दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर लगी आग ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है। दावा किया जा रहा है कि आग बुझाने के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई, जिससे यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। विपक्षी दलों ने भी राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। घटना के बाद से सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गई हैं। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि इस मामले को बेवजह तूल दिया जा रहा है और असली तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
दिल्ली फायर डिपार्टमेंट द्वारा जारी रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि 30 तुगलक रोड स्थित सरकारी आवास में 21 मार्च की रात करीब 11:30 बजे आग लगी। फायर ब्रिगेड को सूचना 11:35 बजे मिली, जिसके बाद दो दमकल गाड़ियां मौके पर पहुंचीं और एक बजकर 56 मिनट तक आग पर काबू पाया गया। रिपोर्ट के अनुसार, आगजनी में केवल स्टोर रूम में रखी स्टेशनरी और घरेलू सामान जलने की पुष्टि हुई है। लेकिन इसमें कहीं भी नकदी बरामद होने की बात दर्ज नहीं की गई है। बावजूद इसके, यह दावा किया जा रहा है कि गृह मंत्रालय को बड़ी मात्रा में कैश मिलने की जानकारी दी गई थी, जो बाद में भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना तक पहुंची।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़ी अफवाहें तेजी से फैलाई जा रही हैं, जबकि हकीकत इससे अलग है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जस्टिस वर्मा के इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरण का प्रस्ताव पहले से तय था और इसका इस आग और कथित कैश बरामदगी से कोई संबंध नहीं है। कोर्ट ने सभी से अपील की कि अफवाहों पर ध्यान देने के बजाय आधिकारिक जांच रिपोर्ट का इंतजार करें। अब देखना यह होगा कि क्या सरकार इस मामले की गहराई से जांच कराएगी या फिर यह विवाद महज अफवाहों तक सीमित रह जाएगा।