क्या आप सोच सकते हैं कि एक नदी का रास्ता बदलना किसी देश के लिए आफत बन सकता है? वह भी अचानक इतनी भीषण बाढ़ के साथ कि लोग रातों-रात घर छोड़कर भागने लगे! कुछ ऐसा ही हुआ है पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद में, जब झेलम नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाया। लेकिन क्या यह सिर्फ एक प्राकृतिक घटना थी या भारत की एक रणनीतिक चाल? इस कहानी के पीछे छुपी है एक बड़ी सच्चाई, जो दोनों देशों के रिश्तों में नया मोड़ ला सकती है। आइए जानते हैं इस घटनाक्रम की पूरी परतें, विस्तार से।
26 अप्रैल 2025 की सुबह मुजफ्फराबाद के हट्टिन बाला इलाके के लोग उस समय दहशत में आ गए, जब झेलम नदी का जलस्तर अचानक आसमान छूने लगा। पानी ने गांवों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया। जल्द ही पूरे इलाके में वॉटर इमरजेंसी घोषित कर दी गई। बताया जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर से पानी का बड़ा प्रवाह छोड़ा गया, जिससे चकोठी के रास्ते मुजफ्फराबाद तक झेलम में उफान आ गया। यह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। इससे एक दिन पहले ही पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ दशकों पुरानी ‘सिंधु जल संधि’ को स्थगित कर दिया था। और फिर आया पानी का कहर!
दरअसल, केंद्र सरकार ने सिंधु जल संधि के तहत भारत को मिले अधिकारों का अधिकतम उपयोग करने की योजना बना ली है। गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में साफ निर्देश दिए गए कि सतलुज, ब्यास और रावी नदियों के पानी का पूरा-पूरा इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि पाकिस्तान को मिलने वाले पानी पर लगाम लगाई जा सके। जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं — “पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान नहीं जानी चाहिए।” इस बैठक में भविष्य की कार्ययोजना तय की गई, जिसमें दीर्घकालिक रणनीति और जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर जोर दिया गया।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अभी भी कई तकनीकी चुनौतियां भारत के सामने हैं। साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के हिमांशु ठक्कर ने कहा कि झेलम और चिनाब जैसी पश्चिमी नदियों पर फिलहाल भारत के पास ऐसा ठोस नियंत्रण तंत्र नहीं है, जिससे पानी को तत्काल रोक सकें। चिनाब घाटी में कुछ परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन उन्हें पूरा होने में 5-7 साल लग सकते हैं। तब तक स्वाभाविक रूप से पानी पाकिस्तान की ओर बहता रहेगा। यानी असली प्रभाव दिखने में अभी समय लगेगा, लेकिन तैयारी शुरू हो चुकी है और अब भारत पीछे हटने के मूड में नहीं है।
पर्यावरणविद श्रीपद धर्माधिकारी का कहना है कि अगर भारत तेजी से नए बांध और नहरें विकसित करता है तो पानी के बहाव को मोड़ा जा सकता है। इसके लिए बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश और उच्च स्तरीय तकनीकी प्लानिंग की जरूरत होगी। फिलहाल, सरकार ने इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिए हैं। मंत्रालय को कहा गया है कि तीनों पश्चिमी नदियों के पानी के प्रबंधन के हर विकल्प पर विस्तार से अध्ययन करें और एक्शन प्लान तैयार करें। मतलब साफ है — अब भारत न सिर्फ आतंकवाद पर, बल्कि पानी जैसे मौलिक संसाधनों पर भी अपनी रणनीति के जरिए पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने को तैयार है।






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