एक शांत दोपहर, जम्मू-कश्मीर की वादियों में बसे पहलगाम के बैसरन इलाके में अचानक गोलियों की गूंज गूंज उठी। पर्यटकों की चीखें, भगदड़, और लहूलुहान इंसानियत—यह कोई फिल्मी दृश्य नहीं बल्कि 21वीं सदी के भारत की एक और दिल दहला देने वाली सच्चाई है। आतंकियों ने एक रिसॉर्ट के पास अचानक अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिसमें 26 मासूम लोगों की जान चली गई। सबसे दुखद पहलू यह रहा कि मृतकों में मध्यप्रदेश के एलआईसी अधिकारी सुशील नथानियल भी शामिल थे। देश स्तब्ध है, और एक बार फिर सवाल वही पुराना है—कब तक?
इस दर्दनाक घटना के बाद राजनीतिक गलियारों में भी एक अलग ही माहौल देखने को मिला। आमतौर पर एक-दूसरे पर तीखे हमले करने वाले भाजपा और कांग्रेस के नेताओं ने अपने मतभेद भुलाकर एकजुटता दिखाई। हर दल ने केवल एक बात पर जोर दिया—आतंकियों को सख्त से सख्त सजा मिले। यह पहली बार है जब सियासी बयानबाज़ी की जगह, इंसानियत और राष्ट्रहित को प्राथमिकता मिली। शायद यह वह संकेत है, जिसकी देश को अब तक तलाश थी।
भोपाल मध्य सीट से कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने अपने तीखे और संजीदा बयान से देशभर का ध्यान खींचा। उन्होंने कहा, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। हम किसी भी उस सोच के खिलाफ हैं जो निर्दोषों का खून बहाती है। पूरा देश एकजुट है, और अब समय आ गया है कि पीएम मोदी अपना वादा निभाएं और 56 इंच का सीना दिखाएं।” उनका बयान सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि उस आम भारतीय की आवाज़ थी जो सालों से आतंक के खिलाफ निर्णायक कदम का इंतज़ार कर रहा है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी इस हमले की तीव्र निंदा की और स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी इस मसले पर सरकार और सेना के साथ है। उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश में मृतकों को श्रद्धांजलि दी जाएगी और कैंडल मार्च निकाले जाएंगे। साथ ही, कांग्रेस का अल्पसंख्यक विभाग आतंकवादियों के पुतले दहन कर अपनी नाराजगी दर्ज कराएगा। यह पहल सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि पीड़ितों के परिवारों के प्रति संवेदनशीलता और आतंक के खिलाफ जन-आक्रोश का प्रतीक है।





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