Friday, December 5, 2025

“कब, क्यों और कैसे मनाएं अक्षय तृतीया — जानिए शुभ मुहूर्त, परंपरा और पौराणिक कथा के साथ पूरी जानकारी”

क्या हो अगर आपको एक ऐसा दिन मिले, जब किया गया हर पुण्य, हर दान, हर शुभ कार्य कभी नष्ट न हो? एक ऐसा दिन, जिसे शास्त्रों में ‘अबूझ मुहूर्त’ कहा गया है — यानी ऐसा मुहूर्त जिसे किसी विशेष घड़ी की प्रतीक्षा नहीं होती। जी हां, बात हो रही है अक्षय तृतीया की। 2025 में यह शुभ दिन 30 अप्रैल, बुधवार को पड़ रहा है। पर क्या आप जानते हैं कि इस दिन सोना खरीदने से ज्यादा जरूरी है आत्मा की शुद्धि और सेवा का भाव? क्यों इस दिन खोले जाते हैं बद्रीनाथ धाम के कपाट और सिर्फ इसी दिन वृंदावन के बांके बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते हैं?

हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है। अक्षय का अर्थ है — जो कभी क्षय न हो, यानी नष्ट न होने वाला। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही उच्च राशि में होते हैं, जिससे शुभता चरम पर होती है। यही कारण है कि इसे विवाह, व्यापार, गृह प्रवेश या खरीदारी जैसे किसी भी मांगलिक कार्य के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इस बार तृतीया तिथि 29 अप्रैल की शाम 5:31 बजे से शुरू होकर 30 अप्रैल को दोपहर 2:12 बजे तक रहेगी, इसलिए उदयातिथि के अनुसार 30 अप्रैल को ही अक्षय तृतीया मनाई जाएगी।

इस दिन सोना खरीदना बेहद शुभ माना जाता है, लेकिन यदि सोना आपकी पहुंच में न हो तो चिंता मत कीजिए। पीतल के बर्तन, मिट्टी की चीजें, पीली सरसों जैसी वस्तुएं भी शुभ फल देती हैं। सुबह 5:41 से दोपहर 2:12 बजे तक खरीदारी के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है। यही नहीं, इस दिन किया गया दान और सेवा अक्षय पुण्य का कारण बनता है। मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं और लोग ब्राह्मणों को भोजन कराकर, जरूरतमंदों को अन्न-वस्त्र देकर पुण्य अर्जित करते हैं। खास बात यह है कि अक्षय तृतीया पर किया गया पुण्य न केवल इस जन्म बल्कि अगले जन्म तक भी जीवन को सुखमय बनाता है।

अक्षय तृतीया के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ पीले वस्त्र पहनकर भगवान लक्ष्मीनारायण की मूर्ति या चित्र की पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु को चंदन, पीले फूल, और माता लक्ष्मी को कमल के फूल चढ़ाना चाहिए। भोग में जौ, गेहूं, सत्तू, ककड़ी, चना और गुड़ चढ़ाएं। पूजा के बाद लक्ष्मीनारायण कथा पढ़ें और आरती करें। इस दिन यथासंभव ब्राह्मणों को भोजन और जरूरतमंदों को दान अवश्य करें। यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति का मार्ग है।

एक समय की बात है — धर्मदास नाम का एक गरीब लेकिन अत्यंत धार्मिक वैश्य था। उसने सुना कि अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने और ब्राह्मणों को दान देने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा स्नान किया, संकल्प लिया और अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान की विधिपूर्वक पूजा और दान किया। शास्त्रों में उल्लेख है कि उस दिन अर्जित पुण्य के प्रभाव से अगले जन्म में धर्मदास कुशावती का राजा बना। यह कथा बताती है कि सच्ची श्रद्धा और निष्ठा से किया गया छोटा-सा कर्म भी आपके भाग्य की दिशा बदल सकता है।

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