मुर्शिदाबाद की गलियों में जैसे कोई साज़िश की परछाईं उतर आई हो। शुक्रवार की रात, जब अधिकांश लोग रमजान की इबादत में व्यस्त थे, अचानक आग और हिंसा की लपटों ने शांति को निगल लिया। तीन लाशें, कई घायल और जली हुई दुकानें… लेकिन सवाल एक ही—क्यों? और कैसे? अब जब शुरुआती जांच की परतें खुलने लगी हैं, तो सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई है कि हिंसा की आग को हवा देने में बांग्लादेशी उपद्रवियों का हाथ हो सकता है।
गृह मंत्रालय को भेजी गई प्रारंभिक रिपोर्ट में संकेत मिले हैं कि कुछ असामाजिक तत्वों की सीमा पार से घुसपैठ हुई है। विशेष रूप से मुर्शिदाबाद, जंगीपुर, धुलियान, शमशेरगंज जैसे इलाकों में हिंसा सुनियोजित प्रतीत हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या ये विरोध अचानक भड़का या कोई बाहरी हाथ इसे खींच रहा था? फिलहाल बीएसएफ, सीआरपीएफ, राज्य सशस्त्र पुलिस और आरएएफ की भारी तैनाती से हालात काबू में हैं, लेकिन ज़ख्म गहरे हैं।
बीबीसी की टीम जब मंगलवार को धुलियान पहुंची तो सन्नाटा गवाह बना कि कुछ दिन पहले यहां क्या गुज़री है। टूटे घर, जली हुई गाड़ियाँ और खाक होती दुकानों के बीच दिखते हैं दर्द के निशान। सड़कों पर बेशक अब चहल-पहल लौट रही है, मगर दीवारों पर कालिख और खिड़कियों पर टूटे शीशे बता रहे हैं कि जख्म अभी ताजे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि हिंसा इतनी अचानक हुई कि बचने का भी समय नहीं मिला।
हिंसा के बीच कुछ इंसानी कहानियाँ भी उभर कर सामने आई हैं। सूर्यदीप सरकार, जिनका घर भीड़ ने घेर लिया था, बताते हैं, “हमारे दरवाज़े पर कुछ मुस्लिम छात्राएँ आईं, रोती हुईं। हमने उन्हें बचाया।” उन्होंने हमलावरों से कहा—”हम आपकी ही बहनों की जान बचा रहे हैं, हमारे घरों पर हमला मत कीजिए।” इस घटना ने साबित कर दिया कि ज़मीर ज़िंदा है, भले ही सियासत और साजिशें सो गई हों।
टीएमसी सांसद खलीलुर रहमान ने लोगों से अफवाहों से बचने की अपील की है। प्रशासन ने भी मुआवज़ा वितरण की तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन जनता में असुरक्षा का भाव बना हुआ है। वहीं, दक्षिण 24 परगना के भांगर में भी ISF समर्थकों और पुलिस में झड़पें हुईं। नौशाद सिद्दीकी की रैली में रुकावट डालने पर प्रदर्शनकारियों ने गाड़ियाँ जला दीं, संपत्तियाँ नष्ट कीं—यह दर्शाता है कि मामला अब एक जिले तक सीमित नहीं रहा।
वक्फ संशोधन कानून का विरोध अपने आप में संवेदनशील मुद्दा है, लेकिन जिस तरह से हिंसा फैली, वह स्वतःस्फूर्त नहीं लगती। बांग्लादेशी तत्वों की संलिप्तता के संकेत प्रशासन के लिए चेतावनी हैं। सीमावर्ती राज्य में बाहरी हस्तक्षेप की आशंका केवल कानून-व्यवस्था का ही नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा का भी प्रश्न बन जाती है।
हालांकि अब दुकानें खुल रही हैं, लोग लौट रहे हैं और सुरक्षा बल सख़्ती से डटे हैं, पर ज़मीनी सच यह है कि सामाजिक समरसता की डोर कमजोर हो चुकी है।






Total Users : 13152
Total views : 31999