बुंदेलखंड में धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक पर्यटन के दृष्टिकोण से टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र का देश के नक्शे पर महत्वपूर्ण स्थान है। यहां बुंदेलखंड की अयोध्या कही जाने वाली ओरछा नगरी के मंदिर में श्री रामराजा सरकार की मूर्ति विराजमान है। ओरछा पुरातात्विक महत्व की नगरी भी है। यहां के महल, किले और छतरियां बेहद खूबसूरत और दर्शनीय हैं। राजनीतिक तौर पर यहां समीकरण बनते और बिगड़ते रहे हैं। साल 1952 के पहले चुनाव में टीकमगढ़ लोकसभा सीट भी कई अन्य जिलों को शामिल करते हुए अस्तित्व में आई। अब तक इस सीट पर चार बार परिसीमन हो चुका है। इस वजह से अधिकांश समय टीकमगढ़ खजुराहो लोकसभा सीट में शामिल रहा। वर्ष 1977 से वर्ष 2004 तक टीकमगढ़ जिले का अधिकांश हिस्सा खजुराहो सीट के साथ रहा। टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र का वर्तमान स्वरूप वर्ष 2009 के चुनाव से अस्तित्व में आया। खजुराहो अलग सीट बना दी गई।
वर्ष 2004 से बाहरी प्रत्याशियों का कब्जा
खास बात यह भी है कि अधिकांश समय यह सीट आरक्षित रही। वर्ष 2009 से यह एससी वर्ग के लिए आरक्षित है। वर्तमान में केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार खटीक यहां से तीसरी बार के सांसद हैं, जबकि 20 वर्ष से कांग्रेस यहां पर वनवास झेल रही है। वर्ष 2004 के चुनाव के बाद से ही यहां बाहरी प्रत्याशियों का कब्जा है । साल 2004 में जब यह खजुराहो संसदीय क्षेत्र का हिस्सा था, तब दमोह के रहने वाले रामकृष्ण कुसमारिया ने भाजपा को यहां जीत दिलाई। पिछले 20 वर्षों से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां यहां पर बाहरी प्रत्याशियों को मैदान में उतार रही है। हालांकि, जीत भाजपा को ही मिल रही है।
कांग्रेस अलग-अलग चेहरे
वर्ष 2009 में सत्यव्रत चतुर्वेदी, 2014 में कमलेश वर्मा और वर्ष 2019 के चुनाव में किरण अहिरवार को यहां से उतार चुकी है, जबकि भाजपा बाहरी प्रत्याशी का तमगा लगा होने के बाद भी जीत रही है। डॉ. वीरेंद्र कुमार भी मूल रूप से सागर जिले से हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती यहां से चार बार जीत चुकी हैं
पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री भाजपा की दिग्गज नेता उमा भारती टीकमगढ़ की हैं। उनका जन्म यहां के डूंडा गांव में हुआ था। वे साल 1989, 1991, 1996 और 1998 में चार बार यहां की सांसद रहीं। तब टीकमगढ़ अलग सीट नहीं, बल्कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र का हिस्सा था।
ओरछा के राजा ने सबसे पहले किए थे हस्ताक्षर
वर्ष 1957 के पूर्व तक बुंदेलखंड में टीकमगढ़ का ओरछा राज्य राजशाही में प्रमुख स्थान रखता था। यहां के राजा को सर्वाधिक 1.20 लाख रुपये की राजनिधि अंग्रेजी शासकों से प्राप्त होती थी। बुंदेलखंड के राजाओं को सलाह देने और उन्हें नियंत्रित रखने के लिए नौगांव में अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट भी रहा करता था। जब देश में स्वराज का झंडा लहराने लगा, तो स्थितियों को भांपकर ओरछा राज्य के तत्कालीन राजा वीर सिंह जूदेव ने सबसे पहले राज्य का समर्पण कर बुंदेलखंड में लोकप्रिय सरकार के गठन की घोषणा कर दी और यहां प्रजातांत्रिक व्यवस्था लागू हो गई। वे देश में पहले राजा थे, जिन्होंने राज्य समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किए थे।
दो-तिहाई आबादी ग्रामीण क्षेत्र की।
टीकमगढ़ जिला जामनी, बेतवा और धसान की सहायक नदी के बीच बुंदेलखंड पठार पर है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की 77.2 फीसदी आबादी ग्रामीण और 22.8 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। टीकमगढ़ की 23.61 फीसदी जनसंख्या एससी वर्ग और 4.5 फीसदी आबादी एसटी वर्ग के लोगों की है। टीकमगढ़ सीट में बुंदेलखंड अंचल का जो हिस्सा शामिल किया गया है। वह अब तक आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के लिए ही ज्यादा चर्चा में रहा है।