Monday, December 22, 2025

रीवा में धान खरीदी का कड़वा सच: क्या वादे और हकीकत के बीच पिस रहा है Rewa का किसान? by Journalist Vijay

रीवा में धान खरीदी का कड़वा सच: क्या वादे और हकीकत के बीच पिस रहा है Rewa का किसान? by Journalist Vijay (Rewa Paddy Procurement 2025-26)

Rewa और पूरे विंध्य क्षेत्र में धान खरीदी (Paddy Procurement) की प्रक्रिया इस समय सबसे बड़ा मुद्दा बनी हुई है। सरकारी आंकड़े जहाँ रिकॉर्ड खरीदी का दावा कर रहे हैं, वहीं जमीनी स्तर पर किसान बारदानें, टोकन, सर्वर और बिचौलियों की मार झेल रहा है। इस विशेष पड़ताल में हम क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों और कैसे के जरिए इस पूरी समस्या को समझनें की कोसिस करेंगे।


शिकारी’ और ‘शिकार’ के बीच फंसा रीवा (Rewa Farmers Trapped in Corrupt System)

रीवा, जिसे सफेद बाघों की धरती कहा जाता है, आज वहां का किसान अपनी ही फसल को बेचने के लिए ‘शिकारी’ और ‘शिकार’ के खेल में फंसा हुआ है। सड़कों पर ट्रैक्टरों की लंबी कतारें, भयंकर ठंड में खुले आसमान पर रातभर काँपते किसानों और मंडियों में छाई अव्यवस्था यह सवाल खड़ा करती है कि क्या सरकार की योजनाएं केवल विज्ञापनों तक सीमित हैं?

1. क्या है पूरा मामला? (What is the Rewa Dhan Kharidi Issue?)

मध्य प्रदेश के रीवा संभाग में धान की सरकारी खरीदी (Paddy Procurement in MP) का काम चल रहा है। सरकार ने इस साल धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP 2025-26) ₹2,369/₹2,389 तय किया है ताकि किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिल सके।

लेकिन हकीकत में, ‘समर्थन मूल्य’ का लाभ लेने के लिए किसान को जिन मुसीबतों से गुजरना पड़ रहा है, वह किसी बुरे सपने से कम नहीं है। किसान का आरोप है कि उन्हें सही समय पर टोकन नहीं मिल रहा और मंडियों में अनाज रखने की जगह नहीं है। हजारों किसान 2-4 दिन तक अपनी धान की रखवाली के लिए मंडियों में खुले आसमान में सोने को मजबूर हैं। सबसे बड़ी समस्या बारदानें की कमीं (Shortage of Gunny Bags) की वजह से हो रही है। यह समस्या हर साल रहती है, लेकिन समाधान अब तक नहीं हुआ।

विशेष ग्राउंड रिपोर्ट: गंगेव स्टेडियम में तौल का बड़ा खेल

TKN Prime News की इस एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट में समाजसेवी प्रकाश तिवारी ने धान खरीदी की कड़वी सच्चाई को दिखाया है। रीवा के गंगेव स्टेडियम स्थित केंद्र पर खुलेआम किसानों का हक मारा जा रहा है। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि मानक तौल (40.600 kg) की जगह हर बोरी में 41.200 से 41.350 किलो तक धान भरा जा रहा है। यानी हर बोरी पर किसान से 600 से 800 ग्राम धान अतिरिक्त लूटा जा रहा है। एक किसान, जिसके 131 बोरे थे, उसे सीधे तौर पर लगभग 78 किलो धान का नुकसान उठाना पड़ा। प्रशासन की चुप्पी और दलालों की सक्रियता ने व्यवस्था को पूरी तरह खोखला कर दिया है।

नीचे दिए गए वीडियो में देखें गंगेव स्टेडियम की सच्चाई: https://youtu.be/aponh4phu6g

2. कौन है इसके पीछे? (Who is behind this Chaos?)

इस पूरी प्रक्रिया में तीन मुख्य पक्ष शामिल हैं:

  • किसान (The Farmer): जो दिन-रात मेहनत करके अनाज उगाता है।
  • प्रशासन (The Administration): जो नियम बनाता है लेकिन उन्हें लागू करने वाली मशीनरी (पटवारी, समिति प्रबंधक और सर्वेयर) अक्सर सुस्त और भ्रष्टाचार से युक्त नजर आती है।
  • बिचौलिए (Middlemen): ये इस पूरी व्यवस्था की सबसे बड़ी कमजोरी हैं। कई ‘फर्जी पंजीयन’ (Fake Registration) कराकर बिचौलिए असली किसानों का हक मार रहे हैं। हाल ही में रीवा में हजारों संदिग्ध पंजीयन पकड़े गए हैं।

3. कहाँ हो रही है धांधली? (Which Dhan Mandies are most corrupt in Rewa?)

समस्या किसी एक केंद्र की नहीं है। रीवा की करहिया मंडी (Karhiya Mandi), हनुमना, नईगढ़ी, मनगवां, मऊगंज और त्यौथर जैसे इलाकों के खरीदी केंद्रों से लगातार शिकायतें आ रही हैं। सबसे ज्यादा परेशानी उन केंद्रों पर है जहाँ गोदाम (Warehouses) पहले से भरे हुए हैं। खुले आसमान के नीचे पड़ी धान मौसम की मार झेल रही है, जिससे किसान की रातों की नींद उड़ गई है।

4. कब सुधरेगी व्यवस्था? (When will the Farmers of Rewa be Happy?)

खरीदी शुरू हुए हफ्तों बीत चुके हैं। सरकार का दावा था कि Paddy Payment 48 से 72 घंटों के भीतर बैंक खातों में पहुँच जाएगा। लेकिन धरातल पर भुगतान (Payment) में 15 से 20 दिनों की देरी आम बात हो गई है। किसान को अगली फसल (गेहूं) के लिए खाद और बीज खरीदना है, लेकिन पैसा न होने के कारण वह ऊंचे ब्याज पर कर्ज लेने को मजबूर है।

5. क्यों आ रही हैं ये मुश्किलें? (Why: Major Issues in Dhan Kharidi Kendra)

इसके पीछे कई तकनीकी और प्रशासनिक कारण (Technical & Administrative reasons) हैं:

  • बारदानें की कमीं (Shortage of Bags): सबसे बड़ी प्रशासनिक विफलता।
  • तौल में धांधली: जैसा गंगेव स्टेडियम की रिपोर्ट में दिखा, हर बोरी में 600-800 ग्राम ज्यादा धान लेकर किसानों की लूट हो रही है।
  • सर्वर की समस्या (Server Issues): ‘डिजिटल इंडिया’ का नारा तब फेल हो जाता है जब खरीदी केंद्रों पर घंटों पोर्टल नहीं खुलता।
  • नमी का बहाना (Moisture Content Excuse): सर्वेयर अक्सर धान में ‘नमी’ ज्यादा बताकर उसे रिजेक्ट कर देते हैं, ताकि परेशान होकर किसान उसे कम दाम में बिचौलियों को बेच दे।
  • नेताओं की बल्ले-बल्ले: यदि धान किसी सत्ता पक्ष के करीबी की है, तो घटिया माल भी तुरंत स्वीकार कर लिया जाता है।

6. कैसे निकलेगा समाधान? (How Rewa’s Farmers Issue will be Resolved)

अगर सरकार वाकई किसानों की मदद करना चाहती है, तो उसे ये कदम तुरंत उठाने होंगे:

  1. पर्याप्त बारदाना: सप्लाई करने वाली कंपनियों का ऑडिट हो और गाइडलाइन न फॉलो करने वाले वेंडरों पर कड़ी कार्यवाही हो।
  2. पारदर्शी तौल: डिजिटल कांटों की नियमित जांच हो ताकि किसानों को तौल में नुकसान न हो।
  3. पारदर्शी टोकन सिस्टम (Transparent Token System): ‘पहले आओ, पहले पाओ’ का नियम सख्ती से लागू हो।
  4. फर्जी पंजीयन पर रोक: पटवारियों के जरिए हर पंजीयन की भौतिक जांच (Physical Verification) अनिवार्य हो।
  5. समय पर भुगतान (Direct Benefit Transfer): खातों में तुरंत पैसा भेजा जाए।
  6. मोबाइल खरीदी केंद्र: दूर-दराज के गांवों के लिए मोबाइल केंद्रों की व्यवस्था हो।

ग्राउंड रिपोर्ट: किसान की जुबानी

रीवा के एक किसान बताते हैं, साहब, हम 3 दिनों से ट्रैक्टर लेकर मंडी के बाहर खड़े हैं। गेहूं के खेत में पानी देना है, आवारा मवेशी फसल खा रहे हैं, घर की गाय-भैंसों को चारा-पानी भी मैं ही देता था। अधिकारी कहते हैं कि बारदाना खत्म हो गया है। अब आप ही बताइए, हम अपना दर्द किसे सुनाएं?”

अंत में हम सिर्फ यही कहेंगे कि:

सरकार को समझना होगा कि किसान सिर्फ ‘वोट बैंक’ नहीं है, वह इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। रीवा में धान खरीदी की प्रक्रिया एक कठिन परीक्षा बन गई है। नीति अच्छी है, लेकिन नीयत और क्रियान्वयन (Execution) में खोट है। धान खरीदी केंद्रों पर जो हो रहा है, वह प्रशासन की नाक के नीचे चल रही संगठित लूट है। शासन-प्रशासन को कागजों से बाहर निकलकर मंडियों की धूल फांकनी होगी, तभी जाकर किसान को उसका हक मिल पाएगा।

लेखक: Journalist Vijay विशेष रिपोर्ट – TKN Prime News


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