दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर जब हजारों लोगों ने चुप्पी तोड़ी, तो केवल नारों की आवाज नहीं आई — इंसानियत का शोर उठा। जुमे की नमाज के बाद, मस्जिद की पवित्र सीढ़ियों पर एकजुट हुए मुसलमानों ने वो कर दिखाया, जो देश को एकता और मानवता का असली अर्थ सिखा गया। कोई नेता नहीं, कोई राजनीति नहीं — बस तिरंगे के नीचे इंसानियत की पुकार थी: “आतंकवाद का हो विनाश।” पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया, लेकिन जवाब आया भारत के मुसलमानों की तरफ से, जो पाकिस्तानी आतंक को खुली चुनौती दे रहे थे।
सैकड़ों लोगों ने अपने हाथों में तिरंगा थामा, पाकिस्तान मुर्दाबाद के पोस्टर उठाए, और दिल से एकजुट होकर आवाज बुलंद की — “एक बेगुनाह का कत्ल, पूरी इंसानियत का कत्ल है।” यह केवल विरोध नहीं था, यह वह संकल्प था जो धर्म से ऊपर उठकर देश और मानवता के पक्ष में लिया गया। यह प्रदर्शन यह भी साफ करता है कि अब आतंकी हमलों को सिर्फ सुरक्षाबलों का नहीं, बल्कि आम नागरिकों का भी जवाब मिलेगा — आवाज से, एकता से और जनबल से।
देश के कोने-कोने में पहलगाम हमले के खिलाफ गुस्सा उबल रहा है। खासकर दिल्ली में, जहां 100 से अधिक बाजार संघों ने अपने-अपने प्रतिष्ठान बंद रखकर आतंक के खिलाफ एकजुटता दिखाई। सदर बाजार, भागीरथ प्लेस, चावड़ी बाजार, जामा मस्जिद, खारी बावली से लेकर चांदनी चौक तक हर दुकान का शटर बंद था — लेकिन दिल और इरादे पूरी तरह खुले थे आतंकवाद के विरोध में। यह एक मूक प्रदर्शन था, जिसमें हर बंद दुकान एक सवाल बन गई पाकिस्तान से — “कब तक चलेगा ये कत्लेआम?”
पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने भी पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। सिंधु जल संधि (1960) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। यह वही सिंधु है, जिसे पाकिस्तान की जीवनरेखा कहा जाता है। भारत ने आधिकारिक रूप से इस निर्णय की सूचना देकर साफ कर दिया कि अब आतंक को पालने वालों को पानी भी नसीब नहीं होगा। गुरुवार को हुई सर्वदलीय बैठक में सरकार ने स्पष्ट कहा कि ये हमला उस वक्त किया गया जब कश्मीर में शांति लौट रही थी, पर्यटन बढ़ रहा था, और यही पाकिस्तान को असहज कर गया।






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