Friday, December 5, 2025

जावेद अख्तर से शादी, हनी ईरानी से तलाक और समाज की उंगलियां… शबाना आजमी ने कहा – ‘मैंने चुप रहकर रिश्तों को बचाया’

क्या एक प्रगतिशील महिला भी अपनी भावनाओं के सामने हार मान जाती है? क्या निजी रिश्तों में किए गए फैसले, समाज की अदालत में गुनाह माने जाते हैं? और क्या कभी ‘दूसरी औरत’ का तमगा बर्दाश्त करना पड़ता है, भले ही कहानी की असलियत कुछ और हो? यह कहानी है शबाना आजमी की—एक ऐसी कलाकार, एक ऐसी नारीवादी सोच की मिसाल, जिसने चुप रहकर भी एक बड़ा बयान दिया। आज, इतने वर्षों बाद, उन्होंने उस चुप्पी को तोड़ा है।

साल था 1984। हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री शबाना आजमी ने लेखक और गीतकार जावेद अख्तर से शादी की। लेकिन यह शादी तब सुर्खियों में आ गई जब पता चला कि जावेद अख्तर कुछ समय पहले ही अपनी पहली पत्नी, हनी ईरानी से तलाक ले चुके थे। हनी से जावेद के दो बच्चे हैं – जोया अख्तर और फरहान अख्तर। समाज ने बिना देर किए, शबाना आजमी को निशाने पर ले लिया। उन्हें ‘सौतन’ कहा गया, एक महिला होकर दूसरी महिला के हक में दखल देने वाली करार दिया गया।

हाल ही में फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में शबाना आजमी ने पहली बार इस मुद्दे पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा, “मैं खुद को एक फेमिनिस्ट मानती थी, और मेरे उस वक्त के फैसले से ऐसा प्रतीत हुआ कि मैंने दूसरी औरत के हक पर डाका डाला, सिर्फ अपनी खुशी के लिए।” उन्होंने स्वीकार किया कि उन पर लगे आरोपों के पीछे लोगों की भावनाएं जायज़ थीं। लेकिन उन्होंने आगे कहा, “अगर मैं उस वक्त कुछ कहती, तो वो और ज्यादा दर्द पैदा करता, इसलिए मैंने चुप रहना बेहतर समझा।”

यह चुप्पी सिर्फ विवादों से बचाव नहीं थी, बल्कि एक रिश्ते को बचाने की कोशिश भी थी। शबाना ने बताया कि उन्होंने, हनी ईरानी और जावेद अख्तर – तीनों ने मिलकर यह तय किया कि एक-दूसरे के खिलाफ कभी कोई कीचड़ नहीं उछाला जाएगा। “यही वजह है कि आज हमारा आपसी रिश्ता स्वस्थ और सम्मानजनक है,” उन्होंने कहा। शबाना ने हनी की तारीफ करते हुए कहा कि ये आपसी समझदारी और सम्मान का परिणाम है, कि हम आज भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, बिना किसी कटुता के।

यह बयान उन तमाम लोगों के लिए एक जवाब है जो सालों से शबाना को ‘दूसरी औरत’ का तमगा देते आ रहे हैं। ये उस सोच के खिलाफ एक शांत लेकिन मजबूत प्रतिक्रिया है, जो मानती है कि औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं। शबाना का यह कहना, कि ‘मैंने चुप रहकर रिश्तों को और ज्यादा टूटने से बचाया,’ दिखाता है कि नारीवाद सिर्फ अधिकार मांगने तक सीमित नहीं है, वह समझदारी, सहनशीलता और रिश्तों की जटिलताओं को समझने का नाम भी है।

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