिका दहन करना उचित होता है। इसलिए, इस बार होलिका दहन 13 मार्च 2025 को किया जाएगा, जबकि रंगों की होली 14 मार्च 2025 को खेली जाएगी।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और भद्रा का प्रभाव
होलिका दहन को लेकर भद्रा का प्रभाव भी महत्वपूर्ण माना जाता है। 13 मार्च को भद्रा सुबह 10:36 से रात 11:27 बजे तक रहेगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भद्रा काल में शुभ कार्य नहीं किए जाते, इसलिए होलिका दहन भद्रा समाप्त होने के बाद किया जाना चाहिए। इस साल होलिका दहन के लिए सबसे उपयुक्त समय मध्य रात्रि 11:28 से 12:15 बजे तक रहेगा। इस अवधि में केवल 47 मिनट का ही शुभ समय मिलेगा, जिसमें होलिका दहन किया जा सकता है। शास्त्रों में भद्रा के समय किए गए कार्यों को अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह देवी सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन मानी जाती हैं, जिनका स्वभाव क्रोधी होता है।
होलाष्टक का आरंभ और शुभ कार्यों पर रोक
होलिका दहन से पहले होलाष्टक की अवधि भी शुरू हो जाती है। इस वर्ष, होलाष्टक 6 मार्च 2025 से आरंभ होगा और 14 मार्च को दोपहर 12:24 बजे समाप्त होगा। इस अवधि में किसी भी मांगलिक कार्य को करने की मनाही होती है। वहीं, 14 मार्च को सूर्य मीन राशि में प्रवेश करेंगे, जिससे खरमास शुरू हो जाएगा। इस कारण एक माह तक विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे शुभ कार्य नहीं किए जा सकेंगे।
धुलंडी पर चंद्रग्रहण, लेकिन नहीं लगेगा सूतक
होली के अगले दिन, 14 मार्च 2025 को धुलंडी मनाई जाएगी। इसी दिन सुबह 9:29 बजे से दोपहर 3:29 बजे तक चंद्रग्रहण रहेगा। हालांकि, यह ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा, इसलिए इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। ग्रहण के दौरान चंद्रमा कन्या राशि और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में स्थित रहेंगे, जहां पहले से केतु मौजूद होंगे। इससे ग्रहण योग बनेगा, लेकिन धार्मिक दृष्टि से इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं होगा।
होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि भाईचारे, प्रेम और आनंद का प्रतीक भी है। इस दिन लोग आपसी वैमनस्य भूलकर एक-दूसरे को रंग, गुलाल और अबीर लगाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद को अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप से बचाने के लिए नरसिंह अवतार लिया था। यही कारण है कि इस दिन बुराई के अंत और सत्य की जीत का उत्सव मनाया जाता है। इस बार होली पर रंगों के साथ शुभ समय का भी ध्यान रखें और प्रेम और सौहार्द्र के साथ इस पावन पर्व को मनाएं।