कल्पना कीजिए, डॉक्टर ने आपको बताया हो कि आपके मासूम बच्चे के दिल में एक जटिल बीमारी है… और ऑपरेशन ही एकमात्र रास्ता है। आपके मन में हजारों सवाल और डर, लेकिन फिर कोई कहे कि अब ऑपरेशन से पहले डॉक्टर आपके बच्चे के ‘दिल’ पर प्रैक्टिस करेगा। सुनकर अजीब लगता है न? लेकिन यह अब हकीकत है! मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एम्स अस्पताल ने वो कर दिखाया है, जो अब तक साइंस फिक्शन फिल्मों में ही देखा था।
भोपाल एम्स ने बच्चों की जटिल हार्ट सर्जरी को न सिर्फ आसान, बल्कि सटीक और समयबद्ध बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। एम्स के कार्डियोथोरेसिक विभाग ने एक पॉलीजेट डिजिटल एनाटॉमी प्रिंटर का उपयोग शुरू किया है, जिससे डॉक्टर अब सर्जरी से पहले मरीज के दिल का हूबहू 3D मॉडल बना सकते हैं। इस मॉडल में मरीज की सीटी स्कैन, एमआरआई, और ब्लड टेस्ट जैसी सभी रिपोर्ट की डिटेल्स को फीड किया जाता है। मशीन फिर ठीक वैसा ही दिल बनाती है, जैसा मरीज के शरीर में है – नसों के जाल, आकार, सब कुछ उतना ही बारीक। और यहीं से शुरू होती है सर्जरी से पहले की ‘ट्रेनिंग’।
इस 3D प्रिंटेड दिल पर डॉक्टर सर्जरी की प्री-प्लानिंग करते हैं – कहां चीरा लगेगा, किन नसों को टच नहीं करना है, किन हिस्सों को कैसे जोड़ा जाएगा। इस तकनीक से न सिर्फ सर्जरी की जटिलता कम होती है, बल्कि मरीज पर सर्जरी के दौरान होने वाले संभावित खतरों को भी पहले से पहचाना जा सकता है। अब तक एम्स भोपाल में 16 बच्चों की जटिल हार्ट सर्जरी इसी तकनीक से सफलतापूर्वक की जा चुकी हैं। इन सभी बच्चों को एक नया जीवन मिला – न कोई पोस्ट-ऑप जटिलता, न कोई खतरा।
भोपाल एम्स में हाल ही में हुए ‘नेशनल सिम्पोज़ियम ऑन 3D प्रिंटिंग एंड मॉडलिंग’ ने इस सफलता को एक राष्ट्रीय पहचान दी है। इस कार्यक्रम में एम्स दिल्ली समेत देश-विदेश के विशेषज्ञ और सर्जन शामिल हुए। आयोजन का शुभारंभ एम्स भोपाल के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने किया, जबकि कार्डियोथोरेसिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. आदित्य सिरोही ने 3D प्रिंटिंग से जुड़ी पूरी प्रक्रिया को विस्तार से बताया।
साइंटिस्ट डॉ. रमनदीप सिंह, जो एम्स दिल्ली के न्यूरो इंजीनियरिंग लैब से जुड़े हैं, ने बताया कि यह 3D प्रिंटर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस है। यह न सिर्फ दिल, बल्कि फेफड़े, दिमाग और शरीर के किसी भी अंग को हूबहू बना सकता है। डॉक्टर मरीज के हिसाब से इन अंगों की कठोरता, रंग और संरचना तक तय कर सकते हैं। इससे डॉक्टरों को न केवल तकनीकी समझ बढ़ती है, बल्कि ऑपरेशन के दौरान आत्मविश्वास भी दोगुना हो जाता है।
एम्स भोपाल की यह पहल सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि गरीब और जरूरतमंद परिवारों के लिए एक नई उम्मीद है। जिन परिवारों के पास महंगे इलाज का विकल्प नहीं था, अब उनके बच्चों को जीवन मिल रहा है – और वो भी कम खर्च और कम खतरे में। यह पहल दिखाती है कि अगर नीयत साफ हो और सोच क्रांतिकारी, तो सरकारी संस्थान भी दुनिया को रास्ता दिखा सकते हैं। ‘द खबरदार न्यूज़’ इस ऐतिहासिक पहल का स्वागत करता है और उम्मीद करता है कि यह मॉडल पूरे देश में लागू हो, ताकि तकनीक और सेवा का यह संगम हर बच्चे को जीवन देने का जरिया बन सके।






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