देश भर में बढ़ते आतंकवादी हमलों और पाकिस्तान के खिलाफ गुस्से के बीच, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक बड़ा बयान देकर सियासी हलचल मचा दी है। उन्होंने बांग्लादेश पर हमला करते हुए गंगा नदी के पानी को लेकर एक नई डिमांड की है। इस बयान ने देश की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है और सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं कि क्या बांग्लादेश को गंगा जल का पानी देने का वक्त खत्म हो चुका है?
निशिकांत दुबे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपने पोस्ट में लिखा, “बांग्लादेश भी बड़ा छटपट कर रहा है, उसको भी गंगा नदी का पानी बंद करने का समय आ गया है। पानी पीकर जीएगा हमसे, गाएगा पाकिस्तान से।” उनका यह बयान उस वक्त आया है जब देश में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश बढ़ रहा है, खासकर पहलगाम आतंकी हमले के बाद। इस हमले में पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की जान ले ली थी, जिसके बाद भारतीय जनता का गुस्सा आसमान छूने लगा है।
निशिकांत दुबे का यह बयान सिर्फ एक सामान्य टिप्पणी नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ी सियासी दलील है। उन्होंने इस पोस्ट के साथ एक अंग्रेजी वेबसाइट की खबर का स्क्रीनशॉट भी शेयर किया, जिसमें बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कानूनी सलाहकार डॉ. आसिफ नजरूल द्वारा लश्कर-ए-तैयबा के वरिष्ठ ऑपरेटर इजहार से मुलाकात की जानकारी दी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, इस मुलाकात से भारत के खिलाफ उग्रवाद को बढ़ावा देने के लिए ढाका की मौजूदा सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इससे यह भी साफ होता है कि बांग्लादेश ने भारतीय सुरक्षा के मामलों में नकारात्मक भूमिका अदा की है।
निशिकांत दुबे ने इस मौके पर मोदी सरकार के एक और फैसले की तारीफ की, जिसमें सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया गया था। दुबे ने कहा, “अब पाकिस्तान बिना पानी के मर जाएगा,” जो भारत की दृढ़ नीतियों को स्पष्ट करता है। उन्होंने यह भी कहा कि 1960 में जब जवाहरलाल नेहरू ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे, तब वे नोबेल पुरस्कार की चाहत में पाकिस्तान को पानी देने के लिए तैयार हो गए थे। यह टिप्पणी भारतीय कूटनीति पर एक गंभीर सवाल उठाती है और बांग्लादेश के संदर्भ में भी इसकी अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
गंगा जल के बंटवारे को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच 1996 में एक संधि हुई थी, जिसे “गंगा जल बंटवारा संधि” कहा जाता है। इस संधि के तहत गंगा नदी के पानी को दोनों देशों के बीच समान रूप से बांटा जाता है। हालांकि, यह संधि 2026 में समाप्त हो जाएगी, और दोनों देशों के बीच इसे नवीनीकरण पर विचार किया जाएगा। यह संधि बांग्लादेश के लिए खास महत्व रखती है, क्योंकि इसे कोलकाता बंदरगाह के पानी के स्तर को बनाए रखने के लिए लागू किया गया था, ताकि वहां जहाजों की आवाजाही बनी रहे।






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