सुबह का पहला पहर, मंदिर में शंखनाद और डमरू की गूंज, भस्म आरती का पावन दृश्य और नंदी हॉल की पवित्र चौखट… तभी वहां बैठी एक सादगीभरी जोड़ी अचानक सबका ध्यान खींच लेती है। सादे वस्त्रों में बैठे, सिर झुकाए, आंखें बंद किए — यह कोई और नहीं बल्कि बॉलीवुड के सबसे भावुक और लोकप्रिय गायक अरिजीत सिंह हैं। पत्नी कोयल राय के साथ, भक्ति में लीन इस जोड़ी ने जैसे ही बाबा महाकाल की आरती में भाग लिया, मानो सुर और श्रद्धा का अद्भुत संगम महाकाल की नगरी उज्जैन में उतर आया।
शनिवार सुबह अरिजीत सिंह महाकालेश्वर मंदिर पहुंचे और सुबह की भस्म आरती में भाग लेकर अपने आध्यात्मिक पक्ष को सबके सामने रखा। पुजारी पंडित आकाश गुरु के अनुसार, अरिजीत सिंह ने पूरी निष्ठा और भक्ति से पूजा-अर्चना की। उन्होंने नंदी हॉल में बैठकर आरती देखी और फिर चांदी द्वार से बाबा का जलाभिषेक किया। मंदिर प्रशासन ने भी बिना कोई तामझाम किए बेहद सम्मानपूर्वक इस आयोजन को सम्पन्न कराया। मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों के बीच अरिजीत की मौजूदगी किसी चमत्कारी दृश्य से कम नहीं थी।
अरिजीत सिंह को देखने के लिए मंदिर परिसर में प्रशंसकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लेकिन गायक ने बेहद शालीनता से सबका सम्मान किया और आरती के बाद मंदिर की चौखट से बाबा महाकाल का आशीर्वाद लिया। कोई सेल्फी नहीं, कोई प्रचार नहीं—सिर्फ सादगी, आस्था और आत्मिक शांति। यही वो मूल्य हैं जो आज भी लोगों को जोड़ते हैं, और यही है वो पत्रकारिता जिसकी मिसाल The Khabardar News बनना चाहता है — बिना शोर के, सच्चाई के साथ।

शनिवार की शाम अरिजीत सिंह ने इंदौर में एक लाइव म्यूजिक शो किया, लेकिन संगीत की दुनिया से निकल कर रविवार की सुबह उन्होंने खुद को प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया। शो की खास बात यह रही कि यह पारंपरिक स्टेज पर नहीं बल्कि रैंप-फॉर्मेट में हुआ, जिसमें मुंबई से खासतौर पर हाई क्वालिटी साउंड सिस्टम मंगवाया गया था। यही है आज के असली कलाकार की पहचान—जो मंच पर चमकता है लेकिन दिल से जुड़ा है धरती और धर्म से।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से आने वाले अरिजीत सिंह ने अपने करियर की शुरुआत रियलिटी शो “फेम गुरुकुल” से की थी, लेकिन आज वे ‘तुम ही हो’, ‘सजदे’, ‘चन्ना मेरेया’, ‘ए वतन’ जैसे गानों से हर दिल की धड़कन बन चुके हैं। उनके पास शोहरत है, पुरस्कार हैं, लेकिन जो उन्हें खास बनाता है, वो है सादगी और आत्मिक जुड़ाव। उनका महाकालेश्वर मंदिर आना, ये दर्शाता है कि सफलता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी धरती से जुड़ाव और आस्था सबसे ऊपर होती है। यही तो है वह सच्ची भावना, जिसकी जरूरत आज के समाज और हमारे नेताओं में भी है।






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