लोक आस्था और सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ इस वर्ष 1 अप्रैल, मंगलवार से नहाय-खाय के साथ आरंभ होगा और 4 अप्रैल को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के साथ पूर्ण होगा। यह पावन पर्व पूर्वांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड समेत पूरे देश में श्रद्धा और पवित्रता के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि की तरह, छठ महापर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है—एक बार चैत्र मास में चैती छठ और दूसरी बार कार्तिक मास में कार्तिकी छठ। इस चार दिवसीय अनुष्ठान में व्रती विशेष नियमों और संयम के साथ उपवास रखते हैं, पवित्र जलाशयों में स्नान करते हैं और भगवान सूर्य की उपासना करते हैं।
छठ महापर्व का पहला दिन नहाय-खाय (1 अप्रैल): इस दिन व्रती शुद्धता और सात्विकता का पालन करते हुए गंगा या अन्य पवित्र जल स्रोतों में स्नान करते हैं। घरों में गंगाजल मिलाकर स्नान करने के बाद पूजा-पाठ होता है। इस दिन अरवा चावल, चने की दाल, सेंधा नमक से बनी लौकी की सब्जी और आंवला की चटनी ग्रहण की जाती है। यह भोजन शुद्धता और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है, जिससे शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है।
खरना (2 अप्रैल): व्रत के दूसरे दिन खरना की विशेष पूजा होती है। इसमें व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं और संध्या को सूर्यदेव को भोग लगाने के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। गुड़ और ईख के रस से बना रोटी और खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है, जिसे शुद्ध घी से बनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस प्रसाद के सेवन से शरीर में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होता है और त्वचा रोगों से मुक्ति मिलती है।
संध्या अर्घ्य (3 अप्रैल): इस दिन छठ व्रती जलाशय, नदी या घर के छत पर बने कृत्रिम जल कुंड में एकत्र होते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दौरान व्रती और श्रद्धालु पारंपरिक गीत गाकर भगवान सूर्य की स्तुति करते हैं। इस अवसर पर विशेष रूप से ठेकुआ, नारियल, केला और अन्य मौसमी फलों का प्रसाद तैयार किया जाता है। संध्या अर्घ्य का महत्व जीवन में संतुलन और धैर्य को दर्शाता है।
उदयकालीन अर्घ्य और पारण (4 अप्रैल): चार दिवसीय अनुष्ठान के अंतिम दिन प्रातः काल व्रती जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं और संतान सुख, समृद्धि एवं स्वास्थ्य की कामना करते हैं। इसके बाद पारण (व्रत समाप्ति) किया जाता है, जहां पूरे विधि-विधान से प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस पर्व के दौरान श्रद्धालु उपवास, साधना और संयम के माध्यम से भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त करने की आशा रखते हैं। छठ महापर्व न सिर्फ आध्यात्मिक आस्था, बल्कि प्रकृति के प्रति समर्पण और परिवारिक एकता का भी प्रतीक है, जिसे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।