मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के ईसागढ़ में एक ऐसा घटनाक्रम हुआ जिसने पूरे प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मचा दिया। भाजपा नेता और पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष भूपेन्द्र नारायण द्विवेदी से 20 हजार रुपये की रिश्वत मांगने वाले सहायक मंडी उपनिरीक्षक महेन्द्र कनेरिया को ग्वालियर लोकायुक्त की टीम ने रंगेहाथों धर दबोचा। जैसे ही रिश्वतखोर अधिकारी ने नोटों को अपनी जेब में रखा, वैसे ही लोकायुक्त की टीम ने उसे पकड़ लिया। लेकिन यह मामला यहीं खत्म नहीं हुआ—इसके आगे जो हुआ, उसने सभी को चौंका दिया!
दरअसल, भाजपा नेता भूपेन्द्र नारायण अपनी पत्नी के नाम से गल्ला खरीदी का लाइसेंस बनवाना चाहते थे। इसी प्रक्रिया के दौरान सहायक मंडी उपनिरीक्षक महेन्द्र कनेरिया ने उनसे 20 हजार रुपये की रिश्वत मांगी। सौदेबाजी के बाद यह रकम घटकर 15 हजार रुपये पर तय हुई। लेकिन भूपेन्द्र नारायण इस भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थे। उन्होंने इस पूरे मामले की शिकायत ग्वालियर लोकायुक्त से की, जिसके बाद लोकायुक्त की टीम ने पूरी योजना के साथ जाल बिछाया।
लोकायुक्त टीम ने भाजपा नेता को 15 हजार रुपये लेकर रिश्वतखोर अधिकारी के पास भेजा। जैसे ही महेन्द्र कनेरिया ने रुपये पकड़े और अपनी जेब में रखे, वैसे ही लोकायुक्त की टीम ने धावा बोल दिया। अधिकारियों ने तुरंत ही उसे रंगेहाथ पकड़ लिया, लेकिन यहाँ पर एक दिलचस्प मोड़ आया—जब उसकी जेब की तलाशी ली गई तो नोट अंदर फंस गए! यही वजह थी कि लोकायुक्त को उसकी पेंट उतरवानी पड़ी ताकि रिश्वत के सबूत जब्त किए जा सकें। यह नज़ारा देखकर मौके पर मौजूद लोगों में हलचल मच गई।
मध्यप्रदेश में लोकायुक्त की कार्रवाईयों का सिलसिला लगातार जारी है। लगभग हर हफ्ते किसी न किसी रिश्वतखोर अधिकारी को पकड़ा जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग रही। अशोकनगर की यह घटना यह बताने के लिए काफी है कि सरकारी दफ्तरों में अब भी कई अधिकारी अपने पद का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। आम जनता के कामों में अड़ंगा डालकर घूसखोरी को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार हमारे सिस्टम की गहरी जड़ें पकड़ चुका है। हालांकि लोकायुक्त लगातार अपने प्रयास कर रही है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक आम जनता को सरकारी दफ्तरों में रिश्वत देकर काम करवाना पड़ेगा? क्या अब सरकार ऐसे अधिकारियों के खिलाफ और सख्त कार्रवाई करेगी? क्या यह मामला अन्य भ्रष्ट अधिकारियों के लिए एक सबक बनेगा? या फिर यह भी कुछ दिनों बाद एक पुरानी खबर बनकर रह जाएगा?