“इसे घोटाले की नई परिभाषा कहें या सिस्टम की सड़ांध? जब देश के भविष्य यानी स्कूलों के बच्चों के हिस्से की रोटी भी घूस के रास्ते अटकाई जाए, तो समझिए कि मामला गंभीर है। मध्यप्रदेश के नर्मदापुरम ज़िले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सिस्टम की बुनियाद पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं। चाय की केतली नहीं, यहां चाय के थर्मस में रिश्वत के नोट रखवाए जा रहे थे – और ये काम कोई और नहीं, एक सरकारी अधिकारी कर रहा था। लेकिन इस बार उसका खेल खत्म हो गया।”
मध्यप्रदेश का नर्मदापुरम ज़िला, जहां इटारसी के आदिवासी ब्लॉक के बीआरसी (ब्लॉक रिसोर्स कोऑर्डिनेटर) कृष्ण कुमार शर्मा को भोपाल लोकायुक्त की टीम ने फिल्मी अंदाज़ में रंगेहाथ पकड़ लिया। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि रिश्वत की रकम कोई बैग या लिफाफे में नहीं, बल्कि एक चाय के थर्मस में छुपाकर दी गई थी। यह मामला न सिर्फ शिक्षा विभाग की गिरती साख को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सिस्टम में बैठे कुछ अधिकारी कितने शातिर हो चुके हैं।
इस भ्रष्टाचार का खुलासा तब हुआ जब सोमूखेड़ा प्राथमिक शिक्षा केंद्र में पदस्थ शिक्षक देवेंद्र पटेल ने हिम्मत दिखाते हुए भोपाल लोकायुक्त में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि बीआरसी कृष्ण कुमार शर्मा पिछले कई महीनों से उन्हें मध्यान्ह भोजन योजना, यूटिलिटी सर्टिफिकेट और कंसल्टेंसी फंड के नाम पर मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे थे। बीआरसी ने खुले तौर पर कहा था कि यदि शिक्षक चाहें कि मध्यान्ह भोजन योजना में 85% उपस्थिति दर्शाई जाए, तो उन्हें प्रत्येक स्कूल से ₹3,000 की रिश्वत इकट्ठा कर उसे देनी होगी। यहीं से देवेंद्र पटेल ने तय कर लिया कि अब चुप नहीं बैठा जाएगा।
लोकायुक्त टीम ने पहले शिकायत की गंभीरता को परखा, फिर एक जाल बिछाया। ₹5,000 की तय राशि के साथ शिक्षक को बीआरसी के पास भेजा गया। बीआरसी ने बेहद सधे हुए अंदाज़ में कहा कि “नोट थर्मस में डाल देना”, ताकि किसी को शक न हो। लेकिन इस बार उसकी चालाकी काम नहीं आई। जैसे ही देवेंद्र पटेल ने थर्मस बीआरसी को सौंपा, लोकायुक्त की टीम ने उसे तुरंत धर दबोचा। रिश्वतखोरी का यह दृश्य कहीं से भी कम नहीं था किसी थ्रिलर सीन से – फर्क बस इतना कि इसमें मुख्य किरदार एक भ्रष्ट अधिकारी था।
इस मामले ने पूरे शिक्षा विभाग और विशेषकर ग्रामीण व आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। जहां एक ओर सरकार गरीब बच्चों को मुफ्त में भोजन और बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारी इस नेक कार्य को धंधा बना चुके हैं। यह सिर्फ पैसे की लूट नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की शिक्षा और पोषण के अधिकार पर हमला है।






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