इस लेख में हम आपको बताएंगे कि श्राद्ध की परंपरा महाभारत के समय कैसे शुरू हुई थी।
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है। इन दिनों में लोग अपने पूर्वजों को याद करके पूरे विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं।
पुराणों में भी पितृपक्ष को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। कई सारी पौराणिक और लोक कथाओं में भी इसका वर्णन है। लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि महाभारत में श्राद्ध क्यों किया गया था।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कि महाभारत के समय कैसे पितृपक्ष की परंपरा शुरू हुई थी।
दानवीर कर्ण और इंद्र से भी जुड़ी है पितृ पक्ष की कथा
आपको बता दें कि हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाभारत के कर्ण अपने दानवीर स्वभाव होने की वजह से प्रसिद्ध थे। उनकी मृत्यु के बाद जब उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची तो वहां उनकी आत्मा को खाने के लिए सोना दिया गया था।
इस पर कर्ण ने भगवान इंद्र से पूछा कि ‘उन्हें खाने में सोना क्यों दिया जा रहा है?’ इस बात पर भगवान इंद्र ने कहा था कि ‘तुमने हमेशा लोगों को सोना ही दान किया है और कभी अपने पितरों को खाना नहीं खिलाया था। इसलिए तुम्हें खाने के लिए सोना ही दिया जा रहा है।’
इसके बाद कर्ण ने भगवान इंद्र से वापस धरती पर जाने के लिए विनती करी थी। जब इंद्र देव ने उन्हें वापस धरती पर भेजा फिर कर्ण ने पितृ पक्ष की पूजा विधि विधान के साथ करी और 16 दिनों तक पिंडदान और श्राद्ध भी किया जिसके बाद उनके पूर्वज उनके इस कार्य से बहुत खुश हुए।
जब पितृ पक्ष समाप्त हो गया तो कर्ण ने भगवान इंद्र से कहा कि अब उनकी आत्मा को वापस स्वर्ग में बुला लिया जाए। फिर भगवान इंद्र ने कर्ण को वापस स्वर्ग लोक में बुला लिया था।
महाभारत काल से जुड़ी है यह कथा
आपको बता दें कि महाभारत में भीष्म पितामह का युधिष्ठिर के साथ एक संवाद बताया गया है। जिसमें भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व को बताया था।
भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को पितृपक्ष के बारे में पूरा ज्ञान दिया था। आपको बता दें कि निमि ऋषि अपने पुत्र की अचानक से हुई मृत्यु के कारण बहुत दुखी थे। इसके बाद उन्होंने अपने पूर्वजों के लिए पूजा शुरू करी थी। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए थे और उन्हें बताया था कि ‘ऋषि निमि का पुत्र पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है।’
इसके पीछे का कारण पूर्वजों ने यह बताया कि ‘ऋषि निमि ने विधि पूर्वक अपने पुत्र की आत्मा की शांति के लिए सही तरह से पूजा का कार्य किया और वह पूजन वैसा ही था जिस प्रकार पितृ यज्ञ को किया जाता है।’
इसके बाद से महर्षि निमि ने श्राद्ध कार्य को सभी के साथ करना यह कार्य शुरू किया और कई लोगों को इस श्राद्ध को करने का महत्व बताया था।
आपको बता दें कि महाभारत में पांडु और कुंती के सबसे बड़े पुत्र युधिष्ठिर को भीष्म पितामह ने श्राद्ध का महत्व और उसकी विधि भी बताई थी जिसके बाद महाभारत के युद्ध में मारे गए अपने परिवार के लोगों का श्राद्ध युधिष्ठिर ने ही किया था।
तो यह थी जानकारी पितृ पक्ष से जुड़ी हुई। अगर आप ऐसी ही किसी अन्य जानकारी के बारे में जानना चाहते है तो हमें कमेंट करके बताएं।