Simhachalam:30 अप्रैल की सुबह विशाखापट्टनम के सिम्हाचलम पहाड़ी पर हर साल की तरह ‘चंदनोत्सव’ मनाने के लिए हज़ारों श्रद्धालु जमा हुए थे। चंदनोत्सव का आयोजन ‘निजरूप दर्शन’ के लिए होता है, जिसमें भगवान को चंदन से सजाने के बाद उनका वास्तविक रूप श्रद्धालुओं को दिखाया जाता है। श्रद्धालुओं की संख्या इतनी ज़्यादा थी कि लोग रात 2 बजे से ही लाइन में खड़े थे। लेकिन यह पर्व इस बार कई परिवारों के लिए मातम बन गया।
दीवार का ढहना और भगदड़ का मंजर
सुबह करीब 3:30 बजे, जब भक्तजन दर्शन के लिए आगे बढ़ रहे थे, तभी एक निर्माणाधीन शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास की दीवार अचानक भरभराकर गिर पड़ी। चीख-पुकार मच गई। मलबे के नीचे दबकर कम से कम 7 लोगों की जान चली गई, जिनमें 3 महिलाएं भी शामिल थीं। इस हादसे में करीब दर्जनों श्रद्धालु घायल हो गए। राहत-बचाव कार्य के लिए NDRF और दमकल विभाग की टीमें मौके पर पहुंचीं और घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती करवाया गया।
प्रशासन की लापरवाही या प्राकृतिक आपदा?
मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने हादसे पर दुख जताया और कहा कि तेज़ बारिश और हवा की वजह से यह हादसा हुआ हो सकता है। लेकिन बड़ा सवाल है – क्या एक निर्माणाधीन कॉम्प्लेक्स की दीवार इतनी कमज़ोर थी कि हल्की बारिश और हवा उसे गिरा दे? क्या मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के पर्याप्त इंतज़ाम किए थे?
मंदिर ट्रस्ट और ठेकेदार पर सवाल
घटना स्थल पर मौजूद श्रद्धालुओं और प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि निर्माणाधीन क्षेत्र को ढंग से घेरा नहीं गया था। कई लोग पूछ रहे हैं – क्या मंदिर ट्रस्ट ने निर्माण स्थल को सुरक्षित करने की ज़िम्मेदारी निभाई? क्या उस ठेकेदार की जवाबदेही तय होगी जिसने दीवार बनाई थी?
राजनीतिक प्रतिक्रिया और संवेदनाएं
पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने इस हादसे को दिल दहला देने वाला बताया। उन्होंने सरकार से मांग की कि घायलों को सर्वोत्तम इलाज मुहैया कराया जाए और मृतकों के परिजनों को उचित मुआवज़ा मिले। गृह मंत्री वी. अनीता ने घटनास्थल का दौरा किया और दीवार की गुणवत्ता की जांच कराने की बात कही। लेकिन क्या यह जांच केवल औपचारिक बनकर रह जाएगी?
श्रद्धालुओं के लिए था यह आखिरी सफर
हादसे के दौरान कई श्रद्धालु दर्शन की कतार में खड़े थे – कोई अपनी मां के साथ, कोई बच्चों के साथ आया था। हादसे में जिनकी जान गई, उनके परिवारों का रो-रोकर बुरा हाल है। किसी की मां अब नहीं रही, किसी का भाई अब इस दुनिया में नहीं है। जिन लोगों ने 300 रुपये की टिकट लेकर VIP लाइन में लगने का सोचा, उन्हें नहीं पता था कि ये कतार उनके जीवन की आखिरी कतार होगी।
सुरक्षा इंतज़ामों पर बड़े सवाल
इतने बड़े आयोजन से पहले क्या प्रशासन ने मौसम विभाग से अलर्ट लिया था? क्या दीवार की मजबूती की जांच की गई थी? क्या भारी भीड़ को कंट्रोल करने के लिए सुरक्षा और आपातकालीन प्रबंधन की योजना बनाई गई थी?
क्या आस्था के नाम पर ज़िंदगी खतरे में डालना जायज़ है?
हर हादसे के बाद संवेदनाएं जताई जाती हैं, मुआवज़ा दिया जाता है, और जांच की बात होती है। लेकिन असल सवाल ये है – क्या इन हादसों से हम सबक लेते हैं? क्या धार्मिक आयोजनों के नाम पर सुरक्षा व्यवस्था से समझौता किया जाना सही है? श्रद्धालु हर साल भगवान के दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन क्या भगवान तक पहुंचने की ये यात्रा मौत में बदल जानी चाहिए?
हादसे से सबक लेने की ज़रूरत
सिंहाचलम हादसे ने एक बार फिर दिखा दिया कि धार्मिक आयोजनों में भीड़ और अव्यवस्था का खतरनाक मेल जानलेवा हो सकता है। अब ज़रूरत है कि मंदिर ट्रस्ट, प्रशासन और सरकार मिलकर ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने दें। हादसे में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि देते हुए हमें यह संकल्प लेना होगा कि आस्था को सुरक्षित रखने के लिए कड़े और ज़िम्मेदार फैसले लिए जाएं।






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