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Friday, November 15, 2024

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thekhabardarnews; बूढ़ा पहाड़ से नक्सली भागे, बिछा गए माइंस:फोर्स ने कैंप बनाए तो ठिकाना बदला, 100 से ज्यादा अब भी एक्टिव

चारों तरफ घना जंगल। न सड़क, न पुल-पुलिया। कहीं पहाड़ी, तो कहीं ढलान। कहीं नदी, तो कहीं रपटा। झारखंड के लातेहार जिले में आने वाले तिसिया गांव के आसपास का इलाका ऐसा ही है। ये गांव जंगल के लिए नक्सलियों का एंट्री पॉइंट कहा जाता है।

तिसिया से आगे बढ़ने पर नवाटोली गांव आता है और वहां से करीब 7 किमी दूर बूढ़ा पहाड़। यही बूढ़ा पहाड़ 30 साल तक नक्सलियों का अड्डा रहा। अब नक्सली तो यहां से भाग गए, लेकिन वे जवानों को मारने के मकसद से जगह-जगह माइंस बिछा गए हैं।

बीते एक महीने से झारखंड पुलिस, CRPF के साथ मिलकर इस इलाके में ऑपरेशन ऑक्टोपस चला रही है। पुलिस ने तिसिया, नवाटोली और बूढ़ा पहाड़ के नजदीक कैंप भी बना लिए हैं। पुलिस का दावा है कि बूढ़ा पहाड़ पर अब कोई नक्सली नहीं बचा। इस दावे की सच्चाई जानने भास्कर की टीम मौके पर पहुंची।

सुबह के 8 बज रहे हैं। हम लातेहार से पश्चिम की ओर निकले। साथ में झारखंड पुलिस के तीन जवान और एक अफसर। गाड़ी 80 से 100 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चलती रही, क्योंकि सड़क पर पैचवर्क कुछ महीनों पहले ही हुआ है। ट्रैफिक भी न के बराबर। करीब 1 घंटे बाद हम बारेसांढ़ पहुंचे। यहां एक पुलिस थाना है, जो 2014 में बना था।

बारेसांढ़ कभी नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। 2014 में थाना बनने के बाद उनकी मौजूदगी कम होती गई। हालांकि, थाना बनते वक्त भी नक्सलियों ने अटैक किया था।

बारेसांढ़ कभी नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। 2014 में थाना बनने के बाद उनकी मौजूदगी कम होती गई। हालांकि, थाना बनते वक्त भी नक्सलियों ने अटैक किया था।

10.30 बज चुके हैं। हमें बारेसांढ़ से आगे बढ़कर तिसिया गांव जाना है। वहां तक कार जाने का रास्ता नहीं है। हमने गाड़ी थाने में खड़ी की और आगे का सफर बाइक से शुरू हुआ। ये बाइक पुलिसवालों को सरकार ने दी हैं।

10 बाइक पर 20 जवान और हमारी टीम तिसिया के लिए निकले। सभी जवान एके-47 से लैस। एक के पास IED डिटेक्ट करने वाली मशीन भी थी।

बाइक मिट्टी में धंस जाती है, बोरियां रखकर पुल बनाया

कच्ची सड़क पर बाइक बार-बार मिट्‌टी में धंस जाती है। कहीं पत्थर, कहीं पानी तो कहीं बड़े-बड़े गड्ढे हैं। रास्ते में जगह-जगह CRPF और झारखंड पुलिस के एक-एक, दो-दो जवान एके-47 लेकर खड़े हैं। कुछ के पास इंसास राइफल भी है।

कुछ दूरी तय करने के बाद बूढ़ा नदी पड़ी। इसे पार करने के लिए पुलिस के जवानों ने रेत की बोरियों से टेम्परेरी पुल बनाया है। बोरियों के ऊपर सीमेंट के बड़े पाइप हैं। इन पर बाइक के पहिए स्लिप होते हैं, लेकिन हम जैसे-तैसे निकल जाते हैं।

ऐसे दो पुलों को क्रॉस करके करीब 12 बजे हम तिसिया गांव में दाखिल हुए। गांव में घुसते ही फोर्स का कैंप दिखता है। यह कैंप अभी CRPF के जिम्मे है। झारखंड पुलिस की स्पेशल यूनिट भी यहां तैनात है। कैंप में बिजली के लिए जनरेटर है। सोलर पैनल भी लगा है।

20 साल नक्सली रहे बड़ा विकास, बोले- कैडर में 30 से 70 साल तक के मेंबर
क्या बूढ़ा पहाड़ से सच में नक्सली भाग गए? यह सवाल मैंने बड़ा विकास से पूछा। बड़ा विकास 20 साल तक नक्सली रहे हैं। दो साल पहले ही वे जेल से बाहर आए हैं और इसी एरिया में काम करते थे।

विकास कहते हैं कि जिस बूढ़ा पहाड़ की घेराबंदी की गई है, अभी तो वहां से नक्सली भाग गए हैं। कुछ समय पहले तक वहां उनका कैंप था। एक समय उस कैंप में 150 से 300 नक्सली रहते थे। पुलिस के ऑपरेशन के पहले 40-50 नक्सली वहां थे। अब वे दूसरे पॉइंट में चले गए हैं।

विकास के मुताबिक, ‘नक्सलियों के ग्रुप में अभी 30 से 35 साल की एज ग्रुप के लड़के हैं। कुछ 60 से 70 साल की उम्र के भी हैं। ये सब बिहार, झारखंड के लोकल लड़के ही हैं। इनका लीडर स्वरूप यादव है। इनके पास एके-47 से लेकर तमाम दूसरे हथियार हैं। कुछ पुलिस से लूटे हुए हैं और कुछ इन्होंने खरीदे हैं।’

फोर्स के ऑपरेशन के वक्त जमीन में हथियार गाड़कर गांव लौट जाते हैं
लोकल जर्नलिस्ट मनीष उपाध्याय के मुताबिक, बूढ़ा पहाड़, पहाड़ों की एक सीरीज है। इन पहाड़ों को जितना नक्सली जानते हैं, उतना फोर्स नहीं जानती। पुलिस के इन इलाकों में कैंप बनने से नक्सलियों को राशन और सामान की सप्लाई में दिक्कत जरूर होगी, लेकिन यह कहना गलत है कि वे एरिया छोड़कर भाग गए हैं। पुलिस के ऑपरेशन चलने से वे छिप जरूर गए हैं, लेकिन भागे नहीं।

नक्सली 100 से 150 के दस्ते में घूमते हैं। इनमें नई उम्र के लड़के भी हैं, जो उगाही के लिए नक्सली बन गए। ऐसा कई बार देखने में आया है कि पुलिस के ऑपरेशन के वक्त ये लोग जमीन में हथियार गाड़कर गांव में खेती-किसानी करने लौट आते हैं। ऑपरेशन बंद होते ही फिर एक्टिव हो जाते हैं।

जंगलों में जो भी ठेकेदार काम करने जाता है, उसे नक्सलियों को 10 से 20% कमीशन देना होता है। बिना कमीशन के कोई काम नहीं कर सकता। इससे नक्सलियों को अच्छी-खासी कमाई होती है। ऐसे में वे आसानी से यह जगह छोड़ने वाले नहीं। अब लड़ाई विचारधारा की नहीं, पैसा कमाने की है।

मनीष कहते हैं- बूढ़ा पहाड़ के आसपास ही करीब 150 नक्सली छिपे हुए हैं। बूढ़ा पहाड़ करीब 55 किमी में फैला हुआ है। बहुत घना है। यहां बहुत गुफाएं, चट्टानें हैं। पुलिस अब तक इस पहाड़ पर नहीं चढ़ सकी है, क्योंकि जगह-जगह माइंस बिछी हैं। पहले कई लोग इनकी चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं।

अब उन गांवों का हाल जानिए, जो नक्सली इलाके में हैं
तबीयत खराब होने पर कंधे पर ढोकर ले जाते हैं…
तिसिया में कैंप का जायजा लेने के बाद मैं गांव की तरफ बढ़ गया। थोड़ा आगे कच्चे घर नजर आए। इनकी संख्या करीब 18-20 होगी। इनमें 50-60 लोग रहते हैं।

सबसे पहले हमारी मुलाकात दिलीप नरसिया से हुई। गांव के बारे में पूछने पर बोले, ‘यहां अस्पताल, सड़क, बिजली, पानी कुछ भी नहीं है। किसी की तबीयत खराब होती है तो उसे कंधे पर ढोकर ले जाते हैं।’

दिलीप 5वीं तक पढ़े हैं। पहले गांव में 5वीं तक एक कच्चा स्कूल था। तीन साल पहले वह भी टूट गया और दोबारा नहीं बन पाया। एक टीचर हैं, वे भी कभी आते हैं, कभी नहीं। आते हैं तो पेड़ के नीचे बच्चों को थोड़ा-बहुत पढ़ा देते हैं। दिलीप खुश हैं कि उनके गांव में फोर्स का कैंप बन गया है।

वहीं गांव के ही राजेंदर ने बताया कि गांव में आने के बाद दो-दो नक्सली एक-एक घर में चले जाते थे। कई बार दूसरी जगह खाना पहुंचाने का बोलते थे। गांव में मीटिंग भी करते थे और पुलिस के बारे में पूछते थे।

दूध होता है, लेकिन बेच नहीं पाते थे…
तिसिया में सभी ट्राइबल लोग रहते हैं। इनके पास रोजगार के नाम पर सिर्फ फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की मजदूरी का काम होता है। वह कभी मिलती है, कभी नहीं। यहां से करीब 12 किमी दूर नवाटोली गांव में कुल 7 घर हैं। इनमें 6 घर यादवों के हैं। वे सब गाय-भैंस रखते हैं। दूध नहीं बेच पाते, क्योंकि कनेक्टिविटी नहीं है। इसलिए मावा बनाकर शहर में टाइम-टाइम पर बेचने जाते थे। कैंप बनने से बीते एक महीने से दूध भी शहर जाने लगा है।

CRPF की 4 और झारखंड जगुआर की एक कंपनी लगी

पुलिस ने जो 4 कैंप बनाए हैं, उनमें CRPF की 4 कंपनी और झारखंड जगुआर की एक कंपनी स्थायी तौर पर तैनात की गई है। मतलब ये जवान कैंपों में ही रहना और खाना-पीना कर रहे हैं।

ठीक एक महीने पहले शुरू हुए इस ऑपरेशन को फोर्स ने ऑक्टोपस नाम दिया है। पुलिस और CRPF के अधिकारी भी कहते हैं कि कई नक्सली आसपास के जंगल में ही छिपे हुए हैं। उन्हें पकड़ने के लिए भी एक स्पेशल प्लान पर काम चल रहा है। हालांकि इस एरिया में आने में अब भी आसपास के लोग डर रहे हैं। उन्हें लगता है कि नक्सली कभी भी अचानक धावा बोल सकते हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे का मुकाबला शशि थरूर से है। खड़गे की जिंदगी हमेशा मुश्किल भरी रही, लेकिन लीडरशिप की क्वालिटी उनमें बचपन से थी। वे स्कूल में हेड बॉय थे। कॉलेज गए तो स्टूडेंट लीडर बन गए। गुलबर्गा जिले के पहले दलित बैरिस्टर बने, पहली बार में विधायक बने और 9 बार चुने गए, दो बार सांसद भी रहे, लेकिन तीन बार कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।

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