इंदौर की शांत गलियों में पसरा सन्नाटा कुछ कह रहा है। वीणा नगर के मकान नंबर 68 के बाहर लोगों का सैलाब है लेकिन हर चेहरा खामोश है… हर आंख नम। क्योंकि इस घर का चिराग, एक जिम्मेदार पिता, एक समर्पित अफसर—अब इस दुनिया में नहीं रहा। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने इंदौर के उस बेटे को हमसे छीन लिया जिसने देश की सेवा करते हुए अपनी जान गंवा दी। सुशील नथानियल की शहादत की खबर ने न सिर्फ उनके परिवार को, बल्कि पूरे इंदौर और प्रदेश को झकझोर दिया है।
मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में एलआईसी अफसर सुशील नथानियल को आतंकियों ने बेरहमी से गोली मार दी। उनकी बेटी आकांक्षा भी हमले में घायल हो गई, जिसे गोली उनके पैर में लगी। खबर फैलते ही इंदौर का वीणा नगर मातम में डूब गया। हर घर से एक आह उठी, हर चेहरा सहमा हुआ दिखा। बुधवार सुबह से ही शहरवासी, रिश्तेदार और जनप्रतिनिधि शोक संतप्त परिवार से मिलने उनके घर पहुंचने लगे। इसी कड़ी में कलेक्टर आशीष सिंह और कई नेता भी पीड़ित परिवार का दुख बांटने पहुंचे।
कलेक्टर आशीष सिंह ने सुशील के घर पहुँचकर परिवार को ढांढस बंधाया। उन्होंने आश्वासन दिया कि दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा और पीड़ित परिवार को हरसंभव सहायता दी जाएगी। कलेक्टर ने सुशील के परिवार से विस्तृत जानकारी ली—कब कश्मीर गए थे, किस मकसद से गए थे, और घटना किस समय हुई। वहीं, क्षेत्रीय विधायक रमेश मेंदोला और प्रभारी महापौर राजेन्द्र राठौर सहित भाजपा-कांग्रेस के कई नेताओं ने भी परिवार से मुलाकात कर संवेदना व्यक्त की और भरोसा दिलाया कि सरकार इस दुख की घड़ी में उनके साथ खड़ी है।
सुशील नथानियल मूलतः अलीराजपुर में पदस्थ थे और अपने परिवार—पत्नी जेनिफर, बेटा ऑस्टिन उर्फ गोल्डी और बैंक ऑफ बड़ौदा में कार्यरत बेटी आकांक्षा के साथ छुट्टियों में जम्मू-कश्मीर गए थे। पड़ोसियों के अनुसार, उनका परिवार बेहद मिलनसार था—हर सुख-दुख में साथ खड़े रहने वाला। आकांक्षा जो इस हमले में घायल हुई है, उसे प्रारंभिक उपचार के बाद पिता के शव के साथ इंदौर लाया जा रहा है। समाज में आक्रोश है और साथ ही सवाल—क्या हमारे देश के नागरिक छुट्टियों में भी सुरक्षित नहीं?
कलेक्टर के अनुसार, सुशील नथानियल का पार्थिव शरीर बुधवार देर रात तक इंदौर लाया जाएगा और गुरुवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा। पूरे शहर में दुकानों का बंद रहना और हर मोहल्ले में शोक का माहौल इस बात का प्रमाण है कि सुशील अकेले नहीं थे—पूरा इंदौर उनका परिवार है। उनके घर के बाहर लगी भीड़ इस बात की गवाही देती है कि एक सच्चा बेटा अब वापस नहीं आएगा, लेकिन उसकी शहादत ज़रूर हर किसी के दिल में हमेशा ज़िंदा रहेगी।





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