रीवा- मध्य प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री मंचों से यह घोषणाएं और वादे करने से नहीं कतराते की मध्य प्रदेश की जनता पूरी तरह से सुरक्षित है मुख्यमंत्री के द्वारा मंच पर यह बोल दिया जाता है कि मध्यप्रदेश में पर्याप्त पुलिस बल है और किसी की भी गुंडागर्दी एमपी मे हावी नहीं हो सकती लेकिन मुख्यमंत्री एक नजर रीवा पर नहीं डाल रहे है कि इन दिनों रीवा की हालत कैसी चल रही है? मुख्यमंत्री को कागजों में जो लिखकर बता दिया जाता है मुख्यमंत्री उसी बात पर पूरी तरह से ध्यान आकर्षित कर लेते हैं लेकिन कागजों की बातें कुछ और बताती है, और जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं। मामला रीवा जिले के शाहपुर थाना का है जहा इन दिनों एएसआई को थाना का प्रभार दिया गया है आपको बता दें की शाहपुर थाना के तत्कालीन थाना प्रभारी रहे बालकेश सिंह का स्थानांतरण सतना जिले में होने के बाद खटखरी चौकी प्रभारी रहे उदयभान सिंह को शाहपुर थाने की कमान दे दी गई लेकिन इन दिनों एसआई उदयभान सिंह छुट्टियों पर चल रहे हैं जिस कारण थाने की कमान एएसआइ को सौप दी गई है बता दें कि एसआई उदयभान सिंह पूर्व में कई थानों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं लेकिन जिन जिन थानों में एसआई उदयभान सिंह के द्वारा अपनी सेवाएं दी गई हैं वहां की जनता आज भी यह कहती है कि ऐसा थाना प्रभारी हमारे थाने में दोबारा कभी भी ना आए, ऐसा शब्द स्थानीय निवासियों के द्वारा क्यों बोला जाता है अगर कोई अधिकारी एक छोटे बच्चे से भी पूछ ले तो वह बता देगा, जब से उदयभान सिंह को शाहपुर थाना की कमान मिली है तब से लेकर आज तक नाश, नशेडीओ, और राहगीरो से लूट करने वालों के विरुद्ध एक भी कार्यवाही शाहपुर थाना में नहीं की गई है जबकि थाना क्षेत्र में किस तरह से इन दिनों अराजकता फैली हुई है यह बात किसी से भी नही छुपी है वहीं इन दिनों जब शिकायतकर्ता शाहपुर थाना की चौखट खटखटते हैं तो शाहपुर थाना से जवाब मिल जाता है कि थाना में 10 से भी कम का बल मौजूद है 10 में से एक हमेशा बाहर (जिले से बाहर) का काम देखते हैं, दो आरक्षक चालान बाटने चले जाते हैं, एक आरक्षक कंप्यूटर का कार्य कारते हैं एवं दो आरक्षकों को अन्य डॉक्यूमेंट के कामों में लगा दिया जाता है, अब बचे 4 आरक्षक में से दो छुट्टी पर चले जाते हैं तो दो आरक्षक को लेकर किस पर कार्यवाही करने जाएं और किस आरोपी को पकड़े समझ में ही नहीं आता इतनी बात जब थाने में बता दी जाती है तो शिकायतकर्ता आवेदन देकर खुद-ब-खुद थाने की सीढ़ी उतर लेता है। ऐसे में ज्यादा परेशान कोई भी ग्रामीण कार्यवाही के लिए जाता है और थाना प्रभारी से कहता है कि आरोपियों की गिरफ्तारी कर ली जाए तो यह जवाब दे दिया जाता है कि अभी आरक्षक नहीं है जब आरक्षक आ जाएंगे तो फिर आरोपी को पकड़ने के लिए जाएगे प्रभारी की बात भी गलत नहीं रहती क्योंकि थाना में बल नहीं है और ना ही थाना कि कमान किसी ऐसे थाना प्रभारी के हाथ मे है जो कि थाना चलाने का अनुभव रखता हो। वही पुलिस बल के इस कमी का भरपूर फायदा नशेड़ी एवं राहगीरों से लूट करने वालों को मिल रहा है क्योंकि राहगीरों से लूट करने वाले लुटेरे लगातार मारपीट कर लूट की घटना को अंजाम देकर रफूचक्कर हो जाते हैं थाना में बल ना होने के कारण लुटेरों का कोई अता पता नहीं लग पाता है ऐसे में थाना प्रभारी एवं आरक्षको की कमी थाना को ही नहीं अपितु पूरे थाना क्षेत्र वासियों को खलती है कि अब वह किसके भरोसे अपने आप को सुरक्षित महसूस करें? लेकिन शाहपुर थाना पर ना तो पुलिस कप्तान की नजर जा रही है और ना ही अन्य किसी अधिकारियों की शाहपुर थाना की अनदेखी का खामियाजा क्षेत्रवासी उठाने पर मजबूर है।
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