क्या आपने कभी सोचा है कि एक सब्जी बेचने वाला अचानक करोड़ों की डिजिटल ठगी का चेहरा बन सकता है? ग्वालियर से निकली एक सनसनीखेज खबर ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। यहां 22 साल का एक ठेले वाला, जिसकी मासिक आमदनी बमुश्किल हजार रुपए थी, उसके नाम पर ऐसा खाता खोला गया, जिससे तीन महीनों में 30 लाख रुपए का ट्रांजैक्शन हुआ! और ये सिर्फ शुरुआत है। जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, सामने आया कि उज्जैन के नागदा में बंधन बैंक की शाखा साइबर ठगों के लिए ‘डिजिटल हवाला हब’ बन चुकी थी — जहां बैंक अफसर, कैशियर और असिस्टेंट मैनेजर खुद इस नेटवर्क का हिस्सा थे।
ग्वालियर पुलिस की एसआईटी की छापेमारी में खुलासा हुआ कि नागदा में बैंक कर्मचारियों ने जरूरतमंद लोगों को 1000 रुपए का लालच देकर उनके नाम से फर्जी खाते खुलवाए। पासबुक और एटीएम कार्ड उन्हीं बैंक कर्मचारियों के पास रहे, जबकि खाताधारक को इन पैसों की भनक तक नहीं थी। सब्जीवाले राहुल काहर के नाम पर खुला एक ऐसा ही खाता 10 लाख रुपए के ग्वालियर ट्रांजैक्शन का केंद्र बना। बैंक की महिला कैशियर और असिस्टेंट मैनेजर ने अपनी पोजिशन का दुरुपयोग करते हुए ठगों को ट्रांजैक्शन की जानकारी दी और बिना दस्तावेज पैसे निकालने की मंजूरी भी दी। पुलिस ने इस मामले में छह लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें बैंक स्टाफ से लेकर खाताधारक तक शामिल हैं।
जांच में चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि इस फर्जी अकाउंट के जरिए देश के कई शहरों से लाखों रुपए ट्रांसफर किए गए और तुरंत कैश में निकाले गए। पुलिस को शक है कि इस नेटवर्क के तार अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैले हैं। ग्वालियर में हुई 2.53 करोड़ रुपए की साइबर ठगी में से अधिकांश रकम दुबई भेज दी गई। पुलिस अब पता लगाने में जुटी है कि यह पैसा किस बैंक और किस नाम से खोले गए अकाउंट में पहुंचा। माना जा रहा है कि इस रकम को दुबई में क्रिप्टोकरेंसी में बदल दिया गया। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक शेल कंपनी के नाम से खोले गए खाते में 1.30 करोड़ रुपए ट्रांसफर हुए थे, जिसके असली मालिक को अपने नाम पर अकाउंट खुलने की जानकारी तक नहीं थी।
इस मामले का संबंध ग्वालियर के रामकृष्ण मिशन आश्रम से भी जुड़ता है। आश्रम के सचिव स्वामी सुप्रदीप्तानंद पहले भी एक डिजिटल अरेस्ट का शिकार हो चुके हैं। उन्हें ताइवान से ड्रग्स पार्सल का डर दिखाकर स्काइप कॉल पर रखा गया और 71 लाख रुपए की ठगी की गई। यह घटना नवंबर 2024 की है, और तब भी उज्जैन शाखा से पैसे ट्रांसफर हुए थे। ठगों ने उन्हें 24 घंटे ‘डिजिटल अरेस्ट’ में रखा और हर घंटे सेल्फी भेजने का दबाव बनाया। हैरानी की बात यह है कि तब भी बैंक अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में थी, लेकिन इस पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गई, जिसका फायदा ठगों ने इस नए मामले में उठा लिया।
ग्वालियर पुलिस, क्राइम ब्रांच और साइबर एक्सपर्ट्स की टीमें अब देशभर में फैले इस नेटवर्क की कड़ियों को जोड़ने में लगी हैं। मणिपुर, केरल, उत्तराखंड, असम, दिल्ली, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में फैले खातों की जांच चल रही है। अब तक 50 से ज्यादा संदिग्ध बैंक अकाउंट की पहचान की जा चुकी है, जिनके जरिए ठगी का पैसा घूम-फिरकर निकाला गया। पुलिस अब दुबई भेजे गए पैसों का सुराग लगाने के लिए इंटरनेशनल एजेंसियों से मदद ले रही है। इस केस ने न सिर्फ बैंकिंग सिस्टम की बड़ी खामियों को उजागर किया है, बल्कि यह सवाल भी खड़े कर दिए हैं — क्या गरीबों के नाम पर धोखाधड़ी का यह गंदा खेल किसी बड़े सिंडिकेट का हिस्सा है? क्या बैंकों की आंतरिक सुरक्षा और मॉनिटरिंग पर अब भी भरोसा किया जा सकता है?






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