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Friday, November 15, 2024

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नींद में चीख पड़ती है 12 साल की बच्ची:गैंगरेप के बाद खड़ी भी नहीं हो पा रही; मां बोली- दरिंदों को मेरे सामने फांसी हो

‘मम्मी बचा लो…मम्मी बचा लो… ये दोनों मुझे मार डालेंगे…। ये बोलते हुए उसकी चीख निकल जाती है। ऐसा रोज होता है। रात को झपकी लगते ही उसकी आंखों के सामने पूरी वारदात तैर जाती है। उसे कमरे में बंद करके सुलाते हैं। उसे खेलना-कूदना पसंद है। कभी पांव एक जगह टिकते नहीं थे, लेकिन गैंगरेप के बाद पैरों में इतनी ताकत नहीं बची कि खुद से खड़ी हो सके। टॉयलेट के लिए भी सहारा देकर ले जाना पड़ता है। नहीं मालूम कि वह पहले की तरह खेल-कूद पाएगी या नहीं। पेट पर ऑपरेशन के जख्म हैं। दर्द के मारे कराह उठती है। शरीर में कई जगह दरिंदों के काटने के जख्म अब तक नहीं भरे। बेटी को जिंदगी भर का दर्द देने वाले दोनों दरिंदों को मेरे सामने फांसी होनी चाहिए।‘

यह दर्दभरी दास्तां 12 साल की बच्ची की है। सतना जिले के मैहर में दो लोगों ने उसके साथ गैंगरेप कर जंगल में फेंक दिया था। प्राइवेट पार्ट में लकड़ी डाल दी थी। अब दोनों आरोपी जेल में हैं। उनका घर भी ढहाया जा चुका है। वारदात को 18 दिन बीत चुके हैं।

दैनिक भास्कर की टीम बच्ची के गांव पहुंची। यहां बच्ची के हालात देखकर आंसू निकल गए। उसकी जान तो बच गई, लेकिन अब जिस दर्द वह गुजर रही है, उसकी कल्पना से भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बच्ची के पूरे शरीर पर जख्म हैं। वक्त के साथ ये जख्म भर जाएंगे, लेकिन उसकी टीस जेहन से शायद ही जाए। बच्ची की मां और दादा कहते हैं कि जब-जब भी बच्ची पर निगाह पड़ती है, आंखों में गुस्सा और दर्द उभर आता है।

मां की जुबानी, बेटी का दर्द जानिए…

बच्ची की मां ने बताया- 27 जुलाई की दोपहर दोनों बेटियों को घर छोड़कर मैं कुछ कागज बनवाने नगर पालिका गई थी। 12 साल की बड़ी बेटी बाहर खेल रही थी। पास ही दूल्हा बाबा की टंकी है। वहीं से पहाड़ लगा हुआ है। ये दोनों तभी बच्ची को उठाकर ले गए होंगे। हमने बच्ची को बहुत खोजा, लेकिन नहीं मिली। सुबह थाने पहुंचकर केस दर्ज कराया। इसके बाद करीब 10 बजे बच्ची बेसुध मिली। वारदात को 18 दिन हो चुके हैं। डॉक्टरों ने भी अस्पताल से घर भेज दिया है। अब यहां एक-एक दिन साल के जैसे कट रहा है।

पहले हम घर के बाहर खुले में सोते थे। अब बच्ची को कच्चे घर के अंदर कमरे में बंद कर सुलाते हैं। छोटी बेटी को डर के कारण मामा के घर भेज दिया है, क्योंकि डर है कि कहीं बड़ी बेटी के अवसाद का असर छोटी पर न पड़ जाए। बड़ी बहन गुमसुम रहती है तो वह पूछती है कि दीदी को क्या हुआ? उसे क्या और कैसे बताएं? वारदात से पहले सुबह उठते ही उसका खेलना-कूदना शुरू हो जाता था। पूरे गांव का चक्कर लगा आती थी। कभी घर के सामने सहेलियों के साथ मिट्‌टी के गुड्‌डे-गुड़िया बनाकर खेला करती थी, लेकिन पूरी दिनचर्या बदल गई है। अब वो रोज सुबह 6 बजे जाग तो जाती है, लेकिन खेलना-कूदना बंद हो चुका है।

मैं या उसके दादाजी सुबह 7 बजे तक शौच कराने ले जाते हैं। खाने में दलिया, दाल और खिचड़ी देते हैं। इसके बाद डॉक्टरों द्वारा दी गई दवा देते हैं। दिनभर बिस्तर पर गुमसुम पड़ी रहती है। दोपहर में हल्का खाना देते हैं। इसी तरह, सुबह से शाम और फिर रात हो जाती है। ऐसे ही दिन कट रहे हैं। बात भी नहीं करती है।

जिसने बच्ची को बचाया, उसका भी रोजगार खतरे में

पड़ोसी अंजना वर्मा (35) ने बताया कि वारदात के दिन सबसे पहले मैं ही बच्ची को जंगल से खोजकर अस्पताल पहुंचाई थी। ऐसे में मीडियावालों ने बढ़ा-चढ़ाकर हमारे फोटो और वीडियो दिखाए। दोनों आरोपी मां शारदा प्रबंध समिति के कर्मचारी थे। मैं भी मैहर शारदा देवी कैंपस में फुटपाथ पर दुकान लगाती हूं, जिससे परिवार का भरण-पोषण होता है, लेकिन अब लगता है कि ये लोग मेरा सब कुछ छीन लेंगे।

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