सीधी चुरहट के समीप लकोड़ा में बघेली की समृद्धि लोक सम्पदा का उत्सव “अंगराग” लोकउत्सव एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वहां सीधी के प्रसिद्ध रंगकर्मी और लोक के अध्येता नरेन्द्र बहादुर सिंह की पुस्तक सोहर राग परंपरा का विमोचन समारोह आयोजित हुआ। समारोह में वरिष्ठ पत्रकार गिरजा शंकर, डॉ चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी चन्द्र, वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल, जगजीवन लाल तिवारी, राम नरेश तिवारी निष्ठुर, डॉ. शिवशंकर मिश्र सरस, डॉ अनिल कुमार सिंह, दमोह कटनी से सुसंस्कृति सिंह परिहार एवं नन्दलाल सिंह सहित अनेक लोक के अध्येता साहित्यकार शामिल हुए।
पुस्तक विमोचन के साथ ही इस अवसर पर बघेली के तमाम लोक विधाओं की लोगगीत मंडलियों द्वारा अपने वाद्य यंत्रों के साथ अपनी-अपनी प्रस्तुती दी गई। किसी भी क्षेत्र की लोक का अपना अलग ही मिजाज होता है,और बघेली की लोक परंपरा बेहद समृद्दि हैं। लोक गीतों की एक बेहतर बात यह होती है की उसमे शास्त्रीय संगीत की तरह न तो कोई सिखाने वाला गुरू होता न सीखने वाले चेला। लोह बस गाते बजाते और नृत्य करते -करते ही लोक कलाकारों के हाथ पैर लय बद्धता के साथ जुड़ जाते हैं।
सीधी जिला वाणभट्ट, से लेकर बीरबल की जन्म स्थली के लिए तो प्राचीन समय से ही प्रसिद्ध रहा है। परन्तु जिस तरह उसी जिले में जन्मे मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री माननीय कु.अर्जुनसिंह जी ने भोपाल में भारत भवन, मानव संग्रहालय य आदिवासी लोककला परिषद जैसी संस्थाओं की आधार शिला रखी, उससे सीधी का नाम ऊंचा हुआ है। इन तमाम सांस्कृतिक संस्थानों के बनने के पीछे की एक कहानी है। उसके बारे में कु. अर्जुनसिंह जी के सुपुत्र श्री अजय सिंह जी (राहुल भइया) ने बताया कि ” उन दिनों सीधी में घनघोर जंगल थे जहां बाघ तेंदुए आदि जंगली जानवर रहते थे।और काला कांकर नरेश श्री दिनेश सिंह केन्द्रीय मंत्री थे जो दाऊ साहब के मित्र थे अस्तु उनने शिकार खेलने की इच्छा ब्यक्त की। उन दिनों शिकार खेलना प्रतिबंधित भी नही था। दाऊ साहब ने उनको आमंत्रित किया एवं घने जंगलों के बीच ही 7-8 दिन का एक केम्प लगा।
उस केम्प में यहां के तमाम अलग- अलग विधाओं के कलाकार भी आमंत्रित किए गए जो कभी अहिरहाई, कभी ढिमर हाई कभी कोलो की दादर तो कभी गोंडों के करमा आदि की प्रस्तुतियां देने लगे। उस समय श्री अशोक बाजपेयी सीधी में नए – नए कलेक्टर होकर आए थे अस्तु समस्त ब्यवस्था उन्हीं के जिम्मे थी। पर जब दाऊ साहब मुख्य मंत्री बने तो उन्हें भोपाल में लेजाकर अपना सांस्कृतिक सचिव बनाया और फिर दाऊ साहब तथा श्री अशोक बाजपेयी जी के उसी परिकल्पना की देन हैं भोपाल के यह सभी सांस्कृतिक संस्थान।
विमोचित पुस्तक बघेली की सोहर राग परम्परा तीन अलग – अलग खण्डों में है । जिसमे यह पहला खण्ड ही 500 पृष्ट से अधिक वाला है। जिसका सम्पादन वरिष्ठ साहित्यकार सन्तोष द्विवेदी ने की है। हमारे मध्यप्रदेश में 4 प्रमुख बोलियां हैं जिन्हें बघेली, बुन्देली, मालवी एवं निमाड़ी नाम से जाना जाता है।अन्य बोलियों के मुकाबले बघेली का लिखित साहित्य कुछ कमतर होगा। पर मौखिक य बाचिक परम्परा के साहित्य को कम कर के नही आंका जा सकता और इसके सम्बाहक रहे हैं शहरी क्षेत्र से दूर जंगल पहाड़ों के बीच बसे हमारे गांव।
किसी अवधारणा से बाद में भले ही हजारों लोग जुड़ जाँय पर उसके बुनियाद में एक दो लोगों की सोच ही उसे मूर्तरूप देती है। इस बारे मे कार्यक्रम मे गए बाबूलाल डाहिया कहते है “बघेली का एक छोटा सा अध्येता होने के कारण यह बात बड़े गर्व के साथ कह सकता हूं, कि आज जिस तरह लोक संगीत और नाटक के क्षेत्र में सीधी का नाम राष्ट्रीय स्तर पर उभर कर सामने आया है और 10-12 वर्ष के बालक तक अपनी बेहतर प्रस्तुतियां मंचों ने देते हैं उनको आगे बढ़ाने वाले श्री नीरज कुंदेर, श्री रोशनी प्रसाद मिश्र एवं श्री नरेन्द्र बहादुर सिंह ही हैं साथ ही उन्हें सम्बल देने वाले डॉ शिवशंकर मिश्र, डॉ अनिल कुमार सिंह जैसे साहित्यकार ।परिणाम यह है कि इन प्रयासों से न सिर्फ नई पीढ़ी को आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि अनेक ग्रामीण प्रतिभाओं को खोज -खोज कर उन्हें मंच दे रहे हैं। क्योकि गुण भले ही प्रकृत प्रदत्त हों परन्तु गुण ग्राहक य अवसर के अभाव में प्रतिभाएं भी कुंठित होकर रह जाती हैं।
दो सत्र में चलने वाले इस समारोह के प्रथम के मुख्य अतिथि जहां श्री गिरिजा शंकर जी रहे वही दूसरे सत्र के मुख्य अतिथि श्री अजय सिंह जी पूर्व नेता प्रतिपक्ष थे। इस सत्र में तमाम कलाकारों व कवियों को सम्मानित भी किया गया। बाद में कविसम्मेलन की शुरुआत हुई।