सोमवार सुबह कमेड गांव की नींद एक दर्दनाक चीख ने तोड़ी। एक युवक पर चाकू से ताबड़तोड़ वार किए गए। कुछ ही मिनटों में गांव का माहौल बदल गया—सन्नाटे की जगह गुस्से ने ले ली। हमला क्यों हुआ, किसने किया, कैसे किया—इन सवालों के जवाब मिलते इससे पहले ही गुस्साए ग्रामीणों ने कुछ दुकानों को आग के हवाले कर दिया। जैसे-जैसे धुएं का गुबार आसमान की ओर उठता गया, गांव के भीतर तनाव और भय की लपटें फैलती रहीं।
घटना रतलाम जिले के कमेड गांव की है, जहां धनेसरा निवासी एक युवक पर उस वक्त हमला किया गया जब वह कमठान-बम्बोरी मार्ग से गुजर रहा था। हमलावरों ने योजनाबद्ध तरीके से चाकू से उस पर कई वार किए, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। यह हमला सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं थी—यह एक सामाजिक असंतुलन का संकेत था, जो मामूली विवाद की चिंगारी से सुलगा और फिर पूरे गांव को जला गया।
हमले की खबर फैलते ही गांव उबल पड़ा। कुछ ही देर में स्थानीय बाजार की दुकानों में आग लगा दी गई। पत्थरबाजी और अफरा-तफरी के बीच लोगों का गुस्सा प्रशासन पर भी टूट सकता था, लेकिन मौके पर पहुंचे अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राकेश खाखा ने संयम से काम लिया। उन्होंने ग्रामीणों से बात की, आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भरोसा दिलाया और स्थिति को काबू में लिया। उनके साथ एडीएम शालिनी श्रीवास्तव और एसडीएम विवेक सोनकर भी पहुंचे। फिलहाल गांव में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात है और कमेड को एक अस्थायी छावनी में तब्दील कर दिया गया है।
यह हमला जितना सीधा दिखता है, उतना है नहीं। यह मामूली झगड़ा सिर्फ बहाना था। यह विवाद सामाजिक स्तर पर दबे हुए असंतोष और असमानता का नतीजा था, जिसे सही समय पर न सुलझाया गया, न समझा गया। जब समाज के भीतर संवाद की जगह ताकत ले लेती है, तब ऐसे ही हालात जन्म लेते हैं। और जब कानून की पकड़ कमजोर दिखती है, तब भीड़ कानून अपने हाथ में ले लेती है। यह घटना उस सामाजिक बीमार व्यवस्था का आइना है, जिसे सिर्फ पुलिस बल से नहीं, बल्कि नीति और न्याय से ही ठीक किया जा सकता है।





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