क्या कभी आपने सोचा है कि जिस स्कूल में आपका बच्चा पढ़ने जाता है, वो कहीं अधूरी इमारत में, बिना प्रशिक्षित शिक्षकों के या बिना सुरक्षा के तो नहीं चल रहा? मध्य प्रदेश के धार जिले में ऐसा ही एक सच सामने आया है, जिसने पूरे शिक्षा तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 87 स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी गई है—इन पर अब ताला लगने वाला है। बच्चों की किताबें बंद होने वाली हैं, कक्षाएं खाली होने वाली हैं और भविष्य…? अब कलेक्टर के फैसले पर टिका है। यह कहानी सिर्फ स्कूलों की नहीं है, बल्कि उन सपनों की है, जो सरकारी मापदंडों की अनदेखी में कुचले जा रहे हैं।
धार जिले में 671 निजी स्कूलों ने शिक्षा विभाग से मान्यता की अपील की थी। BRC (ब्लॉक रिसोर्स कोऑर्डिनेटर) ने 31 मार्च तक निरीक्षण किया और कई स्कूलों में गंभीर कमियां पाई गईं—जैसे अधूरी इमारतें, खेल मैदान और लाइब्रेरी का अभाव, बालक-बालिकाओं के लिए अलग शौचालय न होना, अग्निशमन यंत्र की गैरमौजूदगी, RTE के नियमों की अनदेखी और सबसे गंभीर, प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी। इसके बाद DPC स्तर पर भी जांच हुई और आखिरकार 87 स्कूलों की मान्यता रद्द कर दी गई। अब ये स्कूल कलेक्टर के समक्ष आखिरी बार मान्यता की अपील कर सकते हैं।
शिक्षा विभाग की एक और महत्वाकांक्षी योजना, Apaar ID (12 अंकों की यूनिक छात्र पहचान संख्या), भी जिले में ढंग से लागू नहीं हो पा रही है। इस आइडी के जरिए छात्र की पूरी शैक्षणिक जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध होनी थी, लेकिन आधार अपडेट की समस्याएं, डेटा के असंगत विवरण और आधार सेंटरों की कमी के चलते 3 लाख 27 हजार में से अब तक सिर्फ 2 लाख 6 हजार 734 आइडी ही बन पाई हैं। कई छात्र ऐसे हैं जिनकी Apaar ID इसलिए नहीं बन रही क्योंकि आधार और स्कूल के डेटा में नाम, जन्मतिथि या सरनेम में थोड़े से भी अंतर हैं। इन त्रुटियों के कारण अब तक 2000 से ज्यादा आइडी रिजेक्ट हो चुकी हैं।
इन तमाम अव्यवस्थाओं के पीछे विभागीय उदासीनता भी एक बड़ा कारण है। बार-बार टाइमलाइन दी जा रही है, लेकिन लक्ष्य पूरे नहीं हो पा रहे हैं। पहले दिसंबर 2025, फिर 31 मार्च और अब अप्रैल तक का लक्ष्य तय किया गया है, पर प्रगति बेहद धीमी है। तकनीकी समस्याएं, पोर्टल का ठप पड़ जाना और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी ने इस सिस्टम को और बिगाड़ दिया है। अब शिक्षकों से भी कहा गया है कि वे आगे बढ़कर बच्चों के आधार अपडेट कराने में मदद करें, जिससे Apaar ID बन सके। परंतु यह जिम्मेदारी क्या केवल शिक्षकों की है?
स्कूलों की मान्यता रद्द होने के पीछे जो मापदंड तय किए गए हैं, वे बच्चों की सुरक्षा और समग्र विकास के लिए जरूरी हैं—जैसे खेल का मैदान, अग्निशमन यंत्र, पुस्तकालय, बालक-बालिकाओं के लिए अलग शौचालय, प्रशिक्षित शिक्षक आदि। लेकिन कई स्कूल इन जरूरी सुविधाओं को भी नजरअंदाज कर चल रहे थे। रजिस्टर्ड किरायानामा तक जमा नहीं किया गया था। बच्चों की जिंदगी से इतना बड़ा समझौता क्यों? जब शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है, तो क्या यह जिम्मेदारी सिर्फ अभिभावकों की है? प्रशासन को भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।






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