मध्य प्रदेश के मऊगंज में हुई हिंसा के बाद पूर्व सांसद बुद्धसेन पटेल का बयान सुर्खियों में है। उन्होंने न केवल हिंसा को जायज़ ठहराया, बल्कि इसे ‘‘न्याय’’ की संज्ञा भी दी। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के युवक अशोक कोल की हत्या का बदला लेने वालों ने ‘‘सही किया’’ और समाज को अब खुद उठकर न्याय लेना चाहिए।
यह बयान लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ जाता है। क्या यह जनता को भड़काने की कोशिश थी, या सच में एक वर्ग की पीड़ा को आवाज देने की कोशिश? आइए, इस पूरे मामले की गहराई से पड़ताल करते हैं।
मऊगंज हिंसा: कब, कैसे और क्यों?
मऊगंज में हाल ही में हुई हिंसा ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया। इस घटना की जड़ें अशोक कोल नामक युवक की हत्या से जुड़ी हैं, जिसके बाद समाज में आक्रोश बढ़ता गया।
जब बुद्धसेन पटेल ने अपने भाषण में इस हिंसा को सही ठहराया और कहा, ‘‘कोल समाज ने अपने मान-सम्मान और अपने बाप के बदले के लिए हिंसा की’’, तो सवाल खड़ा हुआ कि क्या यह सीधे तौर पर हिंसा को समर्थन देना नहीं है? उन्होंने यह भी कहा कि, ‘‘कब तक सहते रहोगे, कब तक मां-बेटियों की इज्जत लुटवाते रहोगे?’’ – क्या यह समाज को भड़काने का प्रयास नहीं?
जाति जनगणना और हिंसा को सही ठहराने का तर्क
बुद्धसेन पटेल का कहना है कि पिछड़े और वंचित वर्गों को उनका अधिकार दिलाने के लिए जाति जनगणना ज़रूरी है। लेकिन उन्होंने इसके समर्थन में हिंसा को उचित ठहराकर एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा,
‘‘जब तक जाति जनगणना नहीं होगी, तब तक दलित और आदिवासी समाज का उत्थान नहीं होगा।’’
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या जातिगत असमानता दूर करने का तरीका हिंसा हो सकता है? क्या समाज को हिंसा की राह पर ले जाकर कोई स्थायी समाधान निकलेगा?
संविधान बनाम सड़क पर न्याय
बाबा साहब अंबेडकर ने हमेशा संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत अधिकारों के लिए संघर्ष करने की बात की थी। बुद्धसेन पटेल भी अपने बयान में बाबा साहब का ज़िक्र करते हैं, लेकिन उसी सांस में हिंसा को जायज़ ठहराने की कोशिश करते हैं। यह विरोधाभास खुद में कई सवाल खड़े करता है।
बयान पर बढ़ता विरोध
पटेल के इस बयान के बाद राजनीतिक और कानूनी गलियारों में विवाद तेज हो गया है।
- कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह भड़काऊ बयान सार्वजनिक शांति को भंग कर सकता है।
- राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह एक सोची-समझी चाल है, जिससे एक खास वर्ग को उकसाकर राजनीति चमकाई जा सके।
- सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस बयान को हिंसा को बढ़ावा देने वाला बताया और कहा कि ऐसे नेता समाज को तोड़ने का काम कर रहे हैं।
क्या यह ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ की राजनीति है?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान एक खास तरह की ‘व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी’ की राजनीति का हिस्सा है, जहां भावनाओं को उकसाकर राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश होती है। तथ्यों की जगह भावनात्मक और उग्र भाषा का इस्तेमाल कर समाज को विभाजित करने की रणनीति अपनाई जाती है।
आगे की राह: कानून का राज या उकसावे की राजनीति?
अब सवाल यह है कि क्या इस तरह के बयान केवल राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित रहेंगे, या सरकार इसपर कोई ठोस कदम उठाएगी? क्या बुद्धसेन पटेल के खिलाफ कार्रवाई होगी? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल – क्या समाज इस तरह की हिंसा को बढ़ावा देने वाले बयानों को स्वीकार करेगा?





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