Written By: Anikta Tiwari
बेटियां ब्याह कर चल दी ससुराल को
बेटा भी कल शहर को चला जाएगा।
जिसके आंगन में अब तक रहीं महफिलें
उसके हिस्से में अब सूनापन आएगा।।
बेटियां ब्याह कर…..
पापा चुप रहते हैं अनमने बेखबर।
कैसे था पहले अब हो गया कैसा घर।।
इक तिहाई उमर कट गई काम मे।
कुछ परीक्षा में तो कुछ परिणाम में।।
रह गए सब खजाने धरे के धरे।
जेठ में कोई छतरी भला क्या करे।।
एक परिवार की यह कहानी नही
सबके हिस्से ही कल वन गमन आएगा।
जिसके आंगन में अब तक रहीं महफिलें
उसके हिस्से में अब सूनापन आएगा।।
बेटियां ब्याह कर..
पट की रौनक चली अपनी राहें लिए।
मां खड़ी रह गई दो निगाहें लिए।।
दो निगाहें वही दो निगाहों के बिन।
चुभती है जैसे साड़ी में चुभती है पिन।।
रूठे रूठे दरीचे गीत गाते नही।
नन्हे बच्चे भी खिड़की पे आते नही।।
है सहारा तो अब इक मोबाइल का बस
वीडियो कॉल में ही जीवन आएगा।
जिसके आंगन में अब तक रहीं महफिलें
उसके हिस्से में अब सूनापन आएगा।।
बेटियां ब्याह कर..
कुर्सियां दो बहुत खाट तकते ही क्या?
गाय भी बिक गई रख के करते ही क्या ?
चौखटों से टंगे उलझनों के निशान।
उपकरण से भरे खाली खाली मकान।।
पावं दस थे कभी आज बस चार हैं।
जिंदगी लग रही जैसे व्यापार है।।
होगा कोई न हल इस कठिन प्रश्न का
जो पढ़ा न वही व्याकरण आएगा।
जिसके आंगन में अब तक रहीं महफिलें
उसके हिस्से में अब सूनापन आएगा।।
बेटियां ब्याह कर…
खुल के बरसे नही मेघ सावन गया।
जैसे लाचार लंका से रावन गया।।
थी ताकत कलेवर में सब संग थे।
सप्तवर्ण सरीखे कई रंग थे।।
कह रही थी मुझे मां बताऊं ही क्या?
इच्छा होती नही घर में जाऊं ही क्या?
न प्रतीक्षा रही आए संन्यास चल
उम्र से पहले ही चौथापन आएगा।
जिसके आंगन में अब तक रहीं महफिलें
उसके हिस्से में अब सूनापन आएगा।।
बेटियां ब्याह कर..✍️
भरे पूरे चहकते परिवार में एक समय ऐसा आता है जब बेटियों का ब्याह हो जाता है और बेटे पहले पढ़ने फिर रोजगार के सिलसिले से शहर की ट्रेन पकड़ लेते हैं। जहां #ब्याह हमारी संस्कृति का एक आवश्यक संस्कार है वहीं #रोजगार हमारी मूलभूत आवश्यकता किंतु इस विवाह और रोजगार की रगड़ में घर और मां बाप कितना पिसते हैं, क्या स्थिति होती है वही चित्रण आज एक गीत के माध्यम से आपके समक्ष है।
पढ़ें,ज्यादा से ज्यादा शेयर करें एवं अपने भाव,विचार हम तक कमेंट्स के माध्यम से अवश्य पहुंचाएं। बताएं कि आपके घर में कैसी स्थिति है?
नोट- यह विवाह और रोजगार का विरोध नही है बल्कि उसके द्वितीय पक्ष की पीड़ा है।





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