Friday, December 5, 2025

दिल्ली कार धमाका: Key Findings और अनसुलझे सवाल

Written by: Journalist Vijay

यह विस्तृत रिपोर्ट 10 नवंबर 2025 को लाल किले के पास हुए कार धमाके और उसके बाद की गई जांच पर आधारित है। इस विश्लेषण में प्रस्तुत सभी निष्कर्ष, डेटा और कमेंट्री सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी, सुरक्षा एजेंसियों के आधिकारिक बयानों और मीडिया रिपोर्टों पर आधारित हैं। हम यह स्पष्ट करना चाहेंगे कि इस रिपोर्ट का उद्देश्य तथ्यों और चुनौतियों का निष्पक्ष आकलन करना है, और यह किसी भी पक्ष या समुदाय के प्रति पूरी तरह से पूर्वाग्रहरहित (completely unbiased) है। हमारा एकमात्र लक्ष्य इस घटना से जुड़े सभी पहलुओं को गहराई से समझना और राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने खड़ी चुनौतियों को सामने लाना है।

इस रिपोर्ट में हम दिल्ली कार धमाका के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, जिससे इसके कारणों और प्रभावों को समझा जा सके।

एक भयानक शाम जिसने राजधानी को दहला दिया

दिल्ली, जो अपने इतिहास, रौनक और भीड़भाड़ के लिए जानी जाती है, वहीं अब सोमवार की शाम अचानक एक दिल दहला देने वाली घटना का गवाह बनी. लाल किले के पास हुए एक भयानक धमाके, जिसे दिल्ली कार धमाका कहा जा रहा है, ने न सिर्फ आसपास के इलाके को हिला दिया, बल्कि पूरे शहर को दहशत में डाल दिया. यह हादसा इतनी तेजी से हुआ कि लोग समझ ही नहीं पाए कि आखिर हुआ क्या, देखते ही देखते सोशल मीडिया पर लाल किला ब्लास्ट और #OperationSindoor2.O जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे.

इस घटना ने एक बार फिर देश की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, विशेषकर इसलिए क्योंकि जांच में एक ऐसे ‘व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल’ का भंडाफोड़ हुआ है, जिसके सदस्य समाज के सबसे सम्मानित और शिक्षित वर्ग—डॉक्टर—से आते हैं। यह रिपोर्ट इस त्रासदी की गहराई, जांच के प्रमुख निष्कर्षों, और राष्ट्रीय सुरक्षा पर इसके दूरगामी प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

I. घटना का विवरण और तत्काल प्रतिक्रिया (The Incident and Immediate Aftermath)

दिल्ली कार धमाका: एक गहन विश्लेषण

1.1 विस्फोट का समय और स्थान

सोमवार, 10 नवंबर, 2025 की शाम 6:52 बजे, लाल किला मेट्रो स्टेशन के ठीक बाहर एक सफेद Hyundai i20 कार में एक शक्तिशाली विस्फोट हुआ। यह इलाका न केवल राजधानी के सबसे ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, बल्कि पुरानी दिल्ली के भीड़-भाड़ वाले बाजारों—चांदनी चौक और भागीरथ पैलेस—से सटा होने के कारण यहाँ शाम के समय भारी भीड़ होती है। विस्फोट की तीव्रता इतनी जबरदस्त थी कि कार के परखच्चे उड़ गए, आसपास की दुकानों और लाल मंदिर के शीशे टूट गए, और कई खड़े वाहनों में आग लग गई।

प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, इस घातक घटना में 8 से 12 लोगों की तत्काल मौत हुई, जबकि दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के यात्री और दुकानदार शामिल थे। दिल्ली पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और विस्फोटक अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया। घटनास्थल को एक आतंकी कार्रवाई मानते हुए जांच शुरू की गई।

1.2 दिल्ली में हाई अलर्ट और सुरक्षा का घेरा

धमाके की खबर फैलते ही राष्ट्रीय राजधानी में अभूतपूर्व हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। दिल्ली पुलिस आयुक्त ने सभी जिला उपायुक्तों को तत्काल गश्त और संवेदनशील क्षेत्रों में चेकिंग बढ़ाने का आदेश दिया। हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों, प्रमुख बस टर्मिनलों और केंद्रीय तथा उत्तरी दिल्ली के भीड़-भाड़ वाले बाजारों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई। ऐतिहासिक लाल किले को घटना के बाद तीन दिनों के लिए बंद कर दिया गया, जो राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था में इस घटना की गंभीरता को दर्शाता है। सुरक्षा एजेंसियों ने तत्काल प्रभाव से सीसीटीवी फुटेज खंगालना शुरू किया, जिससे जांच की दिशा निर्धारित हुई।

1.3 प्राथमिक जांच: कार और संदिग्ध

जांच एजेंसियों के लिए पहला महत्वपूर्ण सुराग विस्फोटित i20 कार के मलबे से मिला। कार के रजिस्ट्रेशन विवरण और एक चाबी के जरिए जांचकर्ताओं को फरीदाबाद की ओर ले जाया गया। पता चला कि यह कार कई हाथों से होकर गुजरी थी, जिसमें सलमान, देवेंद्र, सोनू और तारिक जैसे व्यक्ति शामिल थे। अंततः यह कार मुख्य संदिग्ध डॉ. उमर मोहम्मद तक पहुंची थी। कार की बिक्री फरीदाबाद के सेक्टर 32 में स्थित “रॉयल कार ज़ोन” से जुड़ी थी, जिससे फरीदाबाद कनेक्शन की पुष्टि हुई।

II. मुख्य संदिग्ध और विस्फोट के पीछे का सिद्धांत (The Key Suspect and the Blast Theory)

2.1 डॉ. उमर मोहम्मद: शिक्षित और कट्टरपंथी

इस पूरे मामले में मुख्य संदिग्ध के रूप में डॉ. उमर मोहम्मद (36), पुलवामा, जम्मू और कश्मीर के एक डॉक्टर का नाम सामने आया है। जांच से पता चला है कि डॉ. मोहम्मद श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज से अपनी चिकित्सा की पढ़ाई पूरी करने के बाद फरीदाबाद के अल फलाह विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत था। यह एक ऐसी पृष्ठभूमि है जो पारंपरिक आतंकी प्रोफाइल से मेल नहीं खाती और यही इस मॉड्यूल को ‘सफेदपोश’ (White Collar) का नाम देती है।

सी.सी.टी.वी. फुटेज में विस्फोट से तीन घंटे पहले तक डॉ. मोहम्मद (संदिग्ध रूप से) को लाल किले के पास खड़ी कार के अंदर मास्क पहने हुए देखा गया था। इससे यह पुष्टि होती है कि वह विस्फोट के समय कार के भीतर या उसके आस-पास मौजूद था।

2.2 ‘पैनिक बटन’ थ्योरी

जांचकर्ताओं ने विस्फोट के पीछे एक चौंकाने वाली ‘पैनिक बटन’ थ्योरी पेश की है। सूत्रों का मानना है कि डॉ. मोहम्मद ने इस हमले की योजना अपने दो सहयोगियों के साथ मिलकर बनाई थी। हालांकि, उसी दिन (10 नवंबर, 2025) फरीदाबाद में उसके साथियों की गिरफ्तारी की खबर मिलने के बाद डॉ. मोहम्मद घबरा गया।

जांच एजेंसियों का अनुमान है कि समूह का मूल लक्ष्य दिल्ली नहीं था, बल्कि वे एक बड़े, संभवतः समन्वित, हमले की तैयारी कर रहे थे। अपने साथियों के पकड़े जाने और पुलिस के पीछे पड़ने के डर से, डॉ. मोहम्मद ने पकड़े जाने से बचने के लिए या एक अंतिम, हताशा भरा वार करने के लिए कार में रखे बम को ट्रिगर कर दिया। यह हताशा में लिया गया निर्णय लाल किले के पास भीषण त्रासदी का कारण बना।

2.3 कश्मीर से फरीदाबाद तक का सफर

डॉ. उमर मोहम्मद और पहले गिरफ्तार किए गए डॉ. मुजम्मिल शकील दोनों जम्मू और कश्मीर के पुलवामा के एक ही गाँव के निवासी थे। यह तथ्य उनके बीच एक गहरे, स्थानीय और संभवतः बचपन के संबंध को स्थापित करता है, जिसने उनके कट्टरपंथी रास्ते को आसान बनाया होगा।

उनका कश्मीर से दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में आना और अल फलाह विश्वविद्यालय जैसी UGC-मान्यता प्राप्त संस्था में सम्मानित पदों पर काम करना, उनकी आतंकी गतिविधियों की भयंकर गुप्त प्रकृति को रेखांकित करता है। उन्होंने अपनी पेशेवर पहचान को अपनी नापाक साजिशों के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल किया। अल फलाह विश्वविद्यालय और उसके मालिकों की भी जांच आवश्यक है क्योंकि, इस गिरोह के कई सदस्य इसी में कार्य कर रहे थे। कई सदस्यों का एक ही संस्थान में काम करना शक को और गहरा कर देता है।

III. सफेदपोश आतंकी मॉड्यूल: एक नया खतरा (The ‘White Collar Terror’ Module: A New Threat)

3.1 सफेदपोश आतंकवाद की परिभाषा

इस नेटवर्क को ‘सफेदपोश आतंकी मॉड्यूल’ नाम दिया जा रहा है। यह पदनाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इसमें शामिल संदिग्ध उच्च शिक्षित पेशेवर थे। पारंपरिक रूप से आतंकी समूह ऐसे व्यक्तियों का उपयोग कम करते थे, लेकिन अब यह एक नया और गंभीर खतरा है।

  • डॉ. उमर मोहम्मद: मुख्य संदिग्ध, डॉक्टर, सहायक प्रोफेसर (अल फलाह विश्वविद्यालय)।
  • डॉ. मुजम्मिल शकील: गिरफ्तार डॉक्टर, MBBS, अल फलाह विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर, धौज, फरीदाबाद में शिक्षण कार्य से जुड़ा था।
  • डॉ. आदिल अहमद राथर: गिरफ्तार तीसरा डॉक्टर।

इन व्यक्तियों का समाज में सम्मानजनक स्थान था, जिसने उन्हें संदेह से परे रखा और उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में बिना रोक-टोक के आने-जाने और साजिश रचने की अनुमति दी।

3.2 फरीदाबाद: विस्फोटक का विशाल भंडार

आतंकवादियों के इस मॉड्यूल का भंडाफोड़ 10 नवंबर 2025 को दिल्ली विस्फोट से पहले ही एक बड़ी सफलता के साथ हुआ। जम्मू-कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस के एक संयुक्त ऑपरेशन में फरीदाबाद के फतेहपुर तागा गाँव में डॉ. मुजम्मिल शकील द्वारा किराए पर लिए गए दो घरों से भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद हुई।

यह बरामदगी भयावह थी: लगभग 2,500 किलोग्राम से 2,900 किलोग्राम तक आईईडी बनाने वाली सामग्री, जिसमें 350-360 किलोग्राम अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ (संभवतः अमोनियम नाइट्रेट), विभिन्न रसायन, इलेक्ट्रॉनिक सर्किट, बैटरियां, तार, रिमोट कंट्रोल, टाइमर, धातु की शीट और एक एके-47 राइफल शामिल थी।

इस विशाल मात्रा में विस्फोटक पदार्थ की बरामदगी से यह स्पष्ट होता है कि इस मॉड्यूल का उद्देश्य केवल एक कार विस्फोट करना नहीं था, बल्कि उत्तरी भारत के कई शहरों में विनाशकारी, समन्वित हमलों की एक श्रृंखला को अंजाम देना था। यह जखीरा भारत में घरेलू आतंकी मॉड्यूल द्वारा पकड़े गए सबसे बड़े जखीरों में से एक है।

3.3 टेलीग्राम के जरिए कट्टरता

जांच से पता चला है कि ये शिक्षित व्यक्ति टेलीग्राम जैसे एन्क्रिप्टेड सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से कट्टरपंथी बने थे। इंटरनेट और सोशल मीडिया, विशेष रूप से एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग प्लेटफॉर्म, अब दूर-दराज के क्षेत्रों के युवाओं और यहां तक कि शिक्षित पेशेवरों को कट्टरपंथी बनाने के लिए प्राथमिक माध्यम बन गए हैं। इन प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय आतंकी आका, सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी से बचकर, अत्यधिक गोपनीय तरीके से भर्ती, प्रशिक्षण और निर्देश प्रदान करने में सक्षम हैं। यह प्रवृत्ति देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है, क्योंकि पारंपरिक खुफिया इनपुट इन डिजिटल छायाओं को भेदने में संघर्ष करते हैं।

IV. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए निहितार्थ और चुनौतियां (Implications for National Security)

4.1 घरेलू लिंक और इंटर-स्टेट कोऑर्डिनेशन

इस जांच के सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक यह है कि यह एक “घरेलू” आतंक का मामला है। संदिग्ध जम्मू और कश्मीर के नागरिक थे, जो देश के भीतर ही बड़े पैमाने पर हमले की योजना बना रहे थे। यह आंतरिक सुरक्षा के लिए दोहरी चुनौती प्रस्तुत करता है:

  1. कश्मीरी सीमा का विस्तार: आतंकवाद का केंद्र अब केवल कश्मीर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एनसीआर जैसे प्रमुख शहरी और आर्थिक केंद्रों तक फैल चुका है।
  2. राज्य पुलिस समन्वय: जम्मू और कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस के बीच सफल संयुक्त ऑपरेशन ने इंटर-स्टेट इंटेलिजेंस और ऑपरेशनल समन्वय के महत्व को रेखांकित किया। हालांकि, विस्फोट का होना यह दर्शाता है कि यह समन्वय कभी-कभी निर्णायक क्षणों में विफल हो सकता है।

4.2 पेशेवर क्षेत्रों में आतंकवाद का प्रवेश

डॉक्टरों, इंजीनियरों या प्रोफेसरों जैसे शिक्षित पेशेवरों का आतंकवाद में शामिल होना एक गंभीर सामाजिक और सुरक्षा चुनौती है। ये व्यक्ति न केवल संदेह से ऊपर रहते हैं, बल्कि उनके पास हमले की योजना बनाने, लॉजिस्टिक्स जुटाने और उसे अंजाम देने के लिए आवश्यक बौद्धिक क्षमता और संसाधन भी होते हैं।

  • संसाधनों तक पहुंच: एक डॉक्टर के रूप में, वे विभिन्न प्रकार के रसायनों और संसाधनों तक पहुंच बना सकते हैं, जिनका उपयोग विस्फोटक बनाने या रासायनिक हमले की साजिश रचने में किया जा सकता है।
  • विश्वसनीयता: एक शैक्षणिक संस्था (जैसे अल फलाह विश्वविद्यालय) में नौकरी उन्हें एक निर्दोष कवर प्रदान करती है, जिससे वे बिना किसी निगरानी के देश के प्रमुख शहरों में डेरा डाल सकते हैं। यह दर्शाता है कि आतंकी संगठन अब समाज की नींव में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। इससे यह भी साबित होता है कि अल फलाह विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को एक विशेष केटेगरी में रखा जाना चाहिए और वहाँ काम करनें वाले सभी कर्मचारियों का स्पेशल बैकग्राउंड चेक होना चाहिए, ताकि आतंकवादी गतिविधियों को पहले ही रोका जा सके।

4.3 दिल्ली की सुरक्षा का इतिहास: एक क्रोनोलॉजी

लाल किले के पास हुआ यह विस्फोट दिल्ली के लिए सुरक्षा चुनौती की पहली घटना नहीं है। ऐतिहासिक रूप से, देश की राजधानी आतंकी समूहों का एक प्रमुख लक्ष्य रही है।

  • 29 अक्टूबर 2005: सरोजिनी नगर, पहाड़गंज और गोविंदपुरी में सिलसिलेवार धमाके (50 से अधिक मौतें)।
  • 13 सितंबर 2008: करोल बाग, कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश-I में पांच सिलसिलेवार धमाके।
  • 30 नवंबर 1997: लाल किले के इलाके में डबल ब्लास्ट की पूर्व घटना।

इन घटनाओं का इतिहास यह बताता है कि दिल्ली के भीड़-भाड़ वाले बाजार और ऐतिहासिक स्थल हमेशा से आतंकवादियों के निशाने पर रहे हैं, जिसके लिए स्थायी और उन्नत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है।

V. समुदाय और कट्टरता पर प्रश्न (Community and Radicalization: Critical Questions)

5.1 आतंकवाद पर सामुदायिक प्रतिक्रिया: एक गंभीर विमर्श

जांच के बाद कई सुरक्षा विश्लेषकों और टिप्पणीकारों ने आतंकवाद के प्रति समाज के एक वर्ग की प्रतिक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के भीतर से आतंकवादियों को सार्वजनिक समर्थन मिलने और उनके मारे जाने पर हजारों की भीड़ का उनके अंतिम संस्कार में इकट्ठा होने की पुरानी प्रवृत्ति को इस समस्या के निरंतर जारी रहने का एक प्रमुख कारण बताया गया है।

आलोचकों का तर्क है कि जब समुदाय के नेता या सामाजिक हस्तियां स्पष्ट रूप से और सर्वसम्मति से ऐसे कृत्यों की निंदा नहीं करते हैं, या जब आतंकवादियों को “नायक” के रूप में महिमामंडित किया जाता है, तो यह युवा पीढ़ी के लिए एक खतरनाक संदेश भेजता है। यह संदेश कट्टरपंथियों के लिए एक प्रजनन भूमि (breeding ground) तैयार करता है और आतंकी विचारधारा को वैधता प्रदान करता है।

यह राष्ट्रीय विमर्श का एक महत्वपूर्ण बिंदु है: जब तक समाज का हर वर्ग, विशेषकर जिस समुदाय से अपराधी आते हैं, इन गतिविधियों की खुलकर निंदा नहीं करता और आतंकवादियों को उनके जघन्य कृत्यों के लिए अस्वीकार नहीं करता, तब तक कट्टरता का मुकाबला करना एक कठिन लड़ाई बनी रहेगी। शिक्षित पेशेवरों का इस मॉड्यूल में शामिल होना इस बात का सबूत है कि कट्टरता की जड़ें सामाजिक, आर्थिक या शैक्षणिक पृष्ठभूमि तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह एक वैचारिक चुनौती है जिसका सामना सामाजिक और धार्मिक नेतृत्व को करना होगा।

5.2 सफेदपोश मॉड्यूल पर अनसुलझे सवाल (Unanswered Questions)

हालांकि जांच में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, फिर भी कई महत्वपूर्ण प्रश्न अनसुलझे हैं जो भविष्य की सुरक्षा रणनीति को आकार देंगे:

  1. फंडिंग का स्रोत: इतने बड़े पैमाने पर विस्फोटक सामग्री और एके-47 राइफल की खरीद के लिए धन कहाँ से आया? क्या यह किसी विदेशी एजेंसी या अंतर-राज्यीय हवाला नेटवर्क से जुड़ा था?
  2. मूल लक्ष्य की प्रकृति: यदि दिल्ली मूल लक्ष्य नहीं था, तो फरीदाबाद के पास 2900 किलोग्राम विस्फोटक किस बड़े शहर या किस विशिष्ट प्रतिष्ठान पर हमले के लिए थे? क्या यह एक साथ कई शहरों में समन्वित हमले की योजना थी?
  3. शिक्षण संस्थानों की भूमिका: अल फलाह विश्वविद्यालय में दो डॉक्टरों का सक्रिय रूप से कार्यरत होना क्या किसी व्यापक भर्ती या कट्टरपंथीकरण नेटवर्क का हिस्सा था? क्या अन्य शैक्षणिक या पेशेवर संस्थानों में ऐसे ही ‘स्लीपर’ मॉड्यूल मौजूद हैं?
  4. विस्फोट का सटीक ट्रिगर: डॉ. मोहम्मद ने वास्तव में बम को क्यों ट्रिगर किया? क्या यह केवल पैनिक था, या उसे दूर से नियंत्रित किया जा रहा था? क्या यह उसके पकड़े जाने के डर से “मिशन को नष्ट” करने का एक हताश प्रयास था?
  5. संगठनात्मक संबद्धता: प्राथमिक रूप से यह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) या अंसार गजवत उल हिंद (AGH) से जुड़ा बताया जा रहा है। इस नए ‘सफेदपोश’ मॉड्यूल पर किस आतंकी समूह का सीधा नियंत्रण था और क्या यह कोई नया स्वदेशी संगठन है?
  6. वाहन की अंतिम डिलीवरी: i20 कार के मालिक तारिक (जिसे बाद में गिरफ्तार किया गया) की डॉ. मोहम्मद तक कार पहुंचाने में सटीक भूमिका क्या थी? क्या उसे पूरी योजना की जानकारी थी?

VI. निष्कर्ष: सुरक्षा का एक नया युग (Conclusion: A New Era of Security)

लाल किले के पास हुआ कार विस्फोट एक भयानक त्रासदी है, लेकिन यह भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी भी है। यह घटना आतंकवाद के बदलते चेहरे को उजागर करती है—एक ऐसा चेहरा जो अब अशिक्षित या गरीब युवाओं का नहीं, बल्कि सम्मानित डॉक्टरों और पेशेवरों का है, जो समाज के भीतर ही काम करते हैं।

फरीदाबाद में भारी मात्रा में विस्फोटक की बरामदगी ने देश को एक आसन्न बड़े खतरे से बचा लिया, लेकिन दिल्ली में विस्फोट ने राजधानी की सुरक्षा में गंभीर खामियों को उजागर किया। अब सुरक्षा बलों को न केवल सीमाओं पर, बल्कि देश के शैक्षणिक और पेशेवर संस्थानों के भीतर भी निगरानी और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के अपने तरीकों को उन्नत करना होगा।

कट्टरता के इस नए ‘सफेदपोश’ मॉडल का मुकाबला करने के लिए, पुलिस, खुफिया एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों और सबसे महत्वपूर्ण, नागरिक समाज के बीच एक व्यापक और मजबूत साझेदारी आवश्यक है। जब तक समाज में आतंकवाद के महिमामंडन की प्रवृत्ति समाप्त नहीं होगी, और जब तक हर नागरिक सक्रिय रूप से इस विचारधारा को अस्वीकार नहीं करता, तब तक राष्ट्रीय सुरक्षा की चुनौती विकट बनी रहेगी। इस त्रासदी से सीख लेकर ही हम भविष्य में दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों को सुरक्षित रख सकते हैं।

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