प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 का तीसरा अमृत स्नान बसंत पंचमी के पावन अवसर पर पूर्ण विधि-विधान के साथ संपन्न हो गया। संगम तट पर लाखों श्रद्धालुओं और संतों ने आस्था की डुबकी लगाई, जिससे कुंभ नगरी का वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से ओत-प्रोत हो गया। महाकुंभ के इस महत्वपूर्ण पड़ाव के बाद अब अखाड़ों ने वापसी की तैयारियां शुरू कर दी हैं। कई अखाड़ों ने अपनी धर्म ध्वजा उतार दी है, तो कुछ संत-महंत पुनः अपने गंतव्य की ओर बढ़ने की योजना बना रहे हैं। शाही स्नान के उपरांत अखाड़ों की यह पारंपरिक वापसी महाकुंभ के समापन का संकेत देती है, जिसमें हर अखाड़ा अपने धार्मिक अनुयायियों और संत परंपराओं के अनुसार आगे की यात्रा तय करता है।
महाकुंभ में मौनी अमावस्या के बाद बसंत पंचमी का स्नान भी अत्यंत शुभ माना जाता है, जिसके लिए प्रशासन ने विशेष तैयारियां की थीं। संगम तट पर सभी 13 अखाड़ों के साधु-संतों ने अपने-अपने अनुयायियों के साथ स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त किया। इस दौरान प्रयागराज में आध्यात्मिक भव्यता का नजारा देखने को मिला। ब्रह्म मुहूर्त से ही स्नान की प्रक्रिया आरंभ हो गई थी, जिसमें नागा संन्यासियों से लेकर विभिन्न वैष्णव और शैव अखाड़ों के साधु-संतों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रशासन ने लाखों श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद रखा, जिससे स्नान पर्व निर्विघ्न संपन्न हुआ। अब अखाड़ों की वापसी का सिलसिला आरंभ हो गया है, जिसमें कुछ संत महाशिवरात्रि तक काशी में प्रवास करेंगे, तो कुछ राम नगरी अयोध्या में रामलला के दर्शन करने की योजना बना रहे हैं।
शैव संप्रदाय के अखाड़ों के महंतों ने महाशिवरात्रि तक बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में ठहरने का निर्णय लिया है, जहां वे विशेष अनुष्ठान और रुद्राभिषेक करेंगे। वहीं, वैष्णव अखाड़े अयोध्या में रामलला के दर्शन कर आगे की यात्रा पर निकलेंगे। इसके अलावा, उदासी और निर्मल अखाड़े हरिद्वार प्रस्थान करेंगे, जहां वे कुंभ में प्राप्त पुण्य को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लेंगे। पंचनामा आवाहन अखाड़े के संतों ने भी बनारस जाने की पूरी तैयारी कर ली है और शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अखाड़े के धर्मगुरु अनंत कौशल महंत शिवदास ने कहा कि अगले दो-तीन दिनों में वे विधि-विधान से अपनी धर्म ध्वजा उतारकर काशी की ओर प्रस्थान करेंगे। इस प्रकार, महाकुंभ 2025 के ऐतिहासिक स्नान पर्व के बाद साधु-संतों की यह आध्यात्मिक यात्रा अब अपने अगले चरण की ओर बढ़ रही है।